पीलीभीत। कारगिल शहीदी दिवस को देशभर में गौरव के साथ मनाया जा रहा है। लेकिन जनपद के शहीद बेटे को अधिकारियों ने जिला मुख्यालय पर कोई स्थान नहीं दिया। तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट ने चौराहे तो खूब सजाए मगर जनपद के शहीद बेटे को भुला दिया। यह कमी उस समय तक रहेगी जब तक जिले के शहीद बेटे को जिला मुख्यालय पर कोई पहचान नहीं मिल जाती है।
भारत-पाकिस्तान के बीच 1999 में हुए कारगिल युद्ध की शहादत वीर जवान सैनिकों की याद ताजा कर जाती है। भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को कारगिल युद्ध में सबक सिखाया था। करीब दो माह से अधिक चलने वाले कारगिल युद्ध में सैकड़ो भारतीय सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति देकर भारत के गौरव को बनाए रखा। कारगिल युद्ध में जनपद के गांव अभयपुर हरिपुर के सुरेंद्र सिंह लवाणा ने शहादत को प्राप्त किया था। जनपद के शहीद बेटे सुरेंद्र सिंह लवाणा को वीरगति मिली, लेकिन जिला मुख्यालय पर सम्मान अधूरा है।
तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट ने शहर के मुख्य मार्ग और चौराहों को सुंदर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन कारगिल शहीद बेटे को भूल गए। विगत वर्ष 1999 में शहीद हुए सैनिक सुरेंद्र सिंह लवाणा की शहादत जनपद के लिए गौरव की बात है मगर उससे भी अधिक इस बात का अफसोस है कि शहीद बेटे को साल में सिर्फ एक दिन याद किया जाता है।
शहीद सुरेंद्र सिंह का पूरा सम्मान उस समय होगा जब शहर के प्रमुख चौराहे पर स्मारक स्थापित किया जाए। स्मारक के साथ ही जनपद के लोग शहीद सुरेंद्र सिंह लवाणा की शहादत को महसूस कर सकेंगे और वही शहीद जवान के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।