बहराइच : झुलसा रोग से फसल बचाने को लेकर कृषि वैज्ञानिक ने किसानों को दिए ये टिप्स

नानपारा/बहराइच l प्रदेश में लगातार जारी कोहरे और शीतलहर ने फसलों पर भी अपना प्रकोप दिखाना शुरू कर दिया है। ऐसी स्थिति में वर्षा होने से आलू में झुलसा रोग उत्पन्न होने की प्रबल संभावना बन गई है। अतः कृषक बंधुओं को एतिहात बरतने की जरूरत है। कृषि विज्ञान केंद्र, के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. के. एम. सिंह ने किसानों को सचेत किया है कि आलू में 40 से 50 दिन की अवस्था में फास्फोरस और पोटाश की पूर्ति होना अति आवश्यक है। इसलिए एक किलो 0:52:34 (एन पी के) के साथ 1.0 किलो सल्फर प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें और 15 दिन बाद 0:52:34 (एन पी के) फिर से दोहराएं।

खेत में लगी आलू की फसल

यदि पौधों का वनस्पति विकास पूरा नहीं हुआ है तो 25 से 30 किलो प्रति एकड़ की दर से यूरिया की पूर्ति अवश्य करें।
पौध संरक्षण वैज्ञानिक डॉ. हर्षिता ने बताया कि झुलसा रोग में पत्तियों, डंठलों और कंदों पर काले रंग के धब्बे बन जाते हैं जिसके तीव्र प्रकोप से संपूर्ण पौधा झुलस जाता है। इससे बचाव हेतु बीमारी के लक्षण दिखाई देने से पूर्व मैनकोज़ेब 750 ग्राम प्रति एकड़ अथवा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 750 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 125 लीटर पानी घोल बना कर छिड़काव करें। झुलसा का भयंकर प्रकोप होने पर मेटैलेक्सिल 8% + मैनकोज़ेब 64% का 1 किलो प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। माहू कीट से बचाव हेतु नीम का तेल 0.15 % ई. सी. 1.00 लीटर प्रति एकड़ के घोल का छिड़काव प्रभावी ऐसा है किसान भाई करें तभी फसलों को बचाया जा सकता है।

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