अस्सी और नब्बे के दशक में तीन-चार मौकों पर कानपुर आए थे जाकिर हुसैन
मर्चेंट चैंबर में बिखेरा था तबले का जादू, शास्त्रीय नृत्य पर दुर्गालाल संग की थी जुगलबंदी
कानपुर। दुनिया भर में मशहूर तबले के जादूगर उस्ताद जाकिर हुसैन के इंतकाल से अपना कानपुर भी स्तब्ध है। पद्मभूषण, पद्मविभूषण जैसे तमाम पुरस्कारों से नवाजे जा चुके उस्ताद की तमाम यादें कानपुर के लोग आज भी सहेजे हैं। अस्सी व नब्बे के दशक में उस्ताद जाकिर हुसैन तीन-चार मौकों पर कानपुर आ चुके हैं। तब कानपुर के वरिष्ठ पत्रकार राकेश वाजपेयी ने उनका साक्षात्कार लिया था। राकेश वाजपेयी बताते हैं कि एक कार्यक्रम में आए उस्ताद मालरोड के गीत होटल में रुके थे, तभी उनसे बातचीत का मौका मिला था। तब उन्होंने प्रिय वाद्य, ताल आदि के बारे में जानकारियां दी थीं। आज उनके कार्यक्रमों की याद कर कानपुर के सगीतप्रेमी भावुक होते रहे।
राकेश वाजपेयी ने बताया कि मशहूर तबला नवाज उस्ताद ज़ाकिर हुसैन का कानपुर से भावनात्मक संबंध था। इसकी अहम वजह, उन्हें शहर के संगीत प्रेमियों से अपनी तबला वादन कला के लिए मिला अथाह प्यार और सम्मान था। मरहूम उस्ताद का 80 के दशक के पूर्वार्द्ध में बतौर तबला वादक शहर से नाता जुड़ा था। पूर्व आईएएस एम . वरदराजन द्वारा 1984 में स्थापित “नाद ब्रह्मन ” सांस्कृतिक संस्था ने उन दिनों अपने भव्य संगीत समारोहों से शहर में धूम मचा रखी थी। उस्ताद ज़ाकिर हुसैन ने 1984 से 1986 के दौरान ” नाद ब्रह्मन ” संस्था के दो संगीत समारोहों में अपने पंजाब घराने के तबला वादन का जादू बिखेरा था। पहली बार उन्होंने सितार वादक उस्ताद विलायत अली और दूसरी बार सरोद वादक उस्ताद अमजद अली ख़ां के साथ यादगार तबला संगत की थी।
इसके बाद मरहूम उस्ताद फरवरी 1992 में भी प्रस्तुति के लिए कानपुर आए थे। पंजाब घराना के दिग्गज तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन ने अपने वालिद उस्ताद अल्ला रक्खा की राह पर चलते हुए अपनी कला से न केवल राष्ट्रीय वरन अंतरराष्ट्रीय पटल पर भी घरानेदार तबला वादन को अभिनव ऊंचाइयों पर पहुंचाया था। तबला के जादूगर को शत् शत् नमन।
उस्ताद को शत-शत नमन करते हुए राकेश वाजपेयी ने कहा कि इतने बड़े कलाकार को घमंड छू तक नहीं गया था। उनकी सादगी आज भी लोगों के दिलों में घर किये है। उन्होंने नादब्रह्मन संस्था के कार्यक्रम में शिरकत की थी। मर्चेंट चैंबर हाल में हुए इस कार्यक्रम में शास्त्रीय नृत्य के कलाकार दुर्गालाल के साथ उस्ताद की जुगलबंदी लोगों को आज भी याद है। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के बुलावे पर आल स्टार ग्लोबल कंसर्ट में भी उस्ताद शामिल हुए थे। तबले में माहिर उस्ताद अच्छे एक्टर भी थे। उन्होंने कुछ फिल्मों में भी काम किया था।
तीन ताल थी उस्ताद की मनपसंद ताल
कानपुर। राकेश बाजपेयी ने जाकिर हुसैन से लिए गए साक्षात्कार की याद ताजा करते हुए बताया कि तीन ताल उनकी मनपसंद ताल थी। नापसंद कोई नहीं। उन्होंने जब पहली बार तबले पर थाप दी थी, वे उसे ही अपनी जिंदगी का सबसे खुशनुमा मौका मानते थे। उनकी मनपसंद जगह भारत है। 1984 में नई दिल्ली के मार्डन स्कूल में पंडित रविशंकर, उस्ताद अली अकबर खान व उस्ताद अल्ला रक्खा के सात तबला बजाना उनका सबसे यादगार कार्यक्रम है। उनका मनपसंद रंग सफेद है, मनपसंद पोशाक भारतीय, मनपसंद टीवी कार्यक्रम लूसी शो और मनपसंद टीवी विज्ञापन वाह ताज वाह है। उन्हें झूठ और मक्कारी पर सबसे ज्यादा गुस्सा आता था।