कानपुर। ये है शहर के व्यस्ततम और प्रमुख जगहों में से एक, बजरिया थाना चौराहा पर स्थित नगर निगम की होम्योपैथिक डिस्पेंसरी। इस फोटो में पहली खबर तो ये है कि इस होम्योपैथिक डिस्पेंसरी में पिछले दो-ढाई दशकों से, यानी लगभग 25 वर्षों से कोई डॉक्टर ही नहीं है। केवल एक कम्पाउण्डर या नगर निगम कर्मी है, जो बहुत सालों से अक्सर आकर कुछ देर के लिए डिस्पेंसरी खोलता है, फिर चाय-पानी के बाद डिस्पेंसरी का शटर बैंड करके निकल जाता है। डिस्पेंसरी में विगत कई वर्षों से दवाएं तक नहीं आईं, जो भूले-भटके कोई गरीब मरीज आ भी जाये तो उसको कुछ दवा भी मिल सके। डिस्पेंसरी के दरवाजे पर जो बोर्ड लगा है, वो भी पिछले 45 सालों से बदला नहीं गया। उसपर “कानपुर नगर महापालिका” होम्योपैथिक डिस्पेंसरी लिखा है। यानी बोर्ड तब का है जब कानपुर नगर निगम नहीं था। बोर्ड पर चिड़ियों के घोंसले और धूल जमी है केवल।
फिर जनता सवाल ये भी पूछती है कि भाई डिस्पेंसरी के लिए दशकों से कोई डॉक्टर और दवा का पैसा तक निगम के पास उपलब्ध नहीं है तो फिर इसको खोले रखकर, कर्मचारी नियुक्त कर, सालों से बेवजह पैसा खर्च क्यों किया जा रहा है।
वहीं जिस विशालकाय डबल साइड वाली दुकान में ये डिस्पेंसरी जगह घेरे है, अकेले उसी दुकान को किराए में उठाकर नगर निगम हर माह एक लाख रुपये तक किराया पा सकता है।
नगर निगम की अनदेखी और लापरवाही यहीं खत्म नहीं होती। बजरिया चौराहे पर जिस डबल स्टोरी लंबे-चौंडे भवन में ये डिस्पेंसरी है, उसको रेनोवेट करवाके निगम किराए पर उठेर तो सालाना करोड़ों की आमदनी हो सकती है। फिलहाल तो पूरे मार्केट पर मैकेनिकों और खोमचे वालों ला अवैध कब्जा है।