उज्जैन । दीपावली के दूसरे दिन सूर्य ग्रहण के बाद अब देव दीपावली के दिन यानी कि कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा आठ नवंबर मंगलवार को भरणी नक्षत्र की मेष राशि में वर्ष का दूसरा एवं अंतिम खग्रास चंद्रग्रहण लगने जा रहा है। इस बार का चंद्र ग्रहण भारत के अधिकांश हिस्सों में दिखाई नहीं देगा। वहीं पटना, रांची, कोलकाता, सिलीगुड़ी एवं गुवाहाटी सहित पूर्वी भारत के कुछ हिस्सों में पूर्ण चंद्र ग्रहण दिखाई देगा। इसे देखते हुए ग्रहण काल से आठ घंटे पहले सूतक काल शुरू होगा और मंदिरों के कपाट बंद हो जाएंगे। वहीं, ग्रहण के कारण देव दीपावली कैसे मनाई जाए, जबकि शास्त्रों में ग्रहण के दौरान पूजा करना निषेध माना गया है। ऐसे में ज्योतिष विद्वानों ने इस बार देव दीपावली सात अक्टूबर को मनाना निश्चित किया है।
चंद्र ग्रहण का मूल स्पर्शकाल शाम 5:35 बजे से आरंभ
भारतीय समय अनुसार ग्रहण का दोपहर 2.41 बजे से शाम 6.20 बजे तक रहेगा। जिसमें कि चंद्र ग्रहण का मूल स्पर्शकाल शाम 5:35 बजे से आरंभ होगा और ग्रहण का मध्य 6:19 बजे और मोक्ष शाम 7:26 बजे होगा। इस ग्रहण का सूतक काल ग्रहण से 12 घंटे पहले सुबह 5.53 बजे शुरू हो जाएगा जोकि अगले दिन सुबह करीब सात बजे तक चलेगा। यह चंद्र ग्रहण भारत के अलावा संपूर्ण एशिया, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी-पूर्वी यूरोप, दक्षिणी अमेरिका, प्रशांत, अटलांटिक और हिंद महासागर में दिखेगा। इसका असर देश-दुनिया पर देखा जा सकता है। इसमें मौसम के प्रभाव जैसी घटनाएं शामिल हैं। ग्रहण के बुरे प्रभाव से बचने के लिए ग्रहण के बाद स्नान अवश्य करें।
पंद्रह दिन में दो ग्रहण पड़ना क्लेश और अशांति को जन्म देने वाले
इस बार के चंद्र ग्रहण को लेकर विभिन्न ज्योतिष विद्वानों के अपने-अलग विचार हैं। कुछ विद्वानों ने इसे कुछ राशियों के लिए अच्छा बताया है तो कुछ विद्वानों का कहना है कि पंद्रह दिन के भीतर दो ग्रहण पड़ना निश्चित ही भारी है। यह क्लेश और अशांति को जन्म देने की स्थिति को दर्शाते हैं। ज्योतिष आचार्य राकेश चंद्र दुबे ने हिन्दुस्थान समाचार से कहा कि भारतीय ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा मन का कारक है इसलिए यह चंद्रग्रहण लोगों के मन में चिंता बढ़ाता हुआ दिखाई दे रहा है। उन्होंने कहा कि ग्रहण कोई भी हो उसके बाद के एक महीने तक का समय बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। हर राशि पर इसका अलग-अलग प्रभाव होता है। अत: इस बार का चंद्र ग्रहण जहां चार राशि जातकों के लिए शुभ फलदायक रहेगा तो वहीं अन्य आठ राशि नाम जातकों के लिए अशुभकारी है। ऐसे में जिनके लिए शुभता लेकर आ रहा है, वे और जिनके जीवन में इसके अशुभ प्रभाव दिखाई देंगे ऐसे सभी अपनी श्रद्धानुसार ग्रहणकाल में विशेष इष्ट नाम जाप करें, जिसके कि उनके जीवन की अशुभता भी अच्छे समय में बदल जाए।
