लगभग 1100 साल पहले तमिलनाडु के इस मंदिर पर लिखे गये थे चुनाव के कायदे-कानून…

तमिलनाडु (Tamilnadu) की राजधानी चेन्नई से लगभग 90 किलोमीटर दूर एक प्राचीन स्थान उथिरामेरुर (Uthiramerur) है, जिसे लंबे समय से लोकतंत्र का जन्मस्थान माना जाता है. हालांकि बहुत से लोग इस परंपरा से अवगत नहीं हैं. उथिरामेरुर मंदिर शहर मदुरंतकम से लगभग 25 किमी दूर स्थित है, जहां से तीन दशक पहले तमिलनाडु की मुख्यमंत्री और अन्नाद्रमुक प्रमुख जे जयललिता ने अपना पहला चुनाव अभियान शुरू किया था.

1250 साल पुराना है कांचीपुरम से 30 किमी दूर उथिरामेरूर

तमिलनाडु के प्रसिद्ध कांचीपुरम से 30 किमी दूर उथिरामेरूर नाम का गांव करीब 1250 साल पुराना है. लगभग 1100 साल पहले, गांव में एक आदर्श चुनावी प्रणाली थी और चुनाव के तरीके को निर्धारित करने वाला एक लिखित संविधान था. यह लोकतंत्र के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है. यहां वैकुंठ पेरुमल (विष्णु) मंदिर के मंच की दीवार पर, चोल वंश के राज्य आदेश वर्ष 920 ईस्वी के दौरान दर्ज किए गए हैं. इनमें से कई प्रावधान मौजूदा आदर्श चुनाव संहिता में भी हैं. यह ग्राम सभा की दीवारों पर खुदा हुआ था, जो ग्रेनाइट स्लैब से बनी एक आयताकार संरचना थी.

सैकड़ों साल पहले कुछ ऐसे थे कायदे-कानून

सदियों पहले, उथिरामेरुर के 30 वार्डों के 30 जन प्रतिनिधियों को मतपत्र द्वारा चुना गया था. शिलालेख वार्ड्स के गठन, चुनाव के लिए खड़े उम्मीदवारों की योग्यता, अयोग्यता मानदंड, चुनाव का तरीका, निर्वाचित सदस्यों के साथ समितियों के गठन, ऐसी समितियों के कार्यों और गलत-कर्ता को हटाने की शक्ति के बारे में विवरण देता है. ग्रामवासियों को यह भी अधिकार था कि यदि वे अपने कर्तव्य में विफल रहे तो निर्वाचित प्रतिनिधियों को वापस बुला सकते हैं. कहा जाता है कि पद पर रहते वक्त भ्रष्टाचार, घूसखोरी करने पर ताउम्र तक अयोग्य साबित कर दिया जाता था.

उथिरामेरुर, चेन्नई से लगभग 90 किमी दूर कांचीपुरम जिले में स्थित है. पल्लव राजा नंदीवर्मन द्वितीय ने इसे 750 ईस्वी के आसपास स्थापित किया था, इससे पहले यह एक ब्राह्मण बस्ती के रूप में अस्तित्व में था. इस पर पल्लवों, चोल, पांड्यों, सांबुवरयारों, विजयनगर रायों और नायकों का शासन रहा. कहा जाता है कि राजेंद्र चोल और विजयनगर सम्राट कृष्णदेव राय दोनों ने उथिरामेरूर का दौरा किया था.

मंदिर के शिलालेखों पर लिखे हैं चुनाव प्रक्रिया

शिलालेखों के अनुसार, एक विशाल मिट्टी का बर्तन (कुदम) जो मतपेटी के रूप में काम करता था, उसे शहर या गांव के एक महत्वपूर्ण स्थान पर रखा जाता था. मतदाताओं को अपने इच्छित उम्मीदवार का नाम एक ताड़ के पत्ते (पनई ओलाई) पर लिखना था और उसे कुदम में डालना था. प्रक्रिया के अंत में, पत्तों को मतपेटी से निकालकर उनकी गिनती की जाती थी. जिसे सर्वाधिक मत प्राप्त होते थे, उसे ग्राम सभा का सदस्य चुना लिया जाता था. इतना ही नहीं, पारिवारिक व्यभिचार या दुष्कर्म करने वाला 7 पीढ़ी तक चुनाव में शामिल होने से अयोग्य हो जाता था.

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