नई दिल्ली । हाल के दिनों में काम के घंटों को लेकर भारत और अमेरिका में दिलचस्प बहस हो रही है। भारत में जहां एक ओर इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने युवाओं से सप्ताह में 70 घंटे काम करने की अपील की है, वहीं दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नए विभाग की भर्ती शर्तों ने वैश्विक चर्चा को जन्म दिया है। अमेरिका के नए ‘डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी (डीओजीआई)’ की स्थापना के बाद इसकी भर्ती प्रक्रिया ने सबका ध्यान खींचा।
विभाग के प्रमुख एलन मस्क ने एक अनोखा विज्ञापन जारी किया, इसमें उम्मीदवारों से शिक्षा या अनुभव की बजाय एक सुपर हाई आईक्यू स्तर और सप्ताह में 80 घंटे से अधिक काम करने की क्षमता की मांग की गई है। इस शर्त में फिजूलखर्ची पर लगाम लगाने की भी बात की गई है। मस्क का मानना है कि इस तरह के कठिन कामकाजी घंटे ही अमेरिका को फिर से महान बना सकते हैं।
भारत में इस मुद्दे ने तब तूल पकड़ा जब नारायण मूर्ति ने कार्यक्रम के दौरान भारत को विकसित बनाने के लिए युवाओं से सप्ताह में करीब 70 घंटे काम करने की अपील की। उनका मानना है कि कठिन परिश्रम और त्याग के बिना देश को विकास की दिशा में नहीं ले जाया जा सकता। इंफोसिस प्रमुख मूर्ति ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उदाहरण दिया, जो सप्ताह में 100 घंटे काम करते हैं, और यह दर्शाने की कोशिश की कि अगर वह इतना काम कर सकते हैं, तब 0आम लोग भी यही कर सकते हैं।
मूर्ति ने बताया कि जब भारत 1986 में छह दिन के कामकाजी सप्ताह से पांच दिन के सप्ताह में शिफ्ट हुआ था, तब उन्हें बहुत दुख हुआ था। उनका कहना था कि जर्मनी और जापान ने दूसरे विश्व युद्ध के बाद कठिन मेहनत की और अब दोनों देश अमीर हैं, अब भारत को भी इसी रास्ते पर चलने की जरूरत है।
श्रमिकों के अधिकारों का सम्मान
भारत में जहां एक ओर कुछ लोग अधिक काम करने की बात करते हैं, वहीं श्रम संगठनों और मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि लंबे समय तक काम करना श्रमिकों की सेहत और मानसिक स्थिति पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है। वे मानते हैं कि काम के घंटे कम होने चाहिए और श्रमिकों को उचित वेतन, अवकाश और काम करने की बेहतर परिस्थितियां मिलनी चाहिए।
जहां नारायण मूर्ति ने अपने बयान में जर्मनी और जापान का उदाहरण देकर कहा कि इन देशों ने कठिन समय में कड़ी मेहनत की और वे आज विकसित देशों में शुमार हैं। उन्होंने कहा कि भारत को इन्हीं देशों से प्रेरणा लेकर अपने विकास की यात्रा तेज करनी चाहिए। भारत और अमेरिका में काम के घंटों को लेकर हो रही चर्चाएं यह दर्शाती हैं कि श्रमिकों की कार्य संस्कृति और उनके अधिकारों पर गंभीर विचार किया जा रहा है। जहां एक ओर कुछ प्रमुख लोग काम के घंटों में वृद्धि का समर्थन करते हैं, वहीं दूसरी ओर इसका विरोध भी किया जा रहा है, क्योंकि यह कर्मचारियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है।