महाराष्ट्र की महारार : भाजपा के सामने हैं ढेरों चुनौतियां, आसान नहीं सीएम का नाम तय करना

  • क्या दोहराया जाएगा 1999 का फार्मूला?

मुंबई । महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणाम आए हुए एक हफ्ते से ज्यादा हो गया है। सबसे ज्यादा 132 सीटें जीतने वाली भाजपा के लिए मुख्यमंत्री का नाम तय करना आसान नहीं है। उसके सामने ढेरों चुनौतियां हैं शायद इसलिए अभी तक भाजपा किसी ठोस निर्णय लेने से लगातार बचती रही है। महाराष्ट्र का अगला सीएम कौन होगा इसे लेकर रार जारी है।

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद की स्थिति देखें तो राज्य के कार्यवाहक सीएम एकनाथ शिंदे की शिवसेना के पास 57 सीटें हैं। ऐसे में उसे नजरअंदाज करना आसान नहीं है। भाजपा किसी भी हाल में अकेले सरकार बना नहीं सकती है। ऐसे में महायुति में सीएम पद को लेकर खींचतान जारी है। सीएम पद की रेस में देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे हैं। दोनों झुकने को तैयार नहीं हैं। इसी चक्कर में भाजपा और शिवसेना आमने-सामने है। शिंदे कैंप सीएम पद के बदले होम मिनिस्ट्री मांग रहा है। भाजपा सीएम पद के साथ-साथ होम भी अपने पास ही रखना चाहती है। इन्हीं सब चीजों को लेकर महाराष्ट्र में नतीजों के बाद भी सस्पेंस ही सस्पेंस है। हालांकि, अजित पवार ने कह दिया है कि सीएम भाजपा का होगा और सरकार गठन में देरी कोई पहली बार की घटना नहीं है। इस तरह खींचतान के बीच लोगों को 1999 का फॉर्मूला याद आ रहा है। दरअसल, महाराष्ट्र में 5 सितंबर और 11 सितंबर 1999 को दो चरणों में विधानसभा चुनाव हुए थे। महाराष्ट्र चुनाव के तनीजे 7 अक्टूबर 1999 को आए थे। उस चुनाव में भाजपा, शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी प्रमुख पार्टियां थीं। भाजपा और शिवसेना के बीच गठबंधन था। दोनों ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। मगर एनसीपी और कांग्रेस ने एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा। चुनावी नतीजों में शिवसेना को 69 और भाजपा को 56 सीटें मिली थीं। वहीं कांग्रेस 75 और एनसीपी के खाते में 58 सीटें गई थीं। अन्य के खाते में 30 सीट थी। उस चुनाव में किसी भी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। क्योंकि भाजपा और शिवसेना के बीच उस वक्त गठबंधन था, फिर भी मिलाकर उसके सीटों की संख्या 125 ही पहुंच रही थी, जो कि बहुमत से 20 कम था। नतीजा ये हुआ कि दोनों के बीच सरकार गठन को लेकर लंबी खींचतान चली। किसका सीएम कौन होगा, किसे कौन मंत्रलाय मिलेगा… पर करीब 20-22 दिनों तक खींचतान चली थी। शिवसेना के नारायण राणे और भाजपा के गोपीनाथ मुंडे दोनों सीएम बनना चाहते थे। खींचतान की वजह भी यही थी। इस चक्कर में शरद पवार को सरकार बनाने का मौका मिला। चुनाव में शरद पवार की एनसीपी कांग्रेस से अलग होकर चुनाव लड़ी थी। शरद पवार ने जैसे ही भाजपा-शिवसेना की तकरार बढ़ते को देखा, तुरंत कांग्रेस से गठबंधन कर लिया और मौका देखते ही सरकार बना ली।

इधर खींचतान चलती रही उधर उन्होंने सरकार बना ली
1999 में शरद पवार की चाल से भाजपा और शिवसेना की सरकार बनते-बनते रह गई थी। एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन में कांग्रेस के विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री बने थे। वहीं, एनसीपी के छगन भुजबल डिप्टी सीएम बने. दिलचस्प है कि 1999 में ही शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी का गठन किया था। शरद पवार और कांग्रेस की यह जोड़ी 1999 से लेकर 2014 तक हिट रही। भाजपा-शिवसेना को वनवास देखना पड़ गया. इस बार भी भाजपा और शिंदे वाली शिवसेना के बीच खींचतान बढ़ती ही जा रही है. महाराष्ट्र सीएम पर सस्पेंस कब खत्म होगा, यह भी सस्पेंस ही है।

तो क्या फिर 1999 दोहराया जाएगा
कहने को सवाल बड़ा अटपटा है और एकाएक भरोसा भी नहीं किया जा सकता है लेकिन राजनीति में कुछ भी हो सकता है इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता है। यहां यदि नए फॉर्मूले पर बात करें तो शिंदे नाराज होते हैं और स्थिति ज्यादा बिगड़ती है तो उनके पास 57 सीटें और अजित पवार की एनसीपी के पास 41 सीटे हैं। इस तरह इन्ही दोनों को मिलाकर इनके पास 98 सीटें होती हैं। अब बहुमत के लिए केवल 47 सीटों की जरुर है तो शरद पवार की एनसीपी,कांग्रेस और उद्वव ठाकरे की शिवसेना को मिलाकर 46 सीटें होती हैं। इसके बाद कुछ अन्य को भी साथ में लिया जाए तो भाजपा विरोधी दलों की महाराष्ट्र में सरकार बनने की संभावना देखी जा सकती है। वहीं दूसरी तरफ राजनीति की पंडित यही मानकर चल रहे हैं कि भाजपा विरोधी दल संभवत: इसी फॉर्मूले पर काम कर सकते हैं और आशंका है कि इस तरह से कई दलों में सियासी खिचड़ी पकाई जा रही है। कहीं ऐसा न हो कि इधर सौदेबाजी चलती रहे और सरकार कोई और बना बैठे। ठीक वैसे ही जैसे 1999 में स्थिति बनी थी।

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