– शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास व भारतीय भाषा मंच के साथ ‘शिक्षा नीति 2019 लखनऊ परिचर्चा
– लखनऊ विश्वविद्यालय के मालवीय सभागार में आयोजित हुई नई शिक्षा नीति 2019 कार्यशाला
– विकसित देशों की तुलना में हमारी पहुंच उच्च शिक्षा में बहुत ही कम है : प्रो. अनिल शुक्ल
– शिक्षा का संपूर्ण प्रशासन शिक्षकों के हाथ में होना चाहिए : अतुल कोठारी
– सरकार की नीतियां शिक्षा-व्यवस्था में वर्धक का काम करें न कि अवरोध का : प्रो. एसपी सिंह
– भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति पर 30 जून तक मांगा सुझाव
लखनऊ. भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति पर 30 जून तक सुझाव मांगा था। इसके लिए लखनऊ विश्वविद्यालय के मालवीय सभागार में ‘शिक्षा नीति 2019 लखनऊ परिचर्चा’ कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा कार्यशाला में अनेक सत्र स्कूली शिक्षा व उच्चशिक्षा से जुड़ी शिक्षानीति को समर्पित रहे। शिक्षा विभाग की प्रोफेसर अपर्णा गोडबोले ने कहा कि इस शिक्षा नीति के मसौदे में बहुत कुछ अद्भुत व महत्त्वपूर्ण है, पर अनेक पक्ष छूट भी गए हैं, जिन्हें जोड़े जाने की जरूरत है, अनेक पक्ष जिस रूप में प्रस्तुत होने चाहिए थे, उस रूप में प्रस्तुत नहीं हो पाए हैं, इसलिए उन्हें परिवर्तित व परिवर्धित किये जाने की जरूरत है। कार्यशाला के प्रतिभागियों से अपेक्षा है कि वे बताएं कि हमें क्या जोड़ना है, क्या हटाना है और क्या परिवर्तित करना हैं? इसके साथ ही साथ इस नीति के समुचित क्रियान्वयन पर भी प्रकाश डालना है। .
कार्यशाला के विशिष्ट अतिथि रूहेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर अनिल शुक्ल, मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी थे। कार्यशाला की अध्यक्षता लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर एस पी सिंह ने की।
शिक्षा व समाज में चोली-दामन का साथ : प्रो. अनिक शुक्ल
– शिक्षा के साथ संस्कृति का जुड़ाव महत्वपूर्ण है।
– शिक्षा और समाज का साथ चोली-दामन का साथ है।
– उच्च शिक्षा में हमारी पहुंच बहुत ही कम है, विकसित देशों की तुलना में।
– 94 फीसदी बजट केन्द्रीय विद्यालयों, विश्वविद्यालयों पर खर्च होती हैं, जो आम जन से दूर है। शिक्षा संस्थानों को डिग्रियां बांटने के बजाय सीखने के पद्धति पर ध्यान देना होगा।
– व्यवहार में परिवर्तन शिक्षा है। शिक्षा गुणवत्तापूर्ण होनी चाहिए।
– कक्षाओं में छात्रों को जीवन जीना सिखाने पर बल देना चाहिए।
– शिक्षा में रटने की बजाय जीवन में उतारने पर बल दिया जाना चाहिए।
– शिक्षा में समानता की भावना होनी चाहिए, समावेशी शिक्षा पर बल।
– शिक्षा में अपनी गुणवत्तापूर्ण संस्कृति का पुनराध्ययन पर जोर।
नीतियों के बजाय क्रियान्वयन पर ध्यान देना जरूरी : अतुल कोठारी
– अब तक कोई भी आयोग प्राथमिक अर्थात बाल शिक्षा को ध्यान में रखकर नहीं बनाया गया।
– नीतियों के बजाय क्रियान्वयन पर ध्यान दें।
– बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा खेल के माध्यम से दी जाए, जिसकी कुछ कुछ वकालत हमारे इस मसौदे में भी की गई है।
– कक्षा 9 से सेमेस्टर प्रणाली की बात कही गई है नई शिक्षा नीति में।
– नई शिक्षा नीति में व्यवसायिक शिक्षा पर बल है।
– शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए।
– 2030 तक नई शिक्षा नीति को क्रियान्वयन पर बल दिया गया है।
– शिक्षा का संपूर्ण प्रशासन शिक्षकों के हाथ में होना चाहिए।
– जब बालक 3 वर्ष का होगा तो उसे 5 + 3 + 3 + 4 के ढांचे के तहत औपचारिक शिक्षा में दाखिल किया जाएगा।
– प्रत्येक विश्वविद्यालय, महाविद्यालय में नीति के क्रियान्वयन व संगोष्ठीयों के आयोजन की समिति बननी चाहिए। शिक्षाविदों को सरकार का समर्थन होना चाहिए।
– नई शिक्षा नीति का प्रचार-प्रसार हो, जिससे लोगों में नई शिक्षा नीति के बारे में जानकारी हो।
– एम.फिल. को समाप्त करने के लिए सुझाव दिया गया है, क्योंकि नियुक्ति में इसकी कोई भूमिका नहीं रह गई ।
– शोध के प्रति जागरूकता पर ध्यान देना होगा।
– शोधार्थियों में रचनात्मकता के भाव का पोषण करना होगा।
– प्रयोगात्मक एवं व्यवहारिक शिक्षा पर जोर देने की जरूरत।
– उच्च शिक्षा में भारतीय भाषाओं का विकल्प होना चाहिए।
– कोठारी आयोग के त्रिभाषा सूत्र के तहत अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता को खत्म या समाप्त किया जाए।
पाठ्यक्रम प्रासंगिक पूर्ण हों : प्रो. एसपी सिंह
– इस नई शिक्षा नीति में जन-जन को जोड़ने तथा सुझाव लेने का कार्य महत्वपूर्ण है।
– समाज में स्वच्छ वातावरण की आवश्यकता पर ध्यान देना होगा।
– शिक्षा संस्थाओं को अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन ईमानदारी पूर्वक करना चाहिए।
– उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम उद्देश्य पूर्ण होने चाहिए।
– शिक्षा व्यवस्था सिद्धांत के साथ साथ समस्या समाधान पर भी बल दें।
– पाठ्यक्रम प्रासंगिक पूर्ण होने चाहिए।