
भास्कर समाचार सेवा
मुरादाबाद। कर्मचारियों के परिजन पिछले आठ माह से मिल के गेट के आगे लगातार धरना देते चले आरहे है ।लेकिन आज तक प्रशासन मौन है। ज़िले में इतने लंबे समय से चल रहे धरने की कहानी कर्मचारियों की जुबानी कुछ इस तरह है । 1975 कम्पनी के स्थापना के समय इस फैक्ट्री का नाम यू0पी0स्ट्रॉ0एण्ड0ऐग्रो0प्रा0लिमिटेट अगवानपुर मुरादाबाद था ।
परन्तु श्रम विभाग की मिलीभगत व रिश्वत के चलते 326 कर्मचारियों के पेट पर लात मार के निकल दिया गया था । जहाँ पैसा होता हैं वहाँ इंसाफ कहा बेचारे निकले गए ।मजदूर पिछले 21 वर्षों से रोटियों के मोहताज बने हुए हैं और न्याय के लिए दर दर की ठोकरे खा रहे हैं ।परंतु श्रम विभाग और लोकतंत्र के स्तम्भों से इन्हें न्याय नही मिला ।
कुछ तथ्य इस प्रकार है । 1995 में इस फैक्ट्री का नाम बदल कर डी0एस0एम0एग्रो0प्रा0ली0अगवानपुर मुरादाबाद कर दिया गया । 20/7/21 को फैक्ट्री प्रबन्धको ने श्रम विभाग की मिलीभगत के चलते हैं 282 कर्मचारियों की फर्जी सूची बनाकर अवैधानिक स्थाई बंदी कर दी। अवैधानिक स्थाई बंदी के दिन भविष्य कर्मचारी भविष्य निधि संगठन श्रम मंत्रालय भारत सरकार के उप क्षेत्रीय कार्यालय बरेली से प्राप्त सूची में कर्मचारियों की संख्या 326 थी। जिससे साफ स्पष्ट होता है कि मिल प्रबन्धकोंको ने उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद 1947 के प्रावधानों का स्पष्ट उल्लंघन किया था।
यूपी इंडस्ट्रियल डिस्ट्रीब्यूटर की धारा छह के अनुसार यदि फैक्ट्री में कर्मचारियों की संख्या 300 या उससे अधिक है तो स्थाई बनने से पहले सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य है फैक्ट्री डायरेक्टर ओम नारायण द्वारा स्थाई बंदी का नोटिस 20/7 /2007 में स्पष्ट लिखा था । कि सरकार से कोई अनुमति नहीं ली गयी फैक्ट्री प्रबंधक प्रशासन एस0पी0सिन्हा ने 282 कर्मचारियों की फर्जी सूची बनाकर श्रम प्रवर्तन अधिकारी अखलाक अहमद से निरीक्षण करा के उप श्रमायुक्त मैडम रीता भदोरिया से सांठगांठ करके फर्जी सूची का सत्यापन करा दिया था। स्थाई बंदी की तारीख से आज तक एसपी सिन्हा द्वारा 6 सूची कर्मचारियों की ओर उपश्रमायुक्त द्वारा कर्मचारियों को आरटीआई के माध्यम दी गई और हर सूची में कर्मचारियों की संख्या में अंतर रहा ।
प्रबंधक प्रशासन एस0पी0सिन्हा ने दिनांक 15 अगस्त 2001 को एक पत्र अपने हस्ताक्षर करके उप श्रम आयुक्त मुरादाबाद के यहां प्रेषित किया जिसमें लिखा स्थाई बंदिश घोषित करने के उपरांत फैक्ट्री में कार्यकर्त सभी श्रमिकों व कर्मचारियों को भुगतान मय बंदी मुआवजा के साथ पूर्ण रूप से अदा कर दिया गया जबकि किसी भी कर्मचारियों को कोई भी भुगतान नहीं दिया गया यह प्रबंधकों की श्रम विभाग की मिलीभगत से सिर्फ कागजों में ही दर्शाया गया था । इस स्थाई बन्धी के शिकार कर्मचारियों ने कर्मचारी भविष्य निधि श्रम मंत्रालय भारत सरकार के उप क्षेत्रीय से प्राप्त प्रमाण पत्र के साथ एक प्रार्थना पत्र 13 /11 /2009 को उप श्रम आयुक्त मुरादाबाद 16 /11/ 2009 को श्रम आयुक्त कानपुर को डाक द्वारा देकर 326 स्थाई कर्मचारियों की ड्यूटी बहाली में स्थाई बंदी को अवैधानिक घोषित करने की मांग की थी लेकिन दोनों ने कोई कार्यवाही नहीं की स्थाई से 326 कर्मचारियों में से लगभग 82 कर्मचारियों की बेरोजगारी से तंग आकर आत्महत्या या दम तोड़ चुके हैं और यह संख्या बढ़ने पर है।
