गोरखपुर: अब थूकने का नो टेंशन, वाकई कमाल का है इकोफ्रेंडली पाउच

दैनिक भास्कर ब्यूरो

गोरखपुर। अगर आप यात्रा के शौकीन हैं तो यह खबर आपके लिए काफी राहत भरी हो सकती है। ट्रेन, बस या निजी साधन से यात्रा के दौरान थूकने के लिए लोगों को काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है लेकिन अब आपको थूकने के लिए इधर-उधर देखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। बस पाकेट से पाउच निकालिए और उसमें थूक दीजिए। थूकने के 5 सेकेंड के भीतर ही थूक सालिड कंपाेस्ट में तब्दील हो जाता है। उपयोग करने के बाद इसे मिट्टी में डाल सकते हैं जहां पौधा भी उगाया जा सकता है, तो है ना यह वाकई कमाल का ईकोफ्रेंडली पाउच।

‘ईजीस्पिट’ सार्वजनिक स्थलों को स्पिट फ्री जोन में बनाने में कारगर सिद्ध हो रहा है। इसके ईकोफ्रेंडली होने के कारण सरकारी दफ्तरों से काफी डिमांड आ रही है।

यह पाकेट पाउच, मोबाइल कंटेनर व स्पिटबिन के रूप में उपलब्ध है। युवा उद्यमी व ईजीस्पिट के उत्तर प्रदेश के व्यवसाय विकास प्रबंधक शुभम शुक्ल ने इसकी शुरुआत सीएम सिटी से की है। शुभम पूरे प्रदेश में थूकने को लेकर लोगों को जागरूक करने का कार्य कई सालों से कर रहे हैं। वह बताते हैं कि हमें गोरखपुर विकास प्राधिकरण व लखनऊ विकास प्राधिकरण को स्पिट फ्री जोन बनाने के संदर्भ में अफसरों का सराहनीय सहयोग मिला है।

‘ईजीस्पिट’ से बनाइए सफर को आसान, पाकेट पाउच, मोबाइल कंटेनर व स्पिटबिन के रूप में उपलब्ध

दोनों प्राधिकरणों से स्पिटिबन लगाने के आर्डर भी मिले हैं। प्रदेश को स्पिट फ्री एवं ईको फ्रेंडली बनाने के लिए सरकारी व प्राइवेट दफ्तरों में लगातार संपर्क किया जा रहा है। इस अभियान का उद्देश्य लोगों को खुले में थूकने से हतोत्साहित करना और स्पिटून के उपयोग के बारे में जागरूक करना है।

पॉकेट पाउच को 10 से 15 बार प्रयोग में ला जा सकता है। मोबाइल कंटेनर 30 से 40 बार इस्तेमाल कर सकते हैं जबकि स्पिटबिन को 5000 बार थूकने के इस्तेमाल में लाया जा सकता है। इज़ीस्पिट स्पिटून में मैक्रोमोलेक्यूल पल्प पेटेंटेड तकनीक है और यह एक ऐसी सामग्री से लैस है जो लार में मौजूद बैक्टीरिया और वायरस को लाॅक करती है। शुभम बताते हैं कि 2015 से इस प्रोडक्ट को बनाने के लिए रिसर्च चल रहा था और आज यह सबके सामने है। हमारा यह प्रयास स्वच्छ भारत और आत्मनिर्भर भारत को सफल बनाने का है। यह प्रोडक्ट नारी सशक्तिकरण का भी मिशाल है। इसकी पूरी मैन्युफैक्चरिंग महिलाओं की टीम संभाल रही है।

24 महिलाओं की टीम इस विशेष इनोवेशन को अंजाम दे रही है। शुभम का कहना है कि हमारा उद्देश्य मनुष्यों और प्रकृति के बीच संबंधों को सुधारना, पारिस्थितिकी तंत्र में सुंदरता और स्वास्थ्य को बढ़ावा देना है। इन्हीं चीजों पर ही हमारा अस्तित्व और स्वास्थ निर्भर है।

मानव थूक के कचरे से होंगे पौधे विकसित

शुभम बताते हैं कि ईजीस्पिट स्टार्टअप मानव थूक के कचरे से पौधों को विकसित करने के विचार के साथ बनाया गया है। खुले में थूकने की आदत बहुत ख़राब होती है और इसके दाग धब्बों को साफ करना अपने आप में एक चुनौती है। अगर कोई व्यक्ति सार्वजानिक स्थान पर थूकता है तो उसके कण 27 फीट तक हवा में फैल सकते हैं। यह कीटाणु सभी उम्र के लोगों के लिए घातक हैं जिनमें बुजुर्ग, बच्चे, गर्भवती महिलाएं भी शामिल हैं।

देश में टीबी जैसी बीमारी को फ़ैलाने में भी थूक से उत्पन्न कीटाणुओं का अहम योगदान है। वैश्विक महामारी कोविड-19 की पहली व दूसरी लहर के दौरान भी सार्वजानिक स्थानों पर थूकना प्रतिबंधित किया गया था जिससे कि वायरस के फैलाव को रोका जा सके। इस तकनीक का इस्तेमाल करके अब तक 7500 पौधों का रोपण किया जा चुका है। सफाई के साथ पौधरोपण के इस अनोखे प्रयोग की तारीफ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा भी कर चुके हैं।

जीडीए लोगों को जागरूक कर रहा है। यह एक बेहतरीन स्टार्टअप है। युवा उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए जीडीए से इसकी शुरुआत की जा रही है। 10 स्पिटबिन के अार्डर दिए गए हैं। इसका भुगतान सीएसआर के माध्यम से कराया जाएगा। इसे पार्क समेत अन्य सार्वजनिक स्थलों पर भी लगाए जाने की योजना है।

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