- शिशुओं के पोषण को लेकर चली आ रही भ्रांतियों पर होगा वार
- मातृ समितियों का पुनर्गठन कर बनाया जाएगा सशक्त
गाजियाबाद । शिशुओं के पोषण को लेकर चली आ रही भ्रांतियों पर वार करने के लिए घर की बड़ी, यानी दादी और नानी को मातृ समितियों में शामिल किया जाएगा। उत्तर प्रदेश शासन ने ऐसी भ्रांतियों पर वार करने के लिए आंगनबाड़ी स्तर पर नए सिरे से मातृ समितियों के गठन के निर्देश दिए हैं। व्यवहार परिवर्तन के लिए मातृ समितियों में ऐसी महिलाओं को शामिल करने के निर्देश दिए गए हैं जिनके बच्चे आंगनबाड़ी केंद्रों में पंजीकृत हैं।
मातृ समिति में शामिल महिलाओं में एक ग्राम सभा की सदस्य होनी आवश्यक है। समिति का चुनाव हर वर्ष ग्राम प्रधान की मौजूदगी में राजस्व अधिकारियों के सहयोग से मुख्य सेविका को करना होता है। समिति को इस बात पर नजर रखनी है कि आंगनबाड़ी केंद्र का संचालन नियमित रूप से हो रहा है या नहीं। इसके अलावा केंद्र से वितरित होने वाले पोषाहार की गुणवत्ता और स्टॉक पर भी समिति नजर रखेगी।
उत्तर प्रदेश शासन की प्रमुख सचिव (बाल विकास एवं पुष्टाहार) मोनिका एस. गर्ग ने सूबे के समस्त जिला कार्यक्रम अधिकारियों को भेजे पत्र में कहा है कि मातृ समितियों को सक्रिय करने के लिए उनका पुनर्गठन किया जाए। हर समिति में 7 से 12 महिलाएं शामिल की जाएं। प्रयास किया जाए कि आंगनबाड़ी केंद्र में पंजीकृत बच्चों की दादी या नानी मातृ समिति में शामिल हो। गाजियाबाद की जिला कार्यक्रम अधिकारी शशि वार्ष्णेय ने बताया कि मातृ समितियां निष्क्रिय हो चली थीं। इन्हें सक्रिय करने के लिए पुनर्गठन के आदेश मिले हैं। उन्होंने बताया कि मातृ समिति में बच्चों की दादी या नानी को जोड़ा जाएगा। इससे सबसे बड़ा फायदा यह मिलेगा कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता दादी और नानी की काउंसिलिंग करके शिशुओं के पोषण के बारे में चली आ रही भ्रांतियों को दूर कर सकेंगी।
इसके अलावा घर की बुजुर्ग महिला को शिशु, किशोरी या फिर गर्भवती महिला के पोषण के बारे में जो जानकारी दी जाएगी, उस पर परिवार में अमल कराना आसान होगा। बता दें कि शिशुओं, गर्भवती महिलाओं एवं किशोरियों के पोषण में सुधार एवं राष्ट्रीय स्वास्थ्य के मानक प्राप्त करने के उद्देश्य से आंगनबाड़ी केंद्रों पर 6 माह से 6 वर्ष तक की आयु के बच्चों, गर्भवती महिलाओं एवं 11 से 14 वर्ष की किशोरियों को अनुपूरक पुष्टाहार, टीकाकरण, स्वास्थ्य जांच, पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा, स्कूल पूर्व शिक्षा समेत कुल छह प्रकार की सेवाएं दी जा रही हैं।
प्रसव के तुरंत बाद का दूध शिशु के लिए अत्यंत जरूरी :
जिला कार्यक्रम अधिकारी शशि वार्ष्णेय ने बताया कि गांव-देहात में अब भी प्रसव के कई घंटों तक शिशु को मां का दूध नहीं पिलाया जाता। जबकि प्रसव के तुरंत बाद का दूध शिशु के पोषण के लिए अत्यंत जरूरी है। यह शिशु की कई बीमारियों से रक्षा करता है। यह गाढ़ा पीला होता है। इसे पहला टीकाकरण भी कहा जाता है। शिशुओं की वृद्धि में सहायक सारे पोष्टिक तत्व इसी दूध में होते हैं।