बहराइच : शायर कैफ़ी आज़मी की जयंती पर गोष्ठी आयोजित की गई

बहराइच l अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शायर व साहित्यकार शारिक रब्बानी के नानपारा स्थित आवास पर भारतीय सांस्कृतिक सहयोग एवं मैत्री संघ उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में कैफ़ी आज़मी की 105 वीं जयंती धूमधाम से मनाई गई । इस मौके पर गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता संस्था के प्रदेश अध्यक्ष शारिक रब्बानी ने की संचालन शहनवाज़ खां ने किया। कार्यक्रम में भारतीय सांस्कृतिक सहयोग एवं मैत्री संघ उत्तर प्रदेश की ओर से शायर शारिक रब्बानी ने ध्यान प्रकाश श्रीवास्तव एडवोकेट को सांस्कृतिक कर्मी, फिल्म कलाकार, लेखक एवं फिल्म निर्देशक के रूप में उनकी सेवाओं के लिए अंगवस्त्र और मैत्री सम्मान प्रदान किया।
गोष्ठी की शुरुआत गुलज़ार वासिफ रिज़वी ने कैफ़ी आज़मी की नज़्म ‌मकान पढ़कर की, शहनवाज़ खां और ध्यान प्रकाश श्रीवास्तव ने कैफ़ी साहब के बारे में अपने विचार प्रस्तुत कर शेर पढ़े। शारिक रब्बानी ने कैफ़ी आज़मी के बारे में बताया कि मशहूर शायर कैफ़ी आज़मी का जन्म 14 जनवरी 1919 को आजमगढ़ के मिजवां गांव में हुआ था और कैफ़ी साहब के बचपन के कुछ साल बहराइच में भी गुज़रे और बहराइच के एक मुशायरे में उन्होंने 11 साल की उम्र में अपनी पहली ग़ज़ल पढ़ी जिसका मतला था – इतना न ज़िन्दगी में किसी के खलल पड़े। हंसने से हो सुकून न रोने से कल पड़े।। यह भी बताया कि कैफ़ी आज़मी की गणना प्रगतिशील शायरो की पहली पंक्ति में की जाती है।

आज़मी की शयरी में समाजिक और राजनैतिक जागरूकता का समावेश है । हकीकत, हीर रांझा, कागज़ के फूल, शोला और शबनम आदि अनेक फिल्मों में गीत लिखे। प्रमुख पुस्तकें आवारा सजदे, आखिरी शब, समाया, झंकार वगैरह है। कैफ़ी आज़मी को महाराष्ट्र उर्दू अकादमी अवार्ड, सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड, साहित्य अकादमी अवार्ड, फिल्म फेयर अवार्ड सहित अनेक अवार्ड मिल चुके हैं। कैफ़ी आज़मी का देहांत 10 मई 2002 को मुम्बई में हुआ। कैफ़ी आज़मी के पुत्र बाबा आज़मी, बेटी मशहूर फिल्म अभिनेत्री शबाना आजमी और दामाद जावेद अख्तर साहब आज भी फिल्म जगत की महान हस्तियों में शुमार होते हैं। गोष्ठी में शम्स नानपारवी, कैफ़ नानपारवी, लाल नानपारवी,शकील अंसारी मकी, सैयद रेहान, सहाबुद्दीन, अय्यूब अंसारी ने अपने कलाम पेश किए।

अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शायर व साहित्यकार शारिक रब्बानी के नानपारा स्थित आवास पर भारतीय सांस्कृतिक सहयोग एवं मैत्री संघ उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में कैफ़ी आज़मी की 105 वीं जयंती धूमधाम से मनाई गई । इस मौके पर गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता संस्था के प्रदेश अध्यक्ष शारिक रब्बानी ने की संचालन शहनवाज़ खां ने किया। कार्यक्रम में भारतीय सांस्कृतिक सहयोग एवं मैत्री संघ उत्तर प्रदेश की ओर से शायर शारिक रब्बानी ने ध्यान प्रकाश श्रीवास्तव एडवोकेट को सांस्कृतिक कर्मी, फिल्म कलाकार, लेखक एवं फिल्म निर्देशक के रूप में उनकी सेवाओं के लिए अंगवस्त्र और मैत्री सम्मान प्रदान किया।

गोष्ठी की शुरुआत गुलज़ार वासिफ रिज़वी ने कैफ़ी आज़मी की नज़्म ‌मकान पढ़कर की, शहनवाज़ खां और ध्यान प्रकाश श्रीवास्तव ने कैफ़ी साहब के बारे में अपने विचार प्रस्तुत कर शेर पढ़े। शारिक रब्बानी ने कैफ़ी आज़मी के बारे में बताया कि मशहूर शायर कैफ़ी आज़मी का जन्म 14 जनवरी 1919 को आजमगढ़ के मिजवां गांव में हुआ था और कैफ़ी साहब के बचपन के कुछ साल बहराइच में भी गुज़रे और बहराइच के एक मुशायरे में उन्होंने 11 साल की उम्र में अपनी पहली ग़ज़ल पढ़ी जिसका मतला था – इतना न ज़िन्दगी में किसी के खलल पड़े। हंसने से हो सुकून न रोने से कल पड़े।। यह भी बताया कि कैफ़ी आज़मी की गणना प्रगतिशील शायरो की पहली पंक्ति में की जाती है।

आज़मी की शयरी में समाजिक और राजनैतिक जागरूकता का समावेश है । हकीकत, हीर रांझा, कागज़ के फूल, शोला और शबनम आदि अनेक फिल्मों में गीत लिखे। प्रमुख पुस्तकें आवारा सजदे, आखिरी शब, समाया, झंकार वगैरह है। कैफ़ी आज़मी को महाराष्ट्र उर्दू अकादमी अवार्ड, सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड, साहित्य अकादमी अवार्ड, फिल्म फेयर अवार्ड सहित अनेक अवार्ड मिल चुके हैं। कैफ़ी आज़मी का देहांत 10 मई 2002 को मुम्बई में हुआ। कैफ़ी आज़मी के पुत्र बाबा आज़मी, बेटी मशहूर फिल्म अभिनेत्री शबाना आजमी और दामाद जावेद अख्तर साहब आज भी फिल्म जगत की महान हस्तियों में शुमार होते हैं। गोष्ठी में शम्स नानपारवी, कैफ़ नानपारवी, लाल नानपारवी,शकील अंसारी मकी, सैयद रेहान, सहाबुद्दीन, अय्यूब अंसारी ने अपने कलाम पेश किए।

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