
पयागपुर/बहराइच l पारंपरिक गीतों एवं रिवाजों को आधुनिकता में जी रहे लोग भूलते चले जा रहे हैं l फाल्गुन महीने में गाए जाने वाले फगुआ डेढ़ ताल चौताल आदि धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहे हैं l भारत देश में पारंपरिक रूप से होली के शुरू होने से लगभग 1 महीने पहले से ही विभिन्न गांव में लोग एक जगह बैठ कर ढोलक हारमोनियम मजीरे के साथ होली में गाए जाने वाले पारंपरिक गीत गाना शुरू कर देते थे मगर अब यह कहीं कहीं दिखाई पड़ रहा है l इसका मूल कारण है कि गांव में समय बदलने के साथ-साथ आम लोगों में एकता की कमी दिखाई पड़ रही है तथा दिनों दिन लोग स्वार्थी होते जा रहे हैं l
इसी के तहत पयागपुर क्षेत्र अंतर्गत सुहेलवा गांव के रहने वाले पूर्व जिला पंचायत सदस्य रामजी यादव कहते हैं कि वाकई में गांव में अब फगुआ गीतों का चलन धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है तथा लोग पारंपरिक रीति-रिवाजों को धीरे धीरे भूलना शुरू कर दिया है l वहीं पर हसुआ पारा गांव के रहने वाले पप्पू शुक्ला रामजी शुक्ला दद्दन पांडे कहते हैं कि अब लोगों में पारंपरिक गीतों के प्रति रुझान कम होता जा रहा है और जो लोग फगुआ गीत गाते थे वह लोग अब हम लोगों के बीच में नहीं है इस कारण से होली के महीने में अब फगुआ डेढ़ताल चौताल गाने वालों में वह हुनर नहीं है जो पहले के लोगों में होता था l साथ ही साथ ग्राम वैनी के रहने वाले ढोढ़े तिवारी का कहना है कि फागुन महीने में गाया जाने वाला फाग अब धीरे-धीरे लुप्त होता जा रहा है लोगों को आज के इस आधुनिक माहौल में इकट्ठा बैठने का समय ही नहीं है l