
- न0पं0 में ’’अन्धा बांटे रेवडी, अपन अपन को देय’’ की तर्ज पर दिये जा रहे हैं पीएम आवास
- गरीबों की पहचान पत्रकारों को होती है तो सरकारी कर्मचारियों और जनप्रतिनिधियों को क्यों नहीं
मुकेश चतुर्वेदी/अनिरूद्ध दुवे
किशनी/मैनपुरी – प्रधानमंत्री आवासों में जमकर धन की उगाही की गई। इसकी शिकायत समाधान दिवस के दौरान डीएम तक भी पहुंचाई गई पर उक्त प्रकरण की न तो गहराई से जांच की गई ना ही कोई कार्यवाही। यदि कार्यवाही की गई होती तो आज कर्ज में डूबे किसानों को भी आवास का लाभ मिल गया होता।
नगर पंचायत के अन्तर्गत आने वाले लोगों को आवास बनाने के लिये सरकार द्वारा ढाई लाख रूपयों की मदद की घोषणा की गई है। पर सरकारी तन्त्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण आवासों का पैसा सही व पात्र लोगों के हाथों में पहुंचने के जगह धनी, साधन सम्पन्न लोगों के हाथों में ज्यादा पहुंच रहा है। इसमें ऐसे लोग भी हैं जिनके पास निजी वाहन हंै। दो मंजिले मकान हैं। मुख्य मार्ग पर दुकानें हैं। पक्के मकान हैं। और तो और कई लोगों ने पीएम आवास अपने अपने खेतों में बना लिये हैं जहां कोई रहता भी नहीं है। इसके लिये सर्वेयरों ने जमकर सरकारी तन्त्र का दुरूपयोग किया और अपने खासमखास व चहेतों को आवास की किस्त देदी। इसके लिये डूडा विभाग में बैठे लोग भी कम जिम्मेदार नहीं है। वह उसी का पैसा खाते में डालते हैं जिसका पैसा उनकी जेब में पहुंच जाता है। हालांकि अब जांच एसडीएम के स्तर से हो रही है पर एक एसडीएम के लिये यह सम्भव भी नहीं है कि वह हर लाभार्थी के घर जाकर उसकी पात्रता का सही आंकलन करे। यहीं से भ्रष्टाचार की शुरूआत हो जाती है। जो लाभ देता है उसका आवास कुपात्र होते हुये भी पात्रता की श्रेणी में रखा जाता है। पर जो पैसे नहीं देता अथवा दलाल को यह आशंका होती है यह शिकायत कर सकता है उससे न पैसे मांगे जाते हैं ना ही उसे आवास दिया जाता है। ढाई लाख का लालच तथा रिकवरी की धमकी लाभार्थी के मुंह पर ताला लगा देता है। वह यह बताने की हिम्मत नहीं जुटा पाता कि उससे आवास के बदले मोटी रकम वसूली गई है।
क्या कर्ज में डूबे किसान को पैसे वाले व कुपात्र की श्रेणी में रखा जाना उचित है ?
किशनी – नगर पंचायत के गांव चन्द्रपुर में दो मंजिला व पक्के मकान मालिकों को प्रधानमंत्री आवासों का उपहार सरकार द्वारा दिया गया है। पर उसी गांव में रहने वाले गरीब किसान जिसने अपनी गरीबी और कर्ज से तंग आकर फांसी का फंदा चूमने जैसा कृत्य करने का दुस्साहस किया था वह आवास के लिये परेशान है। वीरेन्द्र शाक्य पुत्र महीपत सिंह का कच्चा मकान चार वर्ष पूर्व अचानक ढह गया था। दो वर्षों तक उन्होंने पडोसी की दीवार पर पॉलिथिन डाल कर जीवन के कष्टमय दिन अपने परिवार जिसमें तीन पुत्र राजीव, अखिलेस तथा अवनीस, पत्नी संतोष कुमारी, दो पुत्र वधुयें बबिता व शीलेष तथा चार पोते, पोतियों के साथ गुजारे। इसके बाद उन्होंने बैंक से साढे तीन लाख तथा महाजन से पचास हजार रूपये लेकर दो कमरे और मकान का घेरा बना लिया। मकान गिरने व कर्जा हो जाने से हुये सदमे के कारण संतोष कुमारी को हार्ट अटैक पडा और वह चल बसीं। इसके बाद एक दिन वीरेन्द्र ने भी जब सारे लोग सो रहे थे कमरे में जाकर फांसी का फंदा चूम लिया।
पर अचानक पुत्र वधुओं को पता चल गया और दोनों ने कहा कि सारे लोग मिलकर मजदूरी करेंगे और कर्ज उतार देंगे। तब जाकर उनकी जान बचा सकी। अब दो पुत्र अपनी पत्नियों के साथ कमरों में रहते हैं जबकि वीरेन्द्र आज भी घर में पड़े छप्पर के नीचे रात गुजारने को मजबूर हैं। दो लडके बाहर रहकर मजदूरी करते हैं तो एक लडका व स्वयं वीरेन्द्र बटाई पर खेती और मजदूरी करते हैं। उनका कहना है कि गांव में सभी को आवास दिये गये पर उन्हैं आज तक आवास नहीं दिया गया। रीडर्स मैसेंजर्स लगातार ऐसे मजलूमों की आवाज उठाता रहा है। आगे भी हमारी मुहिम जारी रहेगी।