सर्वे में शामिल 83% लोग मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं को लेकर कोई शर्मिंदगी महसूस नहीं करते, वहीं 81% लोग दूसरों को यह बताने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं कि वो थेरेपी करा रहे हैं।
India, 2024: जहाँ मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बातचीत खुलकर होने लगी है, वहीं आईटीसी ‘फील गुड विद फियामा मेंटल वैलबींग सर्वे 2024’ को भी 4 साल पूरे हो गए हैं। इस सर्वे में भारत में मानसिक स्वास्थ्य के बारे में लोगों की धारणाओं और वास्तविकताओं का विश्लेषण किया जाता है। नीलसन आईक्यू द्वारा कराए गए इस सर्वे में भारत में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों की जागरुकता, दृष्टिकोण और व्यवहार का खुलासा हुआ। इसमें मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को स्वीकार करने की जरूरत के बारे में प्रगतिशील दृष्टिकोण सामने आया, वहीं प्रोफेशनल की मदद लेने में आने वाली बाधाओं के बारे में भी जानकारी मिली।
बढ़ती जागरुकता के बाद भी लोग चुपचाप मानसिक पीड़ा को सहते रहते हैं, वो अपने भावनात्मक स्वास्थ्य के बारे में खुलकर बात करने या प्रोफेशनल की मदद लेने से कतराते हैं। एक प्रवृत्ति अपनी समस्या को छोटा मानने और इस सोच की भी है कि प्रोफेशनल की मदद केवल उन्हें लेनी चाहिए, जिनकी मानसिक समस्या बड़ी होती है। इस वजह से प्रोफेशनल की मदद मिलने में अक्सर देर हो जाती है। जागरुकता और कार्रवाई के बीच इस अंतर की वजह से एक गंभीर सवाल खड़ा होता हैः आज सूचना और स्वीकारिता के युग में भी कई सारे लोग स्वस्थ रहने के लिए थेरेपी लेने से क्यों कतराते हैं? इस सर्वे में इस सवाल का विश्लेषण किया गया है, जिससे एक विरोधाभास निकलकर सामने आया है।
जहाँ सर्वे में शामिल 83% लोग मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं को लेकर कोई शर्मिंदगी महसूस नहीं करते, वहीं 81% लोग दूसरों को यह बताने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं कि वो थेरेपी करा रहे हैं। एक तरफ सामान्य जीवन में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं को लेकर स्वीकारिता बढ़ी है, तो दूसरी तरफ प्रोफेशनल की मदद लेने के बारे में सामाजिक धारणा का भार भी बहुत ज्यादा है। सामाजिक धारणा के डर की वजह से लोग अपने मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुलकर चर्चा नहीं कर पाते हैं, जिससे उन्हें सहयोग नहीं मिल पाता।
इस साल के सर्वे में भाग लेने वाले 80% जेन ज़ी का मानना है कि उनके माता-पिता उन्हें थेरेपी लेने में मदद करेंगे। करीबी समुदायों में इसके प्रति स्वीकारिता बढ़ रही है और यह मानसिक स्वास्थ्य पर होने वाली बातचीत को बढ़ावा देने की ओर एक कदम है।
सर्वे के मुख्य परिणामः
मानसिक स्वास्थ्य • लागत थेरेपी की बाधा है, सर्वे में शामिल 77% लोगों को थेरेपी की लागत अधिक महसूस हुई। इसके अलावा, 74% लोग इसलिए थेरेपी नहीं लेते हैं क्योंकि हेल्थ इंश्योरेंस में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं कवर नहीं होतीं।
• 55% लोगों का मानना है कि थेरेपी कमजोर लोग कराते हैं। इससे मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कलंक की भावना उजागर होती है।
• 83% लोगों का मानना है कि युवाओं को बुजुर्गों के मुक़ाबले ज्यादा चिंता और डर महसूस होते हैं। इससे युवाओं पर अद्वितीय दबाव सामने आए।
• सर्वे में शामिल 82% लोगों का मानना है कि अच्छे थेरेपिस्ट को खोजने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है।
• सर्वे में शामिल 82% जेन ज़ी का मानना है कि लोग मानसिक समस्या के लक्षणों को पहचान नहीं पाते हैं। इससे जागरूकता और शिक्षा बढ़ाए जाने की जरुरत प्रदर्शित होती है।
• सर्वे में शामिल 69% लोगों का मानना है कि मानसिक समस्याएं उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती हैं।
• सर्वे में शामिल 65% लोगों का मानना है कि मानसिक समस्याएं नींद पर नकारात्मक असर डालती हैं।
