हिंदुओं ( यानि सनातन धर्म Sanatan Dharm ) में शक्ति की पूजा के साल में चार पर्व नवरात्रि ( Navratri ) के रूप में मनाए जाते हैं। इनमें से जहां दो पर्व चैत्र व शारदीय नवरात्र के रूप में मनाए जाते हैं, वहीं अन्य दो गुप्त नवरात्र कहलाते हैं। इनमें से चैत्र नवरात्रि हिंदू-कलैंडर ( hindu calendar ) के हिसाब से चैत्र माह में आतीं है और इसी दिन से हिंदुओं का नववर्ष यानि नवसंवत्सर भी शुरु होता है। इस साल यानि 2022 में चैत्र नवरात्र (Chaitra Navratri 2022) शनिवार ( saturday ) 2 अप्रैल से शुरू हो रहे हैं।
नवरात्रि के नौ दिनों में भक्तों द्वारा मां दुर्गा की उपासाना, आराधना की जाती है, साथ ही उन्हें हर रोज अलग-अलग स्वरूप के तहत अलग-अलग तरह के पुष्प और नैवेद्य अर्पित किया जाता है। ऐसे में आज हम आपको नवरात्रि की नौ देवियों के स्वरूप व नौ दिन में कौन-से पुष्प व कौन सा भोग किस माता रानी को अर्पित व लगाना चाहिए इस संबंध में बता रहे हैं
1. नवरात्रि का प्रथम दिन: देवी शैलपुत्री का स्वरूप-
मान्यता के अनुसार आदि शक्ति ने अपने इस रूप में शैलपुत्र हिमालय के घर जन्म लिया था, इसी कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। शैलपुत्री नंदी नाम के वृषभ पर सवार होती हैं और इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं। दुर्गाजी पहले स्वरूप में ‘शैलपुत्री’ के नाम से जानी जाती हैं। ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है।
देवी शैलपुत्री का प्रिय पुष्प : गुड़हल।
देवी शैलपुत्री नैवेद्य : शुद्ध घी।
2. नवरात्रि का दूसरा दिन : देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप-
माता ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र में सुशोभित हैं, उनके दाहिने हाथ में जप माला और बायें हाथ में कमण्डल है। देवी का स्वरूप अत्यंत तेज़ और ज्योतिर्मय है। साथ ही देवी प्रेेम स्वरूप भी हैं।
माता ब्रह्मचारिणी का प्रिय पुष्प : सेवंती/ गुलदाउदी।
माता ब्रह्मचारिणी के लिए नैवेद्य- शक्कर, मिश्री।
3. नवरात्रि का तीसरा दिन : देवी चंद्रघंटा का स्वरूप-
मां चंद्रघंटा इस स्वरूप में सिंह पर विरजमान हैं साथ ही इनके 10 हाथ हैं। जिनमें से इनके चार हाथों में कमल फूल, धनुष, जप माला और तीर है, जबकि पांचवां हाथ अभय मुद्रा में रहता है। इसके अलावा चार अन्य हाथों में त्रिशूल, गदा, कमंडल और तलवार मौजूद होने के साथ ही पांचवा हाथ वरद मुद्रा में है। माता का यह रूप भक्तों के लिए बेहद कल्याणकारी माना गया है।
देवी चंद्रघंटा का प्रिय पुष्प : कमल।
देवी चंद्रघंटा के लिए नैवेद्य- दूध, दूध की मिठाई।
4. नवरात्रि का चौथा दिन : देवी कूष्मांडा का स्वरूप-
इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है। मां की आठ भुजाएं हैं। अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। दुर्गा सप्तशती के अनुसार देवी कूष्माण्डा इस चराचार जगत की अधिष्ठात्री हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है। कूष्मांडा का मतलब है कि जिन्होंने अपनी मंद (फूलों) सी मुस्कान से सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड को अपने गर्भ में उत्पन्न किया।
देवी कूष्मांडा का प्रिय पुष्प : चमेली।
देवी कूष्मांडा के लिए नैवेद्य : मालपुआ।
5. नवरात्रि का पांचवा दिन : देवी स्कंदमाता का स्वरूप-
मां स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। देवी दो हाथों में कमल, एक हाथ में कार्तिकेय और एक हाथ से अभय मुद्रा धारण की हुईं हैं। कमल पर विराजमान होने के कारण देवी का एक नाम पद्मासना भी है। माता की पूजा से भक्तों को सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। देवी की सच्चे मन से पूजा करने पर मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। देवी के इस रूप को अग्नि देवी के रूप में भी पूजा जाता है। जैसा की मां ममता की प्रतीक हैं, इसलिए वे भक्तों को प्रेम से आशीर्वाद देती हैं।
देवी स्कंदमाता का प्रिय पुष्प : पीले फूल।
देवी स्कंदमाता का नैवेद्य : केला।
6. नवरात्रि का छठा दिन : देवी कात्यायनी का स्वरूप-
दिव्य रुपा कात्यायनी देवी का शरीर सोने के समाना चमकीला है। चार भुजाधारी मां कात्यायनी सिंह पर सवार हैं। अपने एक हाथ में तलवार और दूसरे में अपना प्रिय पुष्प कमल लिए हुए हैं। अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं। इनका वाहन सिंह हैं।
देवी कात्यायनी का प्रिय पुष्प : गेंदा।
देवी कात्यायनी का नैवेद्य : शहद।
7. नवरात्रि का सातवा दिन : देवी कालरात्रि का स्वरूप-
मां दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। मां कालरात्रि के पूरे शरीर का रंग एक अंधकार की तरह है, इसलिये शरीर काला रहता है। इनके सिर के बाल हमेशा खुले रहते हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्मांड के सदृश गोल हैं। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें नि:सृत होती रहती हैं। मां की नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ (गदहा) है। ये ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं।
देवी कालरात्रि का प्रिय पुष्प : कृष्ण-कमल।
देवी कालरात्रि का भोग- गुड़।
8. नवरात्रि का आठवां दिन : देवी महागौरी का स्वरूप-
मां की वर्ण पूर्णत: गौरवर्ण है। इनके गौरता की उपमा शंख, चन्द्र और कुन्द के फूल से दी जाती है। आठ वर्षीय महागौरी के समस्त वस्त्र तथा आभूषण आदि भी श्वेत हैं। इनकी चार भुजाएं है तथा वाहन वृषभ (बैल) है। मां की मुद्रा अत्यन्त शांत है और ये अपने हाथों में डमरू, त्रिशूल धारण किए वर मुद्रा और अभय-मुद्रा धारिणी है।
देवी महागौरी का प्रिय पुष्प : चमेली, बेला।
देवी महागौरी का नैवेद्य- नारियल।
9. नवरात्रि का नौवां दिन : देवी सिद्धिदात्री का स्वरूप-
मां सिद्धिदात्री कमल के फूल पर विराजमान हैं और उनकी चार भुजाएँ हैं। मां सिद्धिदात्री की सवारी सिंह हैं। देवी ने सिद्धिदात्री का यह रूप भक्तों पर अनुकम्पा बरसाने के लिए धारण किया है। देवता, ऋषि-मुनि, असुर, नाग, मनुष्य सभी मां के भक्त हैं।
देवी सिद्धिदात्री का प्रिय पुष्प : चंपा।
देवी सिद्धिदात्री का भोग : तिल।