कार्तिक पूर्णिमा: लोगो ने लगाई आस्था की डुबकी, स्न्नान पूजा पाठ कर किया दान


ज्ञान प्रकाश अवस्थी
कानपुर।कार्तिक मास की सबसे बड़ी पूर्णिमा पर पूरे देश लोगो ने मनाई।वही उत्तर प्रदेश के लोग आज कानपुर, अयोध्या, प्रयागराज, वाराणसी, हापुड़ सहित अन्य जिलों में नदियों में आस्था की डुबकी लगा रहे हैं। देवों का महीना माने जाने वाले कार्तिक में दान, धर्म, जप, तप, दीपदान का खास महत्व है। इसी कारण लोग गंगा, यमुना, सरयू तथा गोमती के साथ अन्य नदियों में स्नान करने के बाद पूजा-पाठ तथा दान करते हैं। कार्तिक में जो लोग पूरे महीने दान व पुण्य नहीं कर पाते हैं वो आज के दिन दान-पुण्य करते है। जो लोग ऐसा करते हैं उनके सारे कष्टों का निवारण हो जाता है।

कार्तिक पूर्णिमा का पर्व सोमवार को धूमधाम से मनाया गया । ऐसे में जिला प्रशासन ने सिर्फ गंगा स्नान की छूट दी थी । सभी प्रकार के मेले के आयोजन पर रोक जारी की गई थी। डीएम आलोक तिवारी ने बताया कि कोविड को देखते हए शासन ने सावर्जनिक आयोजन पर पूरी तरह रोक लगादी है। ये इस लिये किया गया कि लोगो को संक्रमण बचा जा सके।जो लोग गंगा स्नान और मंदिर जाने वाले भी मास्क जरूर पहन कर आये। वही कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गंगा सुरक्षा दल के सदस्यों ने बिठूर के घाटों पर स्वछता अभियान चलाया । ब्रम्हावर्त घाट ,तुलसी घाट,सीता घाट, महिला घाट ,बारादारी घाट, पर सफाई अभियान चलाया। वही कोविड 19 की गाइड लाइन के तहत आने वाले भक्तों को मास्क लगाना और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना अनिवार्य किया गया। बिठूर में गंगा स्न्नान के लिए लोग मास्क लगाकर आये साथ मे सेनेटाइजर भी लाये। प्रशासन ने लगातार सोशल डिस्टेंनसिंग का पालन करने के लिए लगातार एलाउंस भी किया। वही वाहनों के लिए पार्किंग की व्यवस्था भी की गयी थी।

-कुछ घाटों पर स्नान की इजाजत नही थी
बिठूर के कई घाटों पर स्न्नान प्रतिबंध रहा। जिनमे कौरव-पांडव घाट,भैरव घाट, और आधे सीता घाट को प्रतिबंधित किया गया। वही कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर सरसैया घाट में बड़ी संख्या में लोगो ने किया स्नान

-कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान का सबसे बड़ा महत्व होता है

कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली भी कहा जाता है। इस दिन दीपदान का बड़ा महत्व है। इससे अक्षय पुण्यफलों की प्राप्ति होती है और भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूर्ण कृपा प्राप्त होने से धन-संपत्ति के भंडार भर जाते हैं।

कार्तिक पूर्णिमा का ये है महत्व-

ब्रह्माजी का वरदान पाकर तारकाक्ष, कमलाक्ष व विद्युन्माली बहुत प्रसन्न हो गए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। उनमें से एक सोने का, एक चांदी का व एक लोहे का था। सोने का नगर तारकाक्ष का था, चांदी का कमलाक्ष का व लोहे का विद्युन्माली का। पराक्रम से इन तीनों ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। इन दैत्यों से घबराकर इंद्र आदि सभी देवता भगवान शंकर की शरण में गए। देवताओं की बात सुनकर भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद भगवान विश्वकर्मा ने भगवान शिव के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया। चंद्रमा व सूर्य उसके पहिए बने।

इंद्र, वरुण, यम और कुबेर आदि लोकपाल उस रथ के घोड़े बने। हिमालय धनुष बने और शेषनाग उसकी प्रत्यंचा। स्वयं भगवान विष्णु बाण तथा अग्निदेव उस बाण की नोक बने। उस दिव्य रथ पर सवार होकर जब भगवान शिव त्रिपुरों का नाश करने के लिए चले तो दैत्यों में हाहाकर मच गया। दैत्यों व देवताओं में भयंकर युद्ध छिड़ गया। जैसे ही त्रिपुर एक सीध में आए, भगवान शिव ने दिव्य बाण चलाकर उनका नाश कर दिया। त्रित्रुरों का नाश होते ही सभी देवता भगवान शिव की जय-जयकार करने लगे। त्रिपुरों का अंत करने के लिए ही भगवान शिव को त्रिपुरारी भी कहते हैं।