काम एवं करियर • सर्वे में शामिल जिन लोगों को कार्यस्थल पर तनाव महसूस हुआ, उनमें से 90% कार्य-जीवन संतुलन के लिए बेहतर नीतियों की सराहना करेंगे।
• सर्वे में शामिल 21% जेन ज़ी ने अपनी मानसिक समस्याओं का मुख्य कारण कार्य-जीवन के असंतुलन को बताया।
• सर्वे में शामिल जिन वर्किंग प्रोफेशनल्स को मानसिक समस्याएं हैं या जिनके परिवार के सदस्य मानसिक समस्याओं से पीड़ित हैं, उनके द्वारा ऑनलाइन परामर्श लिए जाने में काफी वृद्धि हुई है, जो पिछले वर्ष 33% की तुलना में 46% है।
• सर्वे में शामिल 42% लोगों का मानना है कि करियर के निर्णयों को लेकर उनकी चिंता से उनके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
• सर्वे में शामिल जिन लोगों को कार्यस्थल पर तनाव महसूस हुआ, उनमें से 71% का मानना है कि सफलता के सामाजिक मानकों पर खरा उतरने के लिए वो शारीरिक और मानसिक रूप से टूट जाते हैं।
जीवनशैली और संबंध • सर्वे में शामिल 64% जेन ज़ी को महसूस होता है कि मानसिक समस्याओं से उनके और उनके दोस्तों के संबंध बिगड़ते हैं।
• सर्वे में शामिल 55% मिलेनियल्स मानते हैं कि मानसिक समस्याएं उनके जीवनसाथी के साथ उनके संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं।
• सर्वे में शामिल 50% लोगों को अगर थेरेपी लेनी पड़ी तो वो अपने माता-पिता को बताएँगे। इस मामले में जेन ज़ी और मिलेनियल्स के विचार एक से हैं।
• जिन सर्वोच्च महानगरों में लोगों के बीच यह सर्वे किया गया उनमें, खराब संबंधों के कारण मानसिक स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा 41% प्रभाव बेंगलुरु में पड़ता है,।
थेरेपी के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा इसकी लागत है। सर्वे में शामिल 77% लोगों को यह खर्च अधिक महसूस हुआ। वर्चुअल थेरेपी ज्यादा किफायती विकल्प है। सर्वे में शामिल जो लोग स्वयं मानसिक समस्या का शिकार हैं या फिर उनके परिवार में कोई मानसिक समस्या से पीड़ित है, उनमें से 52% जेन ज़ी ऑनलाईन काउंसलिंग के लिए तैयार हैं, जो पिछले साल 36% के मुकाबले काफी ज्यादा है। इससे मानसिक स्वास्थ्य की मदद डिजिटल समाधानों से लिए जाने के प्रति लोगों के सहजता प्रदर्शित होती है। अपने ‘फील गुड विद फियामा’ अभियान द्वारा आईटीसी फियामा द माईंड्स फाउंडेशन के साथ साझेदारी में किफायती दरों पर वर्चुअल थेरेपी उपलब्ध करा रहा है। यह थेरेपी योग्य प्रोफेशनल्स प्रदान करते हैं, जो केवल 300 रुपये प्रति सत्र में ली जा सकती है। इसके लिए विज़िट करेंः https://www.fiama.in/feel-good
आईटीसी लिमिटेड के डिवीज़नल चीफ एग्ज़िक्यूटिव, पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स बिज़नेस, श्री समीर सत्पति ने कहा, ‘‘फील गुड विद फियामा अभियान हमारे ब्रांड के उद्देश्य के अनुरूप है’’। उन्होंने आगे कहा, ’’मानसिक समस्या की थेरेपी का सफर बहुत चुनौतीपूर्ण होता है और कभी-कभी यह समझना भी मुश्किल हो जाता है कि शुरुआत कहाँ से की जाए। इस साल के सर्वे में थेरेपी में आने वाली अनेक बाधाओं, जैसे ऊँची लागत, कलंक, और सही थेरेपी तलाशने में होने वाली मुश्किल के बारे में पता चला है। इस जानकारी से माईंड्स फाउंडेशन के साथ गठबंधन में फियामा के वर्चुअल थेरेपी क्लिनिक द्वारा थेरेपी को ज्यादा सुलभ और किफायती बनाने के हमारे प्रयास में मदद मिलेगी। मानसिक स्वास्थ्य को समझने, स्वीकार करने और संबोधित करने की ओर प्रगतिशील दृष्टिकोण बहुत उत्साहवर्धक है।’’
जहाँ प्रोफेशनल की मदद मानसिक स्वास्थ्य को संबोधित करने के लिए महत्वपूर्ण है, वहीं इस सर्वे में अपने दैनिक जीवन में इससे निपटने के स्वस्थ तरीकों को शामिल करना भी बहुत आवश्यक है। तनाव कम करने के लिए सर्वे में शामिल 29 % लोग योगा, 31 % लोग ध्यान और 30 % लोग शारीरिक व्यायाम, जैसे खेल-कूद, डांस, जिम, वॉकिंग आदि करते हैं। 36 % लोगों को संगीत में सुकून मिलता है। आईटीसी फियामा मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देकर इसके बारे में खुलकर बात करने और इसे स्वीकार करने की संस्कृति को बढ़ावा दे रहा है।