एक मई को पूरी दुनिया में मज़दूर दिवस या मई दिवस के रुप में मनाया जाता है। लेकिन क्या आपने कहीं सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? क्यों सारी दुनिया एक मई को एक ऐसी तारीख के रूप में मनाती है जिससे समाज का सबसे कमजोर तबका जुड़ा है। बस ये सोच का फर्क है जिस तबके हो हम मजदूर समझ कर समाज में सबसे कमजोर तबका मान लेते हैं वाकई वह तबका शायद दुनिया के सबसे मजबूत लोगों की जमात है।
आज हम जिस ऐशो आराम भरी जिंदगी के आदी हो गए हैं उसे मानव इतिहास में इस मुकाम तक लाने में असंख्य मजदूरों ने अपना खून और पसीना बहाया है। आइए जानते हैं एक मई को आखिर मजदूर दिवस क्यों मनाया जाता है? जैसा कि हम सभी जानते हैं कि कई देशों में इस दिन छुट्टी होती है लेकिन किसी एक घटना से इसे मजदूर दिवस मनाने का कोई सीधा-साधा संबंध नहीं है। तो फिर आखिर 1 मई का मजदूरों से क्या संबंध है?
इस समझने के लिए हमें पड़ेगा इतिहास के पन्नों को खंगालने। वहां हम पाते हैं कि साल 1886 में शिकागो के बाज़ार में मज़दूरों का एक प्रदर्शन हुआा। दरअसल शिकागो के हेमार्केट में मज़दूर एक दिन में आठ घंटे काम करने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे थे। उसी दौरान प्रशासन ने मजदूरों के इस प्रदर्शन से निपटने के लिए पुलिस को फायरिंग के आदेश दे दिए। देखते ही देखते गोलियां चलने लगी और कई मजदूर अपनी जान गंवा बैठै।
पुलिस की यह कार्रवाई जिस तारीख को हुई थी वह एक मई ही था। इस घटना के बाद भी 1889 से लेकर 1890 तक अलग अलग देशों में मज़दूरों ने काम के घंटे को आठ घंटे तक सीमित करने की मांग पर व्यापक प्रदर्शन किए। ब्रिटेन के हाइड पार्क में 1890 की पहली मई को तीन लाख मज़दूरों ने संगठित होकर प्रदर्शन किया। इन्हीें आंदोलनों का नतीजा था कि दुनियाभर में काम करने का औसत समय 8 घंटे तय किया गया। इसी कारण आज भी हर दफ्तर में ड्यूटी की शिफ्ट आठ घंटे की होती है। ऐसे में 1 मई दुनिया में काम करने वाले हर आदमी से जुड़ा है, इसका फायदा दुनिया के हर कामगार यानी हमको-आपको सभी को मिल रहा है।
भविष्य में यूरोपीय देशों में इस मांग ने जोर पकड़ लिया कि शिकागो में पुलिस की गोली से मारे गए मजदूरों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाया और कामगारों के सभी प्रतिष्ठान इन दिन जान देने वालो मजदूरों के सम्मान में बंद रखे जाएं। धीरे-धीरे इस बात पर सहमति बन गयी और एक मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
पर समय के साथ-साथ एक मई अर्थात मई दिवस का स्वरुप बदलता गया और धीरे-धीरे यह सिर्फ मजदूरों तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि हर शोषित के लिए न्याय की आवाज उठाने का प्रतीक बन गया।
20 वीं सदी के पहले तीन दशकों 1900 से लेकर 1930 तक के समय काल में यूरोप की सोशलिस्ट पार्टियों ने सरकार और व्यवसायियों के दमन के विरोध के लिए जिस तारीख को चुना गया वह भी एक मई ही था। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान कई बार ऐसा देखा गया कि मई दिवस के दौरान निकाले गए प्रदर्शन व्यापक युद्ध विरोधी प्रदर्शनों में तब्दील हो गए।
इसके बाद के शाषण काल में भी मई दिवस को मजदूरों के शोषण के विरोध में मनाया जाना लगा। जर्मनी के तानाशाह हिटलर के शासनकाल में एक मई को राष्ट्रीय मज़दूर दिवस घोषित किया गया था। वहीं इटली में मुसोलिनी और स्पेन में जनरल फ्रैंको ने मई दिवस मनाने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके विरोध में भी कई हिंसक वारदातों को अंजाम दिया गया।
दूसरा विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद भी कई युरोपीय देशों में एक मई को मजदूर दिवस मनाने का चलन जारी रहा है। एक के बाद एक कई देशों ने इस दिन छुट्टी की घोषणा कर दी। इस दौरान में मजदूरों के समाजिक उत्थान के लिए सरकारी और गैरसरकारी स्तर पर कई सकारात्मक कार्य किए गए। सही मायनों में उनकी बदहाली दूर करने का काम इसी दौर में हुआ।
जब कि किसी शोषण के खिलाफ विरोध की बारी आती थी तो इसके लिए एक मई की तारीख को ही चुना जाने लगा। जिन देशो में पूंजीवाद का विरोध शुरु हुआ तो वहां भी इस आंदोलन को एक मई से ही जोड़ा गया। ब्रिटेन और अमरीका में आक्यूपाई यानी कब्ज़ा करो आंदोलन का स्वरूप भी एक मई से तोड़ते हुए ही तैयार किया गया।
हमारे देश भारत में भी कुछ राज्यों में मई दिवस के दिन छुट्टी होती है लेकिन कई राज्यों में इस दिन कोई छुट्टी नहीं घोषित की गयी है। इस दिन देशभर में ट्रेड यूनियन्स की ओर से धरना प्रदर्शन और कई कार्यक्रम आयोजित करते हैं। कई जगहों पर नेताओं को अपनी नेतागिरी चमकाने का भी मौका उसी दिन मिलता है।