राजनीति की बलिवेदी पर कब तक चढ़ते रहेंगें निर्दोष


अमेठी। महिला और दलित के साथ घटित अपराधों पर होती राजनीति के चलते कब तक शिकार बनते निर्दोषों को बलिवेदी पर चढ़ाया जाता रहेगा। हाल ही में जिले में हुई दो घटनाओं पर गौर करें तो लगेगा कि अमेठी जिले में इन मामलों को लेकर हुई घटिया राजनीति के चलते आधा दर्जन निर्दोषों को जेल की सलाखों के पीछे भेज न्यायालय से न्याय मिलने के भरोसे छोड़ दिया गया। इन निर्दोषों का भविष्य और इनके परिवार के बर्बाद होने की चिंता किसी राजनीतिक दल या व्यक्ति को नहीं है। केवल वोट बैंक के डर से दलित, महिला, दबंग शब्द ही इनकी जुबानों की शान हैं। गांव के विलेज बैरिस्टर भी लोगों को आत्मदाह, बिना गिरफ्तारी लाश का अंतिम संस्कार न करने व रोड जाम करने जैसी सलाहें देकर लाशों पर राजनीति करने से नहीं चूकते और हर घटना में यह चीजें आम होती जा रही हैं।

बीते 5 सितंबर को बस्तीदेई के राम प्रसाद को कुछ लोगों ने जलाकर मार दिया । मृतक के लड़के ने अपने विरोधियों पूर्व प्रधान पवन उपाध्याय व वर्तमान प्रधान राजाराम को नामजद किया और पुलिस ने बढ़ती राजनीतिक चालों और गिरफ्तारी बिना अंतिम संस्कार न करने की धमकियों के दबाव में दो निर्दोषों को जेल भेज दिया। ठीक इसी तरह की घटना 29अक्टूबर की शाम बन्दोईया में घटी। मृतक प्रधान पति अर्जुन की मृत्यु के सही कारणों, तथ्यों की जानकारी और सच्चाई पता किये बगैर पुलिस को निर्दोषों की गिरफ्तारी के लिए मजबूर होना पड़ा। मृतक के परिजनों की एक ही रट पहले सब को गिरफ्तार किया जाय तब हम मृतक को दफ़नायेंगे। पुलिस करे तो क्या करें। सांसद का ट्वीट व फोन दबंगों पर कठोर कार्यवाही, प्रभारी मंत्री का लखनऊ से बयान, बसपा सुप्रीमो का बयान, भीम आर्मी की सक्रियता, लखनऊ में बैठे उच्चाधिकारियों के फोन अमेठी पुलिस की सुने तो कौन। पुलिस को एक ही निर्देश गिरफ्तारी और वही हुआ ।

निर्दोष जेल चले गए दोषी पीड़ित परिवार के साथी बने राजनीति की रोटियां सेंकने में लगें हैं। राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि मंडल भी सच्चाई से रूबरू हुए बिना केवल कठोर कार्यवाही की मांग में जुटे हैं। घटना की सच्चाई जानने के लिए पुलिस को निष्पक्ष विवेचना का अधिकार कानून की व्यवस्था है लेकिन राजनीतिक दबाव में गिरफ्तारी करना पड़ता है तो जिस पुलिस ने गिरफ्तारी कर दिया वह कैसे कहे कि विवेचना नहीं मैंने राजनीतिक प्रेसर में जेल भेजा?  निष्पक्ष विवेचना हो कैसे ? बन्दोईया काण्ड में भी कोई निष्पक्ष विवेचना की बात करने को तैयार नहीं है। महिला और दलित मामलों में  विरोधियों के हमलों से घिरी प्रदेश सरकार भी डैमेज कंट्रोल के लिये कठोरतम कार्यवाही के निर्देश देने में लगी है। अमेठी सांसद को उनकी पार्टी का कोई पदाधिकारी व कार्यकर्ता सही तथ्यों से अवगत नहीं करा रहा और अधिकारियों की वे सुनने को तैयार नहीं। घटना के तथ्यों पर नजर डालें तो जिस चौराहे से पांच लोगों द्वारा अपहरण की बात कही जा रही है वहां एक भी व्यक्ति पुष्टि नहीं कर रहा बल्कि सभी का कहना है कि यहां ऐसा कुछ नहीं हुआ।

बल्कि घटना स्थल से वह अपने एक साथी की स्कॉर्पियो में गये थे।कृष्ण कुमार त्रिपाठी के अहाते में जहां रात 10-30 घटना हुई है वहां की सीसीटीवी फुटेज के परीक्षण का पुलिस को मौका क्यों नहीं दिया जा रहा। पुलिस मृतक के मोबाईल की लोकेशन, सीडीआर व बीटीएस निकाल कर सच्चाई तक पहुंच सकती है। मोबाइल की इसी डिटेल से यह भी पता चल सकता है कि क्या ये पांचो नामजद आरोपी मृतक के इर्दगिर्द थे? क्या कोई व्यक्ति किसी को अपहरण करने के बाद अपने अहाते में लाकर जला सकता है?

क्या मारने वाले लोगों के द्वारा ही पुलिस को सूचना दी जाएगी? क्या कोई पिता किसी के अपहरण और हत्या के लिए अपने 16 साल के  मेधावी पुत्र को लेकर जा सकता है जबकि उसके पास पहले से तीन अन्य साथी मौजूद हैं? जिस प्रधान के खिलाफ गांव के 30 से अधिक लोग शिकायत कर जेल भिजवाने में लगे हों उसे जलायेंगे क्यों वह भी अपने घर पर लाकर? ऐसा तो नहीं कि जिन लोगों ने गाँव सभा की प्रधानी की पूरे पैसे में गोलमाल किये,  अब अपने फसने की डर में उसे उकसा कर आत्महत्या करा एक तीर से दो निशाने साध लिए? फिलहाल इन सभी सवालों के जबाब पुलिस की निष्पक्ष विवेचना से ही निकल सकते हैं जो बढ़ते राजनीतिक दबाव में संभव नहीं दिख रहा। एक बार फिर राजनीति की बलि वेदी पर पांच निर्दोषों की बलि चढ़ चुकी है।