फ़िल्म समीक्षा : प्यारी तरावली द ट्रू स्टोरी
आर्टिस्टस ; डॉली तोमर, बॉबी वत्स, रजनीश दुबे, उदय अतरौलिया और सत्या अग्निहोत्री
डायरेक्टर : रजनीश दुबे
प्रोड्यूसर ; कल्पना राजपूत, अमित गुप्ता
अवधि ; 2 घण्टे 23 मिनट
सेंसर ; यू/ए सर्टिफिकेट
रेटिंग ; 4 स्टार्स
अगर किसी महिला की शादी असफल हो जाती है तो उसे दूसरी बार लड़का मिलने में बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है। यह समाज का एक कड़वा सच है। और यदि किसी महिला की दो बार शादी टूट चुकी है तो फिर सोचिए कि समाज मे, उसके घर मे उसे किस नज़र से देखा जाता होगा। इस हफ्ते थेटर्स में रिलीज हुई फिल्म “प्यारी तरावली द ट्रू स्टोरी” की कहानी प्यारी (डॉली तोमर) की है, जो दो बार ससुराल से भाग जाती है लेकिन उसकी शादी तीसरी बार भी धूमधाम से हो रही है। गांव का एक चाय वाला लक्ष्मण (रजनीश दुबे) प्यारी को अपनाने के लिए तैयार है मगर खुद प्यारी अब तीसरी बार सात फेरों के चक्कर में नहीं पड़ना चाहती। वह लक्ष्मण के सामने बीड़ी के कश लगाती है ताकि वह उससे शादी का इरादा बदल दे। वह कहती है कि उसे खाना बनाना नहीं आता तो लक्षमण कहता है कि वह उसके लिए खाना बना देगा।
प्यारी लक्ष्मण के सामने कई अजीब सी शर्ते भी रखती है मगर वह उसकी हर शर्त, हर मांग को मानने के लिए तैयार हो जाता है। खैर लक्ष्मण और प्यारी की शादी हो जाती है। कहानी में मोड़ उस समय आता है जब प्यारी अचानक लापता हो जाती है। लक्ष्मण के होश उड़ जाते हैं, वह बेतहाशा अपनी प्यारी को तलाश कर रहा होता है, मगर कहीं उसकी कोई खबर नहीं मिलती। लक्ष्मण दीवाने की तरह भटक रहा है और ऐसी सिचुएशन में एक गीत बज रहा है जो पुरानी हिंदी फिल्म का सदाबहार गीत याद दिला देता है “ये दुनिया ये महफ़िल मेरे काम की नहीं, अपना पता मिले न खबर यार की मिले, दुश्मन को भी न ऐसी सज़ा प्यार की मिले।”
क्या प्यारी तीसरी बार भाग गई है? वह कहां गई है? वह कैसे गायब हुई? लक्ष्मण का अगला कदम क्या होगा? इन तमाम सवालों का जवाब आपको पूरी पिक्चर देखकर मिलेगा। ये फ़िल्म एक सच्ची घटना पर आधारित है जो आपको हंसाती है रुलाती है, भावनात्मक करती है, ज़ेहन में कुछ सवाल भी छोड़ जाती है। और यह सब कमाल लेखक निर्देशक रजनीश दुबे का है जिन्होंने दृश्यों को इतना रियल रखा है कि दर्शक उससे कनेक्ट कर जाता है।
हिंदी सिनेमा के संदर्भ में अक्सर कहा जाता है कि यहां मूल कहानियो का अकाल पड़ा रहता है। मगर सलीम जावेद की जोड़ी ने जिस तरह दर्जनों ब्लॉकबस्टर फ़िल्मो का लेखन किया उससे सिद्ध हुआ कि स्क्रीनप्ले ही हीरो होता है, बेहतरीन संवाद ही अपना प्रभाव छोड़ते हैं। लेखक निर्देशक रजनीश दुबे भी सलीम जावेद की लेखनी शैली से प्रभावित प्रतीत होते हैं उन्होंने फिल्म की पटकथा इतनी एंगेजिंग रखी है, डायलॉग ऐसे नेचुरल रखे हैं कि ऑडिएंस को सिनेमाघरों में बड़ी पिक्चर देखने का अलग ही अनुभव होता है। कहीं कहीं ऐसा प्रतीत होता है कि हॉलिवुड स्टाइल का स्क्रीनप्ले है जो दर्शकों की नब्ज पकड़े हुए है।
फ़िल्म की सबसे खास बात यह है कि इसमे हर एक किरदार यादगार है और सभी कलाकारों ने अपनी बेमिसाल अदाकारी का सबूत दिया है।
फ़िल्म में ऎक्ट्रेस डॉली तोमर ने प्यारी के टाइटल रोल को जिस ढंग से जिया है, वह वास्तव में अवार्ड विनिंग भूमिका है। प्यारी के लिए कई फ़िल्म फेस्टिवल्स में डॉली तोमर ने बेस्ट ऎक्ट्रेस का अवार्ड जीता भी है। उनके चरित्र की कई परतें हैं और उन्होंने इस पूरी जर्नी को जिस तरह बिग स्क्रीन पर पेश किया वह तारीफ के काबिल है। रजनीश दुबे ने भी लक्ष्मण के किरदार में जान डाल दी है हालांकि उनके कंधे पर दोहरी जिम्मेदारी थी एक ओर वह लेखक निर्देशक भी थे तो वहीं प्रमुख भूमिका भी निभा रहे थे मगर उसके बावजदू अपनी गहरी अदाकारी का असर उन्होंने छोड़ा है। बॉबी वत्स, उदय अतरौलिया सहित सभी ऐक्टर्स ने अपनी अच्छी एक्टिंग का लोहा मनवाया है।
फ़िल्म में जहां तक संगीत की बात है बहुत ही प्यारी धुनें हैं, काफी प्यारी आवाजें हैं और बहुत ही टच करने वाले शब्द हैं। सभी गाने सिचुएशनल हैं, गीत में मधुरता और मेलोडी है। गानों का इस तरह फिल्मांकन किया गया है कि डायरेक्टर के नज़रिए की गहराई का पता चलता है। फ़िल्म का बैकग्राउंड म्युज़िक भी दृश्यों को और उभार कर लाने में मदद करता है।
फ़िल्म प्यारी तरावली को देखना चाहिए और ऐसे सिनेमा को प्रोत्साहित करने की जरूरत है ताकि आगे भी इस प्रकार की फिल्में बनाई जाती रहें।