विश्व खाद्य दिवस पर भास्कर विशेष-कहीं भाग्य ना बन जाए भूख और भुखमरी

डीपी गोयल
(अध्यक्ष कैनविन फाउंडेशन)

“केन्द्र की मोदी सरकार ने इस ओर सबसे ज्यादा ध्यान दिया है। कृषि उपज बढ़ाने के लिए अनेकों क़दम उठाए गए हैं। सार्वजनिक खाद्य वितरण प्रणाली को सुदृढ़ किया गया है और कुपोषण मुक्त भारत के लिए बड़े बजट की योजनाएं बनाई गई हैं”

दैनिक भास्कर समाचार सेवा
गुरू ग्राम। किसी भी व्यक्ति के सरवाइव के लिए रोटी, कपड़ा और मकान बुनियादी जरूरतें हैं। जिसमें रोटी यानी भोजन की आवश्यकता सर्वोपरि है। दुनिंया में जीवों के बीच अधिकांश संघर्ष खाद्यान्न को लेकर ही हुए हैं। आधुनिक काल में भी राज्यों के लिए खाद्य सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती और चिंता का विषय बना हुआ है।
कोरोना काल में मैंने कैनविन फाउंडेशन द्वारा खादय सामग्री वितरण में इसकी अहमियत को नजदीक और बारीकी से महसूस किया। आज जब मनुष्य चंन्द्र और मंगल पर अपने कदम रख रहा हो 5- जी स्पैक्ट्रम और परमाणु ऊर्जा जैसे पावर स्रोतों के युग में दो जून भोजन के लिए लम्बी कतारें हृदय को विचलित करतीं हैं। जबकि भारत सहित दुनिया भर के अधिकांश देश खाद्य सुरक्षा गारंटी कानून बना चुके हैं। और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार करीब 80 करोड़ लोगों से मुफ्त राशन वितरण कर रही है फिर भी आज हमारे सामने भूख और भुखमरी सबसे बड़ी चुनौती बने हुए हैं। ऐसे लोगों की तादाद भी कम नहीं है जो भुखमरी की सीमा रेखा को भले ही पार कर गए हों लेकिन कुपोषण के दलदल में अभी भी फंसे हुए हैं।
ऐसे हुई वर्ड फ़ूड डे की शुरुआत
कुपोषण और भुखमरी की इसी गंभीरता को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 16 अक्टूबर 1945 को विश्व खाद्य दिवस मनाने की शुरुआत की थी जो अब भी जारी है। संयुक्त राष्ट्र ने 16 अक्टूबर, 1945 को रोम में “खाद्य एवं कृषि संगठन” (एफएओ) की स्थापना की। कांफ्रेस ऑफ द फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफएओ) ने वर्ष 1979 से विश्व खाद्य दिवस मनाने की घोषणा की थी। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य विश्व भर में फैली इसी भुखमरी की समस्या के प्रति लोगों के बीच जागरुकता बढ़ाना और भूख, कुपोषण और गरीबी के खिलाफ संघर्ष को मजबूती देना था। 1981 से 16 अक्टूबर को ‘विश्व खाद्य दिवस’ का आयोजन शुरू किया गया।
इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य था दुनिया में भुखमरी खत्म करना। लेकिन इस कार्यक्रम की शुरुआत के इतने साल बाद, आज भी दुनिया के करोडों लोगों को हम दो वक्त की रोटी मुहैया नहीं करवा पाए हैं। आजादी के बाद पिछले 70 वर्षों की कुव्यवस्थाओं के चलते
भूख से लड़ने में दुनिया भर में हो रहे प्रयासों के बीच भारत की एक तस्वीर यह भी थी कि गोदामों में सड़ते अनाज के बावजूद करोड़ों लोग भूखे मरते रहे। इसके लिए गत मनमोहन सिंह सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी लताड़ भी लगाई।
उभरती हुई अर्थव्यवस्था, भारत की इस तस्वीर का कारण भले ही जो भी हो, विशेषज्ञों का मानना है कि इसका परिणाम देश की छवि धूमिल होने के तौर पर ही सामने आया।
भारत के लिए है अलार्म

‘कृषि प्रधान’ देश भारत में लोग भूख के कारण अपनी जान गंवाई। हमारे पास किसी भी विकासशील देश से ज्यादा कृषि योग्य भूमि है, लेकिन कृषि के साधन और कृषि करने वालों के लिए पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। जलवायु परिवर्तन जैसे प्राकृतिक और युवाओं का कृषि से मोहभंग होकर किसी आसान तरीके से पैसा कमाने की ओर रुझान होना भी इसके लिए जिम्मेदार है।
दुनिया में जितने लोग भुखमरी के शिकार हैं, उनमें से एक चौथाई लोग सिर्फ भारत में रहते हैं। इस सूची में भारत को ‘अलार्मिंग कैटेगरी’ में रखा गया है। इसमें भयानक गरीबी झेलने वाले इथोपिया, सूडान, कांगो, नाइजीरिया और दूसरे अफ्रीकी देश भी शामिल हैं। इससे भी हैरतअंगेज बात यह है कि अपने देश में 5 साल से कम उम्र के 10 लाख बच्चे हर साल कुपोषण का शिकार होकर मौत का ग्रास बनते हैं। भुखमरी के मामले में हम हमारे हालात कई पड़ोसी मुल्कों से भी बदत्तर है।
ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर हम कहां खड़े हैं और किस और जा रहे हैं ? एक तरफ हम खाद्य सुरक्षा की बात कर रहे हैं। भारत निर्माण की बात कर रहे हैं। भविष्य में आर्थिक महाशक्ति बनने के सपने देख रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ यह रिपोर्ट हमें देश की सच्ची तस्वीर को बयां करने के लिए काफी है। जो हमारे सारे सपनों को मिनटों में ही चकनाचूर कर देता है।
एक तरफ दुनिया में ऐसे बहुत से लोगों के घरों में,होटलों में,शादी-ब्याह और पार्टियों में बहुत ज्यादा खाना बर्बाद होता है और फेंक दिया जाता है। वहीं दूसरी ओर बहुत बड़ी तादाद ऐसे लोगों की है जिनको एक जून की रोटी के भी लाले पड़े हैं। अनुमान लगाया जा रहा है कि विश्व की आबादी 2050 तक नौ अरब हो जाएगी। जिसमें करीब 80 फीसदी लोग सिर्फ विकासशील देशों में रहेंगे। ऐसे में भुखमरी की समस्या पर कैसे काबू पाया जाए,यह सबसे बड़ा प्रश्न अब भी बना हुआ है?
केन्द्र की मोदी सरकार ने दिखाई है गंभीरता
केन्द्र की मोदी सरकार ने इस ओर सबसे ज्यादा ध्यान दिया है। कृषि उपज बढ़ाने के लिए अनेकों क़दम उठाए गए हैं। सार्वजनिक खाद्य वितरण प्रणाली को सुदृढ़ किया गया है और कुपोषण मुक्त भारत के लिए बड़े बजट की योजनाएं बनाई गई हैं। आइए इस विश्व खाद्य दिवस पर हम भूख भुखमरी और कुपोषण से लड़ रही सरकार के हाथ मजबूत करें और स्वस्थ एवं सशक्त भारत निर्माण में अपना योगदान दें।
(लेखक स्वास्थ्य मिशन से जुड़े कैनविन फाउंडेशन के संस्थापक एवं अध्यक्ष, भारतीय रेलवे सलाहकार समिति के सदस्य भी हैं)

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