सुप्रीम कोर्ट में आज चुनावी बॉन्ड योजना के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई होगी। वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने NGO एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के तरफ से अदालत में याचिका दायर की थी। इसमें इलेक्टोरल बॉन्ड पर तत्काल प्रभाव से रोक की मांग की थी। तब तत्कालीन CJI एसए बोबडे ने अपना फैसला सुरक्षित रखा लिया था।
कोर्ट की सुनवाई के दौरान वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि यह बॉन्ड का गलत उपयोग किया जा रहा है। इसका उपयोग शेल कंपनियां कालेधन को सफेद बनाने में कर रही हैं। बॉन्ड कौन खरीद रहा है, इसकी जानकारी सिर्फ सरकार को होती है। चुनाव आयोग तक इससे जुड़ी कोई जानकारी नहीं ले सकता है। ये राजनीतिक दल को रिश्वत देने का एक तरीका है।
जानिए क्या है पूरा मामला
इस योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई थी, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई।
बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दायर किया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।
इस पर सुनवाई के दौरान पूर्व CJI एसए बोबडे ने कहा कि मामले की सुनवाई जनवरी 2020 में होगी। सुनवाई को चुनाव आयोग की ओर से जवाब दाखिल करने के लिए फिर से स्थगित कर दिया गया। इसके बाद से अभी तक इस मामले को कोई सुनवाई नहीं हुई है।
चुनावी बॉन्ड क्या है?
2017 के बजट में उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को पेश किया था। 29 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। ये एक तरह का प्रोमिसरी नोट होता है। जिसे बैंक नोट भी कहते हैं। इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है। अगर आप इसे खरीदना चाहते हैं तो आपको ये स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनी हुई ब्रांच में मिल जाएगा। इसे खरीदने वाला इस बॉन्ड को अपनी पसंद की पार्टी को डोनेट कर सकता है। बस वो पार्टी इसके लिए एलिजिबल होनी चाहिए।
जिस पार्टी को डोनेट कर रहे हैं वो एलिजिबल है, ये कैसे पता चलेगा?
बॉन्ड खरीदने वाला 1 हजार से लेकर 1 करोड़ रुपए तक का बॉन्ड खरीद सकता है। खरीदने वाले को बैंक को अपनी पूरी KYC डीटेल में देनी होती है। खरीदने वाला जिस पार्टी को ये बॉन्ड डोनेट करना चाहता है, उसे पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम 1% वोट मिला होना चाहिए। डोनर के बॉन्ड डोनेट करने के 15 दिन के अंदर इसे उस पार्टी को चुनाव आयोग से वैरिफाइड बैंक अकाउंट से कैश करवाना होता है।
इस पर विवाद क्यों…
2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। दूसरी ओर इसका विरोध करने वालों का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं। कुछ लोगों का आरोप है कि इस स्कीम को बड़े कॉर्पोरेट घरानों को ध्यान में रखकर लाया गया है। इससे ये घराने बिना पहचान उजागर हुए जितना मर्जी उतना चंदा राजनीतिक पार्टियों को दे सकते हैं।
चुनावी बॉन्ड से जुड़ी जानकारी…
कोई भी भारतीय इसे खरीद सकता है
बैंक को KYC डीटेल देकर 1 हजार से 1 करोड़ रुपए तक के बॉन्ड खरीदे जा सकते हैं
बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान गुप्त रहती है
इसे खरीदने वाले व्यक्ति को टैक्स में रिबेट भी मिलता है
ये बॉन्ड जारी करने के बाद 15 दिन तक वैलिड रहते हैं
4 साल में इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले 9,207 करोड़
जनवरी 2022 के शुरुआती 10 दिनों में ही राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए SBI से करीब 1,213 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड बिके हैं। इस तरह 2018 से अब तक 4 साल में इलेक्टोरल बॉन्ड से पॉलिटिकल पार्टियों को 9,207 करोड़ रुपए चंदा मिला है। ये पैसा कहां से आया और किसने दिया, इसका कोई अता-पता नहीं है।