बैंक मित्र लूट हत्याकांड फॉलोअप, पुलिस के हाथ अभी भी खाली

सांडा–सीतापुर। रामपुर कलां थाना क्षेत्र में बिसवां के ब्रम्हपुरवापुरवा निवासी बैंक मित्र अंबुज वर्मा की लूट के दौरान गोली मारकर हत्या किये जाने के गम से परिजन उबर नहीं पा रहे हैं। मृतक अंबुज वर्मा के पिता महेशचंद्र वर्मा जो 14 बीघा खेती बाड़ी से सात सदस्यों के परिवार का भरण पोषण करते थे। पाँच वर्ष पूर्व एक सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई थी। पति की मौत के बाद मां लाजवंती ने अपने तीन बेटे और दो बेटियों की कठिन परिस्थितियों में परवरिश की। मृतक अंबुज वर्मा के दो बड़े भाई पंकज वर्मा और नीरज वर्मा हैं। जिनमें पंकज वर्मा विवाहित हैं। दो छोटी बहने सोनल और सपा हैं, जो पढ़ाई कर रही हैं। दोनों बड़े भाई खेती बाड़ी का काम देखते हैं। जिसमें मां के साथ दोनों बहनों का भी सहयोग मिलता है। अंबुज ने इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी करने के साथ ही बैंक आफ इंडिया का ग्राहक सेवा केंद्र ले लिया था। इटिया शहीद चौराहे पर ग्राहक सेवा केंद्र का संचालन करने लगा। अम्बुज का काम अच्छा था। जिससे समय के साथ ग्राहकों की संख्या बढ़ती गई और प्रतिदिन लाखों का लेनदेन होने लगा।
अंबुज की कमाई से परिवार को मिला था बडा सहारा
अंबुज के द्वारा संचालित बैंक ऑफ इंडिया के ग्राहक सेवा केंद्र से होने वाली आमदनी परिवार के लिए एक बड़ी सहारा बन गई थी। जिससे दोनों छोटी बहनों की पढ़ाई भी पूरी हो रही थी। अब पिता की मौत के बाद कमाऊ पूत की मौत पूरे परिवार का एक बड़ा सहारा छीन ले गई है।
समय से मिल पाता इलाज तो बच सकती थी जान
लूट के दौरान लुटेरों ने अम्बुज को बहुत निकट से पेट में गोली मारी थी, जो पेट के आर-पार निकल गई थी। गोली लगने के बाद बाइक चला रहे बड़े भाई पंकज ने कई राहगीरों से मदद मांगी लेकिन किसी ने मदद नहीं की। काफी देर बाद सूचना मिलने पर परिजनों के साथ ग्रामीण मौके पर पहुँचे तब अम्बुज को इलाज के लिए से सीएचसी बिसवां ले जाया गया। जहां चिकित्सकों ने प्राथमिक उपचार के बाद अम्बुज की हालत नाजुक देखते हुए उसे ट्रामा सेंटर लखनऊ रेफर कर दिया। जहाँ ऑपरेशन के दौरान अम्बुज की मौत हो गई। अंबुज का इलाज करने वाले चिकित्सकों का कहना था कि 2 घंटे पहले आ जाते तो जान बच सकती थी।
गहरे सदमे से उबर नहीं पा रहा परिवार।
अंबुज की लूट के दौरान लुटेरों के द्वारा गोली मारकर हत्या किये जाने से पूरा परिवार इस गहरे सदमें से उबर नहीं पा रहा है। बड़े भाइयों के साथ मां और बहनें पूरी तरह से टूट चुकी हैं। आंखों से बहते आंसू सूख चुके हैं। पथराई आंखों में किसी के घर वापस लौटने की उम्मीद भी अब शायद बाकी नहीं बची है।