विधायक की मान-मनौवल पर भारी पड़ा निर्दलीय का ‘अंडर करेंट’

मोदी-योगी के नाम की बजाय स्थानीय मुद्दे रहे हावी
2027 चुनाव तक दिखेगी इस हार की धमक
विधायक रामकृष्ण भार्गव की मान-मनौवल रही बेअसर

नैमिषारण्य-सीतापुर। 2024 लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल कहे जा रहे ‘निकाय चुनाव 2023’ में जिले की सुपर सीट कही जा रही ‘मिश्रिख-नैमिषारण्य’ पर भाजपा की अप्रत्याशित हार से भाजपा का थिंकटैंक स्तब्ध है। पार्टी की तरफ से हार की व्यापक समीक्षा के बाद जिम्मेदार भितरघातियों पर कार्यवाही की भी बात कही जा रही है। इन सब चर्चाओं के बीच सीएम योगी की फेवरेट कही जा रही इस सीट पर आये अप्रत्याशित नतीजों को लेकर आपके दैनिक भास्कर ने तीर्थ नगरियों में सभी वर्गों के आम वोटर्स से बात कर भाजपा प्रत्याशी की हार और निर्दलीय प्रत्याशी की जीत के फार्मूले को जानने का प्रयास किया। इस दौरान लगभग सभी लोगों ने भाजपा प्रत्याशी की हार को स्थानीय स्तर पर पार्टी के असफल जमीनी आकलन का नतीजा बताया।
लोग ये भी कहते नजर आये कि साहब मोदी-योगी कब तक आपको चुनाव जिताएंगे, कुछ काम आपको भी करना पड़ेगा। आखिरकार गली-मुहल्ले, साफ-सफाई जैसी छोटी जरूरतों के लिए पीएम-सीएम का नाम लेने की क्या जरूरत, गर आपने पहले ही इन मूलभूत चीजों पर अच्छा कार्य किया होता तो आपको कुछ अतिरिक्त करने की जरूरत नही पड़ती। भाजपा प्रत्याशी हरिनाम बाबू मिश्रा द्वारा हाई-फाई चुनाव प्रचार व लाख दावों के बावजूद हरगांव नगर पंचायत में निर्दलीय प्रत्याशी गफ्फार खां की लगातार बड़े अंतर से दूसरी जीत इसका ज्वलन्त उदाहरण है। वहीं लहरपुर सीट पर सपा प्रत्याशी व पूर्व सांसद कैसरजहाँ की अप्रत्याशित हार का भी कहीं न कहीं यही आधार रहा है। इसी तरह से महमूदाबाद, बिसवां तथा महोली में भी भाजपा प्रत्याशी का हार का कारण रहा। यहां लोगों का ये भी कहना है कि इस बार यहां भाजपा का चुनाव मैनेजमेंट वोटर्स को प्रभावित नही कर सका, तीर्थ नगरियों के वोटर्स की सबसे बड़ी कसक बदहाल साफ-सफाई व्यवस्था और पालिका अंतर्गत विकास कार्यों में ब्रेक की थी। इस मुद्दे पर वोटिंग के दिन तक सौम्य स्वभाव के विधायक रामकृष्ण भार्गव और चुनाव प्रभारी की लाख मान-मनौवल व सफाई जनता की नाराजगी दूर नही कर सके। इस सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी की जीत का सबसे बड़ा आधार बब्लू सिंह का चुनावी मैनेजमेंट और क्षेत्र की जनता से लगातार जुड़ाव रहा।
वहीं विधायक का चुनाव के ऐन मौके पर जनता के बीच आना नाकाफी साबित हुआ। 2017 का निकाय चुनाव 2085 वोट पाकर 936 वोट के अंतर से हारने के बाद मुन्नी देवी के समर्थक बब्लू सिंह ने यहीं से जनता की अदालत में लगातार हाजिरी देने का क्रम जारी रखा। कोविड-काल में भी जनता से सीधे जुड़ाव का फायदा भी इन्हें मिला। भाजपा की ओर से अतिरिक्त तीखे चुनाव प्रचार का भी बब्लू सिंह और निर्दलीय प्रत्याशी को लाभ मिला। उस पर रही-सही कसर चुनाव के एक दिन पहले बब्लू सिंह व उनके समर्थकों पर लिखाये गए मुकदमे ने पूरी कर दी। जिससे जनता की सहानुभूति हथौड़े के पक्ष में शिफ्ट करती दिखी। जिसके कारण इस बार मुन्नी देवी 4382 मत पाकर 272 वोटों से चुनाव जीतने में सफल रहीं।
इनसेट
सरला भार्गव का कार्यकाल पड़ा भाजपा को भारी
पिछली बार विधायक की बहू सरला भार्गव के कार्यकाल के दौरान पालिका में आये-दिन हंगामा, बदहाल साफ-सफाई, ठप पड़े विकास कार्य, घोटाले आदि से जनता आजिज आ गई और इस बार एक बार फिर विधायक की बहू की बजाय निर्दलीय मुन्नी देवी की ओर मुड़ गई।

चुनाव प्रभारी भांप न सके जनता का आक्रोश
इस निकाय के भाजपा चुनाव प्रभारी राजीव रंजन मिश्रा से भी जनता का मिजाज न भांप पाने की चूक हुई, लोगों का तो ये भी कहना है कि वो जनता से सीधे तौर पर जुड़ ही नही सके। प्रभारी जी का चुनाव अभियान कुछ वार्डों तक ही सीमित दिखा।

संगठन की जनता के बीच पैठ दिखी कमजोर
25 वार्डों की इस पालिका में भाजपा के हाथ से अध्यक्ष सीट तो गई ही साथ ही पार्टी सिंबल पर मात्र 9 सभासद ही जीत सके, यहां ये स्पष्ट है कि या तो स्थानीय संगठन की जनता की बीच पैठ कमजोर रही या स्थानीय संगठन की राय को उच्च पदाधिकारियों ने महत्व नही दिया।

आगामी लोकसभा व विधानसभा चुनाव तक दिखेगी इस हार की धमक
2014 लोकसभा चुनाव से मिश्रिख लोकसभा, 2017 चुनाव से विधानसभा और 2017 निकाय चुनाव से मिश्रिख-नैमिषारण्य सीट भाजपा का गढ़ बन गयी थी। सियासी विशेषज्ञों का मानना है कि इस निकाय चुनाव में ये सीट हारने की कसक आगामी लोकसभा, विधानसभा चुनाव में भी दिखेगी। वहीं सौम्य स्वभाव वाले विधायक जी का सियासी भविष्य भी अब यही से तय होगा।

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