दिनांक 4/04/12 को कर्मचारियों ने एक प्रार्थना पत्र महामहिम राज्यपाल उत्तर प्रदेश सरकार को कर्मचारियों के साथ हुई फैक्ट्री प्रबन्धकों के साथ साथ श्रम विभाग की मिलीभगत की शिकायत की थी। राज्यपाल उत्तर प्रदेश सरकार ने कार्रवाई के लिए श्रमायुक्त कानपुर को अग्रेषित कर दिया था। दिनांक 11 /09/12 को इन कर्मचारियों के लिए लड़ने वाले सुधीर सक्सेना से उप श्रमायुक्त कानपुर प्रदीप श्रीवास्तव ने शपथ पत्र पर सबूत प्रस्तुत करने का पत्र भेजा गया जिसके जवाब में सुधीर सक्सेना ने 219 12 को शपथ पत्र के साथ-साथ सबूत पंजीकृत डाक द्वारा भेज दिए । दिनांक 20 /11/12 को श्रमायुक्त कानपुर ने अपने पत्र में वर्णित बिंदुओं पर अग्रसर कार्यवाही प्रक्रिया प्रकरण में मा0ओधोगिक न्यायाधिकरण मेरठ द्वारा अभिनिरण्य पारित होने के उपरांत विचारणीय तदनुसार शिकायती प्रकरण का निस्तारण कर दिया था। स्थाईबन्धी से प्रभावित कर्मचारियों के अनुसार कर्मचारियों के नेता मदन लाल शर्मा ने औद्योगिक न्यायाधिकरण मेरठ में सी0वी03/ 18 अभिनिरण्य बिबाद 2/2010 में अबिधिक तालाबन्धी का शपथ पत्र देकर श्रम विभाग व फैक्टरी प्रबन्धकों को बचा लिया था। स्थाई बंदी से प्रभावित कर्मचारियों ने थक कर एक प्रार्थना पत्र दिनांक 25/09/13 को राष्ट्रपति को दिया 8/10 /13 को राष्ट्रपति कार्यालय से उक्त कार्रवाई करने के लिए मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश सरकार को भेजा गया ।
कार्यालय मुख्यमंत्री लोक शिकायत अनुभाग 2 के अवध नारायण अनु सचिब जन सूचना अधिकारी ने आयुक्त औद्योगिक विकास के पास भेज कर लीपापोती कर दी। इसके बाद फैक्ट्री प्रबंधकों द्वारा स्थाई बन्धी से प्रभावित कर्मचारियों ने प्रधानमंत्री को एक पत्र भेजा उस पर प्रधानमंत्री कार्यालय से दिनांक 9/01/17 को आदेश हो गया जिसको मुख्य सचिव कार्यालय के जवाहरलाल दबा कर बैठ गई और कोई कार्यवाही नहीं की गयी। जिसकी सूचना 30/03/ 17 को मुख्यमंत्री को उनके फैक्स द्वारा कर्मचारियों द्वारा दी गई । दिनांक/20/ 4/ 2017 को मुख्यमंत्री को एक प्रार्थना पत्र में प्रधानमंत्री कार्यालय के आदर्शों के साथ पंजीकृत डाक द्वारा पुनः प्रेषित किया गया ।
बार बार मुख्यमंत्री द्वारा जनता दरबार में उक्त विवाद के निस्तारण के आदेश हुए लेकिन उप श्रम आयुक्त एम एल चौधरी ने फर्जी सूचियों का ब्यौरा लिखकर निस्तारण कर दिया 21 वर्ष लंबे समय में 326 कर्मचारियों के साथ फैक्ट्री प्रबंधको के द्वारा धोखाधड़ी व इनकी कानूनी कार्यवाही में श्रम विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत के साथ-साथ फैक्ट्री का नाम डी0इस0एम0 से बदल कर कैलाश पेपर मिल हो गया और वर्तमान में इसका नाम जीनस पेपर मिल हैं ।
और ये फैक्ट्री इसी नाम से उत्पादन कर रही है । इतने लंबे समय मे फैक्ट्री का नाम तो की बार बदला।लेकिन प्रबन्धक नही इतने लंबे समय इतनी कानूनी कार्रवाई के बाद भी इन कर्मचारियों की कोई सुध लेने को तैयार नहीं है।
शेष अगले अंक में