बड़ा खुलासा : 3 साल में माँ गंगा का जल हुआ और खराब, अब क्या जवाब देगी सरकार ?

बताते चले भले ही केंद्र सरकार करोड़ों रुपये की स्कीम चला रही हो, लेकिन गंगा सफाई के प्रयास सफल होते नजर नहीं आ रहे हैं। बता दे हमारे भारत देश में स्वच्छ जल के सबसे बड़े और प्रमुख स्रोत गंगा की जितनी दुर्गति और उपेक्षा हुई है, वह कुशासन की सबसे बड़ी मिसाल है. यह महज संयोग नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने असंभव को संभव बनाने की अपनी योग्यता दिखाने के लिए इस महान नदी को चुना है. गंगा की सफाई और अविरलता को लेकर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) गंभीर है।

उसने केंद्र से स्पष्ट कहा है कि बगैर उसकी अनुमति के उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड सरकार को कौड़ी भी मुहैया न कराएं। इतना ही नहीं, एनजीटी ने केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा पुनर्जीवन मंत्रालय पर भी काफी तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि गंगा की सफाई पर उसके पास सुंदर-सुंदर नारों के सिवाय कुछ भी नहीं है। एनजीटी ने यहां तक कहा है कि गंगा पर सरकार का काम उसके नारों से उलट रहा है।

यह एक अध्यन में पता चला है कि गंगा की सफाई सरकार की शीर्ष प्राथमिकताओं में है। गंगा की सफाई के लिए सरकार की 20,000 करोड़ रुपये की ‘नमामि गंगे’ स्कीम अपने लक्ष्य को पाने में विफल होती दिख रही है, साफ तो दूर बल्कि गंगा का जल और मेला हो गया है।

शहर के संकट मोचन फाउंडेशन के जुटाए सैंपल के विश्लेषण से तो यही लगता है, कि गंगा के पानी में कॉलिफॉर्म बैक्टीरिया और बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) में भारी बढ़ोतरी हुई है, पानी की गुणवत्ता को नापने के लिए ये दोनों प्रमुख पैमाने हैं। सरकार ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट को मई 2015 में शुरू किया था। तब प्रधानमंत्री ने गंगा को निर्मल बनाने के लिए 2019 की समय सीमा तय की थी, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने बीते साल इस समयसीमा को बढ़ाकर मार्च 2020 किया था।

शहर का एनजीओ SMF गंगा एक्शन प्लान के लॉन्च होने से इसके पानी की गुणवत्ता पर नजर रख रहा है। गंगा एक्शन प्लान 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने लॉन्‍च किया था, एसएमएफ की अपनी लेबोरेटरी है, यहां संगठन नियमित आधार पर गंगा जल के सैंपल का परीक्षण करता है।

एसएमएफ ने तुलसी घाट से जो सैंपल जुटाया है

उसमें गंगा की सेहत काफी बिगड़ी दिखती है, यहां जल प्रदूषण काफी ज्यादा है। एसएमएफ के प्रेसिडेंट और आईआईटी बीएचयू में प्रोफेसर वीएन मिश्रा ने कहा, साल 2016-फरवरी 2019 के बीच बीओडी लेवल 46.8-54mg/l से बढ़कर 66-78mg/l हो गया है. डिजॉल्व्‍ड ऑक्सीजन (DO) 6mg/l या इससे ज्यादा होना चाहिए. इस अवधि में इसका स्तर 2.4mg/l से घटकर 1.4mg/l रह गया है.” कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया की आबादी भी पानी में बढ़ गई है।

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