मेष, वृष, कन्या और मकर राशि जातकों के लिए हानि के योग
दूसरी ओर भागवताचार्य पं. भरतचंद्र शास्त्री इस चंद्रग्रहण को लेकर कहते हैं कि मिथुन, कर्क, वृश्चिक और कुंभ राशि स्वामियों के लिए ग्रहण लाभकारी है। मेष, वृष, कन्या और मकर राशि के जातकों के लिए यह हानि के योग बना रहा है। शेष अन्य चार राशियों को ग्रहण के चलते मध्यम फल मिलेगा। ग्रहण मेष राशि और भरणी नक्षत्र में लगेगा। सभी लोगों से आग्रह है कि ग्रहण से पहले तुलसी के पत्ते को खाने की वस्तुओं में रख दें। ताकि वे दूषित होने से बचाई जा सकें। ये ग्रहण मेष राशि में दिखता है, इसलिए यहीं इसका सबसे अधिक प्रभाव भी है। क्योंकि ग्रहण के समय बुध-शुक्र की दृष्टि चंद्र पर है। शुक्र ग्रह के प्रभाव स्वरूप घर-परिवार में क्लेश उत्पन्न हो जाता है। इस समय में घी, शहद, तेल का मूल्य बढ़ जाता है और तमाम देशों की सरकारों को विभिन्न परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
श्रद्धानुसार करें दान
आचार्य बृजेश चंद्र दुबे का कहना है कि सभी राशि के लोग इस विशेष दिन अपने हित कुछ सामान्य से किंतु विशेष लगनेवाले ये उपाय अपनी राशि के हिसाब से करें। मेष राशि के लोगों को कंबल और ऊनी वस्त्रों का दान करना चाहिए। वृषभ राशि वाले भगवान शिव की आराधना किसी भी तरह से कर सकते हैं, यह तिल एवं गुड़ का दान करेंगे तो उन्हें अधिक लाभ मिलेगा। मिथुन राशि वालों के लिए भी घी, शहद, तिल, गुड़ का दान लाभकारी है। कर्क और सिंह राशि के लोग गुड़ और शहद का दान करें। कन्या राशि के जातक सफेद तिल, गुड़, दूध और गेहूं का दान करेंगे तो अधिक लाभप्रद रहेगा। तुला राशि के जातकों को धार्मिक स्थान की यात्रा करनी चाहिए और ऊनी वस्त्र के साथ ही अन्न दान विशेषकर गेहूं का दान श्रेयस्कर रहेगा। वृश्चिक राशि ग्रहण के बाद गुड़ ,तिल और अनाज का दान करें इससे घर में सुख समृद्धि आएगी। धनु, मकर और कुंभ राशि-शहद, गुड़ और तिल का दान करें। वहीं मीन राशि के जातकों से यही आग्रह है कि अपने हित को ध्यान में रखते हुए ग्रहण के पश्चात चीटियों को पंजीरी और गाय को हरा चारा खिलाने का प्रयास करेंगे तो उन्हें बहुत लाभ मिलेगा।
सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक ही रेखा पर होते हैं तब पड़ता है ग्रहण
चंद्र ग्रहण तब होता है जब पूर्णिमा की रात्रि को सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक ही रेखा पर होते हैं। पृथ्वी के केंद्र में होने की स्थिति में इसकी छाया चंद्रमा पर पड़ती है जिसके कारण से कभी चंद्रमा पूरा तो कभी आधा ढक जाता है। कभी-कभी यह आकर्षक लाल रंग में भी दिखाई देता है। इससे पहले चैत्र पंचांग भारतीय नववर्ष के आरंभ में 15 मई को चंद्र ग्रहण लगा था, अब आठ नवंबर को लगने जा रहा चंद्र ग्रहण वर्ष का दूसरा और अंतिम ग्रहण है।