गाजियाबाद। इस समाज में जहां लोग सच बोलने से भी कतराते हैं वहां अमर भारती साहित्य संस्कृति संस्थान का मंच कवियों को सच बोलने का साहस प्रदान करता है। बतौर अध्यक्ष काव्योत्सव को संबोधित करते हुए श्री मानव ने कहा कि मौजूदा दौर में कविता की बेहद दुर्दशा हुई है लेकिन अमर भारती के मंच पर कविता को समृद्ध होते देख कर इसके भविष्य के प्रति आश्वस्त हुआ जा सकता है। उन्होंने अपनी चुनिंदा रचनाओं का पाठ करते हुए कहा “मंच बदलने होंगे यह दरबार बदलने होंगे, हमको तो सारे के सारे किरदार बदलने होंगे, नहीं देखते कुछ भी, अंधे हैं गूंगे बहरे हैं गांधी के तीनों बंदर, इस बार बदलने होंगे।”
सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में आयोजित काव्योत्सव में नव आगंतुकों को संबोधित करते हुए श्री मानव ने कहा कि ऐसे आयोजन नए लिखने वालों को यह सीखने का अवसर देते हैं कि उन्हें लिखने में क्या छोड़ना है और क्या लिखना है। अपनी “भाषा” कविता के जरिए उन्होंने कहा “खांसी आती है पिता को भी मां को भी, गांव के घर में अकेली बची दो चारपाइयां, करवट के बहाने बोलती हैं, थके शरीर
लापता नींद और सपने, चुक गईं बार-बार दोहराई बातें, कभी कभी लगता है खांसी उनका रोग नहीं है. भाषा है।” कार्यक्रम की मुख्य अतिथि डॉ. अंजना सिंह सेंगर ने हास्य व ओज की पंक्तियों से श्रोताओं की भरपूर वाह वाही लूटी। उन्होंने कहा “महक गीतों की गजलों की भजन की है फिजाओं में, अदब साहित्य संस्कृति का इसे गुलदस्ता कहते हैं, जहां हर धर्म भाषा जाति को सम्मान मिलता है, मोहब्बत के उसी गुलशन को हिंदुस्तान कहते हैं।” कवि पत्रकार सुभाष अखिल ने मां को संबोधित करते हुए कहा “मां तुम बहुत याद आती हो, क्या बताऊं कब और क्यों आती हो, बड़ा हो गया हूं मैं, फिर भी याद आती हो।” आलोक यात्री ने “आती है सपनों में कविता” के जरिए कुशल हाथों से निर्मित इमारतों के माध्यम से कविता को नए रूप में परिभाषित किया।
प्रवीण कुमार ने मौजूदा दौर में बढ़ती व्यक्तिवादीता पर प्रहार किया। श्रीबिलास सिंह ने सियासी कुटिलता पर प्रहार किया। सुरेंद्र सिंघल ने कहा “कारखानों में परवरिश पाई मुझको सोहबत मिली मशीनों की, उसको फिर भी गिला है क्यों मेरा खुरदुरा पोर पोर है यारों।” डॉ. माला कपूर ने मौजूदा राजनीतिक माहौल पर चुटकी लेते हुए कहा “फूल, झाड़ू, लालटेन, हाथी, हाथ, मैं उलझन में हूं किसका दूं मैं साथ।” इस अवसर पर संस्थान की ओर से हाल ही में 3 कार रैली जीतने वाली माला कपूर का सम्मान भी किया गया।
संस्था के अध्यक्ष गोविंद गुलशन ने सूफियाना अंदाज में कहा “जिसमें हो सिर्फ तू ही तू ऐसा मुझे ख़्याल दे, मेरी निगाह ए शौक में अपना तू अक्स डाल दे, चारों तरफ है नूर की परतें तेरे इधर उधर, थोड़ी सी रौशनी उठा मेरी तरफ उछाल दे।” संस्था के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. धनंजय सिंह ने गीत की पंक्तियों “भाव विहग उड़े इधर उधर दुख दाने चुन आए, मन पर घनी वनस्पतियों के जंगल उग आए।” कार्यक्रम का संचालन तरुणा मिश्रा ने किया। इस अवसर पर सीता सागर, प्रमिला भारती, तुलिका सेठ, नेहा वैद, आर. के. भदौरिया, संतोष ऑबेरॉय, इंद्रजीत सुकुमार, सरवर हसन, राजकमल, मीनाक्षी कहकशां, बी. एल. बतरा अमित्र, दीपाली जैन जिया, कीर्ति रतन, डॉ. तारा गुप्ता, डॉ. विना मित्तल, अशोक राठौर, रामवीर आकाश, सुप्रिया सिंह वीणा, चारू अग्रवाल, एस.के. रसूल, डॉ. श्वेता त्यागी, मित्र गाजियाबाद, सुरेश मेहरा आदि ने कविता पाठ किया। इस अवसर पर शिव राज सिंह, सुशील शर्मा, कुलदीप, सुकांत कृष्ण, जयश्री शर्मा, शशि कांत भारद्वाज, सुरेश शर्मा आदि मौजूद थे।