गुमनामी में गुम हुए एक मायानाज़ हकीम व कवि: हकीमअब्दुल वहीद अश्क बिजनौरी

भास्कर समाचार सेवा

धामपुर। गरीब मजलूमों के रहे सच्चे हितेषी स्वर्गीय हकीम अब्दुल वहीद अश्क बिजनौरी का जन्म धामपुर तहसील क्षेत्र के अंतर्गत ग्राम हुसैनपुर हमीद हबीबवाला में एक मशहूर विद्वान घराने में आज के ही दिन 19 नवंबर सन 1917 में हुआ था। डॉ, मिस्बाहुद्दीन अजहर उर्फ गुड्डू अलीगढ़ ने एक विशेष मुलाकात में हमारे जिला प्रभारी संजय जैन से बताया कि स्वर्गीय अब्दुल वहीद ने आजादी से पहले अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के तिब्बया कालिज से यूनानी चिकित्सा में 5 साल का डिप्लोमा किया था। इस लिये अपने नाम से पहले हकीम लिखते थे। उन्होंने हिकमत के अलावा अलीगढ़ के जामिया उर्दू से अदीब – अदीब माहिर व कामिल की सनद भी हासिल की थी। उन्होंने बताया कि हकीम अब्दुल वहीद अलीगढ़ में विद्यार्थी थे तो सराय हकीम में रहते थे। उनके पड़ोस में हिंदी फिल्म जगत के गीतों के बेताज बादशाह शकील बदायोनी भी उनके पडोस में आकर रहे फिर शाम को दोनों की महफिले खूब जमा करती थी। शकील बदायोनी की लिखी गजलों में हकीम अब्दुल वहीद सुधार भी किया करते थे इसीलिए शकील के उस्ताद हुए। उनकी उर्दू, फारसी, अरबी में उत्कृष्ट पकड़ थी । उन्होंने गजल, गीत, नजम, मस्नवि, नात एवं मुख्तलिफ अवसर पर अपने दिल की आवाज़ को शब्दों में ढाला तो एक से बढकर एक उत्कृष्ट कविताएं कहीं। अलीगढ़ से शिक्षा लेने के पश्चात वह कुछ दिन सरकारी नौकरी में भी रहे। जब जंग आजादी का शोर हुआ तो उन्होंने भी देश प्रेमी गीत लिखे और उनको अपनी आवाज में प्रस्तुत किया। सरकारी काम से इलाहाबाद गए एक सराय में बैठे हुए थे गली में कुछ बच्चे देश प्रेमी गीत जो आजादी से प्रेरित था गा रहे थे। उन्होंने बाहर निकल कर बच्चों से मालूम किया ये किसका गीत है एक समझदार बच्चे ने जवाब दिया कोई हकीम अब्दुल वहीद है कुछ रोज पहले अखबार में छपा था। कहते थे सुनकर बहुत ही खुशी हुई कि मैं आवाम तक पहुंच गया। एक शायर के लिए उससे बढ कर कोई बात हो ही नहीं सकती कि वो अवाम तक पहुंच जाये। उनका ग़ज़ल पढ़ने का अंदाज बहुत ही निराला था, आवाज घन गरजदार थी। महफिलों मे अपनी रचनाओं और अंदाज बयांन से सुनने वालों के दिल दिमाग पर छा जाते थे। उनके व्यक्तित्व के कई पहलू थे। एक तरफ बेहतरीन डॉक्टर व हकीम थे तो दूसरी तरफ एक शानदार बेहतरीन शायर, शिक्षक, एक तरफ अगर मस्जिद के इमाम थे तो दूसरी तरफ एक श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ, एक ओर ग्राम के न्यायाधीश है तो दूसरी और ग्राम प्रधान भी हैं। गांव में और आसपास के क्षेत्र में भी उनके जैसा मेहमाननवाज कोई नहीं था। उनसे सरकारी दफ्तर में बैठे बड़े-बड़े अधिकारी मिलने की चाहत रखते थे और मिलकर उनके प्रेमियों में शामिल हो जाते थे और बातचीत करके संतुष्ट हो जाते थे। बहुत ही एहतराम के साथ वह सरकारी अधिकारियों से मुलाकात करते उनको उनके पद के अनुसार सम्मान देते थे। यह व्यक्तित्व देखकर सरकारी अधिकारी भी उनसे खुश रहते और उनके काम को प्राथमिकता के आधार पर करने के आदेश देते। पीड़ित की बात बहुत ही धैर्य सुनते और हर संभव प्रयास करते कि उसका काम हो जाए। गरीबों मजलूमों के सच्चे हितेषी थे। ग्राम वासियों के लिए हमेशा मदद के लिए तैयार रहते थे। अगर किसी के घर में कोई परेशानी होती थी तो उसकी हर परेशानी को अपने परेशानी समझते थे। गांव के हर आदमी को अपने घर के सदस्यों की तरह मानते थे। उनकी इस खूबी के कारण ही जो भी उनसे मिलता उनका ही होकर रह जाता था। उनके व्यक्तित्व की अमिट छाप उस व्यक्ति पर पड़ जाती थी।वह जिंदगी भर के लिए उनका दीवाना होकर रह जाता था।

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