संभल का प्रमुख मुहल्ला कोट है, जिसे एक सड़क दो भागों में विभाजित करती है। एक भाग कोट पूर्वी और दूसरा कोट शर्की कहलाता है। इस विभाजन की रेखा पर पृथ्वीराज के किले का एक विशाल भवन टकटकी लगाए आज भी खड़ा है । यह मुस्लिमों के कब्जे में है। हिंदू उस पर अपना अधिकार चाहते हैं। इसी भवन में एक शिलालेख लगा है, जिससे यह पता लगता है कि यह मस्जिद बाबर की आज्ञानुसार सन् 1526 में मुस्लिम फौजदार द्वारा बनवाई गई। हिंदुओं का यह हरि हर मंदिर है। हरिहर मंदिर का अर्थ विष्णु और शिव का मंदिर। ‘आईने अकबरी’ में संभल के मध्य में स्थित एक विशाल मंदिर विष्णु का होना बताया गया है। पुराने मंदिर, जिनकी चर्चा ‘संभल महात्म्य’ में की गई है, अब सारे उपलब्ध नहीं होते। उनके स्थान पर खेड़े फैले हैं, जिनमें संभल का इतिहास दबा पड़ा है। संभल के किसी भी खेड़े की सम्यक खुदाई नहीं हुई है। भोलेश्वर और विकटेश्वर जैसे विशाल मंदिर धरती में दब गये हैं। उनके खेड़ों पर झाड़ उग आये हैं। इन स्थानों से पुरानी मध्यकालीन कलाकृतियाँ और राजपूत राजाओं के सिक्के वर्षा-काल में प्रायः निकलते रहते हैं। 1857 के गदर में मुसलमान इस मस्जिद को छोड़ गये थे। पुराने लोग कहते हैं वे इस मस्जिद के आँगन में खेलने जाते थे। कुछ लोगों का कहना है कि जाटों का एक दल वहां के मिश्रा परिवार से मिलकर मुसलमानों को यहां से भगाया था। जब तक 1857 का संग्राम चलता रहा, यह मस्जिद खाली पड़ी रही। इस पर किसी का अधिकार नहीं था। पुनः अँग्रेजी राज्य स्थापित हो जाने पर हिंदु और मुसलमानों के बीच इस भवन को लेकर मुकदमेबाजी हुई। हिंदु लोग अपने प्रमाण प्रस्तुत करने में पिछड़ गये। मुसलमानों ने यह मुकदमा जीत लिया। यह मुकदमा इतना महत्वपूर्ण था कि इसमें रामपुर के तत्कालीन नवाब ने मुस्लिम पक्ष को सहयोग दिया। सर सैयद अहमद खाँ भी इस मुकदमे में पैरवीकार थे। यह मुकदमा जिस आधार पर जीता गया था, वह आधार हिंदू बेग का वह फारसी शिलालेख है, जिसमें इस मस्जिद का बाबर के आदेश पर सन् 1526 में बनाया जाना उल्लिखित है। अकबर के काल तक यहाँ इस भवन में हरिमंदिर ही था, जिसकी चर्चा ‘आईने अकबरी’ में की गई है। अनुमान किया जा सकता है कि इस मंदिर के भवन में मस्जिद की स्थापना बहुत बाद की है। इस विवादास्पद मस्जिद की सारी बनावट मंदिरो वाली ही है। इसकी ईंटें राजपूत कालीन हैं। इसकी भव्यता दर्शनीय और अनूठी है।संभल का सबसे प्राचीन मन्दिर बाबा क्षेमनाथ का माना जाता है। संभल कभी मंदिरों का क्षेत्र था और पांचाल राजाओं की कर्मस्थली जहां दिव्य जन्मा द्रौपदी अवतीर्ण हुई थी ।
आचार्य एवं अध्यक्ष
बृहत्तर भारत एवं क्षेत्र अध्ययन
इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र नई दिल्ली,(संस्कृति मंत्रालय)
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