ब्रैन ट्यूमर एक वास्तविक चुनौती: डॉ पीयूषा कुलश्रेष्ठ

(डॉ पीयूषा कुलश्रेष्ठ सीनियर कंसलटेंट एंड हैड ऑफ़ डिपार्टमेंट ऑफ़ रेडिएशन ऑनकोलॉजी मेट्रो हॉस्पिटल प्रीत विहार एवं नोएडा)

हमारे देश में प्रतिवर्ष ब्रेन हेमरेज के 28,000 नए केस आते हैं, तथा 24,000 रोगियों की मृत्यु हो जाती है , वर्ल्ड ब्रेन ट्यूमर डे पर इस बीमारी के बारे में लोगों को जागरुक किया जाता है

भास्कर समाचार सेवा

नोएडा।  जून को वर्ल्ड ब्रेन ट्यूमर डे था | आप सोच रहे होंगे, इसका क्या मतलब है, पूरे विश्व में प्रतिदिन 500 नए केस ब्रेन ट्यूमर के दर्ज किए जाते हैं |  हमारे देश में प्रतिवर्ष 28,000 नए केस आते हैं, तथा 24,000 रोगियों की मृत्यु हो जाती है |  वर्ल्ड ब्रेन ट्यूमर डे पर इस बीमारी के बारे में लोगों को जागरुक किया जाता है,  जिससे जल्दी डायनोसिस बने और सही समय सही उपचार हो,  इससे ब्रेन ट्यूमर की मृत्यु दर को हम कम कर सकते हैं,  इस वर्ष की थीम है,  प्रोटेक्ट योरसेल्फ कीप अवे फ्रॉम स्ट्रेस   सही बात है, तनाव किसी को न देना चाहिए और ना किसी से लेना चाहिए,  ब्रेन ट्यूमर बच्चों और बड़ों दोनों में ही मिलता है, यह क्यों होता है,यह भी सुनिश्चित नहीं है,केवल एक प्रतिशत कारण आनुवांशिक है, ब्रेन ट्यूमर के मुख्य लक्षण सामान्यतः सर दर्द, उल्टी,व जी मिचलाना होते हैं | कुछ लोगों में शरीर के किसी अंग – हाथ पैर या आधे शरीर में फालिस मार जाती है, आंखों से दोहरा डबल विजन देखना अचानक आंखों से धुंधला दिखना, दौरे का पढ़ना इत्यादि लक्षण है | किसी रोगी में पर्सनैलिटी में बदलाव आ जाता है | वह या तो बहुत चिड़चिड़े हो जाते हैं, या याद्दाश्त कम हो जाती है, या रोगी भूतकाल की बातें करने लगता है, जरूरी नहीं है, यह सारे लक्षण ब्रेन ट्यूमर के रोगी में ही मिले और विभिन्न बीमारियों में यह लक्षण हो सकते हैं, परंतु इन लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, तुरंत ही किसी न्यूरो चिकित्सक को दिखाकर एम.आर.आई ब्रेन विद कॉन्ट्रैक्ट करना चाहिए |  एम.आर.आई ब्रेन विद कंट्रास्ट ही, एकमात्र वह टेस्ट है, जो निश्चित तौर पर ब्रेन ट्यूमर के बारे में जानकारी दे सकता है | डायग्नोसिस होने के बाद चिकित्सक की सलाह अनुसार सर्जरी या बायोप्सी करानी चाहिए, बायोप्सी से ट्यूमर की ग्रेड तथा हिस्टोलॉजी का पता चलता है, कि किस तरह का ट्यूमर है और आगे रेडियोथैरेपी या कीमोथैरेपी की जरूरत है या नहीं। हाई ग्रेड ग्लाइमा में सर्जरी, रेडियोथैरेपी और कीमोथैरेपी तीनों की आवश्यकता होती है। समय रहते इलाज कराने से रोगी की जान बहुत हद तक बचाई जा सकती है। बच्चों में कुछ ऐसे ब्रेन ट्यूमर होते हैं जो दो-तीन साल के दौरान बढ़ते हैं और लक्षण भी बहुत धीरे-धीरे आते हैं, यह लो ग्रेड ट्यूमर होते हैं, अगर बच्चों की पर्सनैलिटी में परिवर्तन लगता है, जैसे बच्चा स्लो होता जा रहा है, पढ़ाई और खेलकूद में भी रुचि नहीं रह गई है, तो एक बार चिकित्सक को जरूर दिखाना चाहिए।  यह अवसाद भी हो सकता है, परंतु लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए |

 बीते वर्ष वर्ल्ड कैंसर डे की थीम थी

 TOGETHER WE ARE STRONGER

 बिल्कुल सत्य है, अगर रोगी के घर वाले और समाज रोगी को हर तरह से सपोर्ट करें, सहानुभूति  रखकर, ट्रीटमेंट के पश्चात उन्हें अपनी पुरानी दुनिया में लौटाने में मदद करें, तो रोगी का आत्मबल  बढ़ जाता है, दोबारा उसे काफी चीजें सीखने में उतनी कठिनाई नहीं होती है। फिजियोथैरेपी ऑक्यूपेशनल थेरेपी, तथा स्पीच थेरेपी,का भी इसमें काफी रोल है |  अंत में मैं यही कहूंगी कि ऐसे लक्षणों को नजर-अंदाज न करें, इधर उधर भटकने की बजाय सीधे न्यूरो चिकित्सक को संपर्क करें और उनकी सलाह अनुसार आगे बढ़े। 

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