दैनिक भास्कर ब्यूरो
पीलीभीत। धान क्रय केंद्र में गलत नीतियों के चलते निलंबित हुए जिला खाद्य विपणन अधिकारी नेताओं की चरण वंदना करने में लगे हुए हैं। खुद के बुने जंजाल में बुरी तरह फंस चुके डिप्टी आरएमओ नेताओं से उम्मीद लगा बैठे हैं। मगर 19 क्रय केंद्रों को बर्खास्त करने के बाद डिप्टी आरएमओ को नेताओं की नाराजगी का भी सामना करना पड़ रहा है।
पीलीभीत में धान खरीद हमेशा से ही हंगामेदार रही है और अधिकारियों के लिए मोटी कमाई का जरिया भी। इस बार धान खरीद अधिकारियों के बीच मतभेद और आनन-फानन में निलंबन व बहाली के खेल में फंसे जिला खाद्य विपणन अधिकारी की मुश्किलें कम नहीं हो रही है। गलत नीतियों के चलते निलंबन की कार्रवाई झेल रहे डिप्टी आरएमओ लगातार नेताओं के दरवाजे की बेल बजाते दिखाई दे रहे हैं।
लेकिन इसके बावजूद जिला खाद्य विपणन अधिकारी को राहत नहीं मिली है। निलंबित अधिकारी की हड़बड़ाहट को देखकर लगता है कि उन्होंने जाने अनजाने में खुद का भारी नुकसान कर लिया है और अब इसकी भरपाई होते दिखाई नहीं दे रही है। नेताओं का मान रखने के लिए जो क्रय केंद्र आवंटित किए गए थे उन्हें 1 माह के अंदर ही बर्खास्त कर दिया था। इस दौरान क्रय केंद्र ठेकेदारों को लाखों रुपए का नुकसान हुआ और नेताओं में गहरी नाराजगी भी देखी गई।
एक भाजपा विधायक से मिलने पहुंचे निलंबित डिप्टी आरएमओ को ढाई घंटे इंतजार करने के बाद भी निराश लौटना पड़ा। लेकिन इसके बावजूद भी निलंबित अधिकारी हार मानने को तैयार नहीं है और लगातार जिले में रहकर विभागीय अधिकारियों की फजीहत करा रहे हैं। पूरे मामले में पूरनपुर से हटाकर पीलीभीत कार्यालय भेजे गए क्षेत्रीय विपणन अधिकारी और आरएफसी बरेली की सांठगांठ बताकर दोषी ठहराए जाने का प्रयास किया जा रहा है।
एक नजर क्रय केंद्र आवंटन से निलंबन तक
पीलीभीत के तत्कालीन निलंबित जिला खाद्य विपणन अधिकारी विकास चंद्र तिवारी की धान खरीद नीति पर नजर डालें तो पता चलता है कि उन्होंने जिले में पहले 161 क्रय केंद्र आवंटित कर दिए। इन क्रय केंद्रों के आवंटन में नेताओं का भी पूरा ख्याल रखा गया।
इसके बाद धान खरीद शुरू नहीं हो पाई और 1 माह के अंदर ही अचानक 19 क्रय केंद्र बर्खास्त कर दिये। अचानक हुई कार्रवाई से खलबली मची और निलंबन-बहाली के नाम पर भ्रष्टाचार होने की चर्चाएं शुरू हो गई। फिर 6 क्रय केंद्र नए खोल दिए गए। क्रय नीति की अनदेखी तब हुई कि गैर जनपद शाहजहांपुर क्रय केंद्रों के अनुमोदन की अनुमति मंडलायुक्त से न लेकर जिला स्तरीय अधिकारी से कराई गई। इतना कुछ होने के बाद जिला प्रबंधक और एआर कोऑपरेटिव व समिति की सहमति लेना भी उचित नहीं समझा गया।