मिल्कीपुर उप चुनाव : दलित वोट बन सकते हैं खेवनहार…बंटे तो बिगड़ सकता है बड़े दलों का खेल

अयोध्या। फैजाबाद संसदीय क्षेत्र की विधानसभा मिल्कीपुर में पांच फरवरी को मतदान व आठ फरवरी को मतगणना है। मिल्कीपुर उप चुनाव में 10 प्रत्याशी अपना भाग्य आजमा रहे हैं। वैसे तो इस चुनाव में भाजपा व सपा के बीच मुकाबला माना जा रहा है। किन्तु कांटे की टक्कर में निर्दलीय उम्मीदवारों को कम आंकने की गलती एक बड़ी भूल साबित हो सकती है। भले ही निर्दलीय उम्मीदवार जीत का आंकड़ा न छू सकें फिर भी सपा या भाजपा के खेल को बिगाड़ने में निर्दलीय उम्मीदवारों की अहम भूमिका रहेगी। कारण यह है कि सपा व भाजपा को जीत के लिए दलित मतों को अपनी ओर लाने की आवश्यकता है। मतलब दोनों दलों की इस चुनाव में दलित वोटों पर निगाह रहेगी। ऐसे में दलित वोटों को यदि थोडा-थोडा कर निर्दलीय उम्मीदवार अपने पाले में खींचने में सक्षम साबित होते हैं तो किसी भी बड़े राजनीतिक दल का खेल बिगड़ सकता है।


भाजपा व सपा के बीच सीधी टक्कर
मिल्कीपुर उप चुनाव में एक बात तो तय है कि यहां मुख्य मुकाबला भाजपा व सपा के बीच होने जा रहा है। मिल्कीपुर उप चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान बसपा सुप्रीमों मायावती ने कर दिया है। ऐसे में दलित और ब्राह्मण बाहुल्य मिल्कीपुर में समीकरण बदले- बदले से दिखाई दे रहे हैं। मिल्कीपुर की जातीय समीकरणों पर निगाह डाले तो यहां दलित और ब्राह्मण वोट अहम भूमिका निभाते हैं। इस सीट पर 3.5 लाख मतदाताओं में से 1.2 लाख दलित, यादव 55000 और 30000 मुस्लिम है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि जो भी दलितों के साथ-साथ ब्राह्मण 80000, क्षत्रिय 25000 और अन्य पिछड़े वर्गों का समर्थन हासिल करेगा वही विजई होगा। बडा सवाल यह है कि दलित वोटर किसके साथ रहेगा। भाजपा के साथ जाएगा या पीडीए के साथ। इस सवाल पर दलित वोटर फिलहाल तो खामोश है। भाजपा व सपा दोनो पार्टी दलित वोटरों को अपने पक्ष में लाने में लगी हैं। इस बीच सपा से बागी होकर आजाद समाज पार्टी से मैदान में उतरे संतोष कुमार उर्फ सूरज चौधरी व काग्रेस से बागी होकर चुनाव लड़ रहे भोला भारती भी दलित वोटों को अपना मानते हैं। ऐसे में दोनो बागी मिल कर सपा व भाजपा का खेल बिगाड़ सकते हैं।

मिल्कीपुर में कमल खिलेगा या सफल होगा पीडीए

मिल्कीपुर उप चुनाव में सपा का पीडीएफ फार्मूला इस सीट पर काम करेगा जैसा बीते साल हुए लोकसभा चुनाव में हुआ था या फिर भाजपा जातिगत विभाजन को अपने पक्ष में करने में कामयाब हो पाती है। सपा ने अयोध्या से मौजूदा सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को टिकट दिया है। जब कि भाजपा ने अन्तिम समय में चन्द्रभानु पासवान को प्रत्याशी बनाकर सपा खेमे में हलचल मचा दी है। कहने को अजीत प्रसाद की अपनी स्वयं की कोई राजनैतिक पृष्ठभूमि नहीं है। उनको पिता सांसद अवधेश प्रसाद की राजनैतिक पहचान का सहारा है, तो भाजपा प्रत्याशी चन्द्रभानु पासवान स्वयं दो बार जिला पंचायत सदस्य रह चुके हैं। वर्तमान मे उनकी पत्नी जिला पंचायत है। जमीनी नेता व साफ छवि होने के कारण चन्द्रभानु लोकप्रिय नेता हैं। अब बाकी चुनाव परिणाम बचाऐगा कि मिल्कीपुर मे कमल खिलेगा या पीडीए सफल होगा।

भाजपा लोक सभा चुनाव में फैजाबाद लोक सभा सीट पर सपा से मिली हार का बदला लेना चाहती है। प्रदेश में नौ विधानसभा सीट के हुए उपचुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने वाली भाजपा मिल्कीपुर सीट जीतकर अपना विजय अभियान जारी रखने की उम्मीद कर रही है। जबकि सपा इस हाई प्रोफाइल निर्वाचन क्षेत्र पर अपना कब्जा बरकरार रखने की कोशिश में है। दोनों दलों का मानना है कि मिल्कीपुर की जीत 2027 के विधानसभा चुनाव का रास्ता प्रशस्त करेगा। सपा जीतती है तो उसकी दोहरी जीत मानी जाएगी। जबकि भाजपा जीतकर लोकसभा चुनाव की हार का बदला पूरा करेगी।

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