
Judiciary VS Judiciary Remark: सुप्रीम कोर्ट में आज पश्चिम बंगाल में हो रही हिंसा को लेकर वहां राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की गई. इस बीच न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच टेंशन पहले से ही देखने को मिल रहा है, जो सुप्रीम कोर्ट के राष्ट्रपति को विधेयक पास करने के समय सीमा निर्धारित करने के बाद और बढ़ गया है. ऐसे में बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी कर दी.
जस्टिस बीआर गवई ने कहा, ‘आप चाहते हैं कि हम इसे लागू करने के लिए राष्ट्रपति को परमादेश जारी करें? वैसे भी, हम कार्यकारी (डोमेन) में अतिक्रमण करने के आरोपों का सामना कर रहे हैं. कृपया.’ इस पर एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने जवाब दिया कि उनकी याचिका पहले से ही कल के लिए सूचीबद्ध है.
कहां से शुरु हुआ न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच टेंशन?
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु मामले में राज्यपाल की ओर से विधेयकों को अनिश्चित काल तक रोके रखने का फैसला मनमाना बताया था और संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का उपयोग करते हुए राज्यपाल के कार्यों को रद्द कर दिया.
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने यह भी कहा कि केवल न्यायालयों के पास ही विधेयक की संवैधानिकता के बारे में सिफारिशें देने का विशेषाधिकार है और कार्यपालिका से ऐसे मामलों में संयम बरतने की अपेक्षा की जाती है. इसके साथ ही कोर्ट ने राष्ट्रपति का विधेयक को मंजूरी देने की समयसीमा को भी निर्धारित किया.
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे का न्यायपालिका पर हमला
फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट ही सारे फैसले लेता है तो संसद को बंद कर देना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट अपनी हदें पार कर रहा है. अगर हर बात के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ता है तो संसद और विधानसभा को बंद कर देना चाहिए.’
निशिकांत दुबे ने आगे कहा, ‘जब राम मंदिर, कृष्ण जन्मभूमि या ज्ञानवापी का मुद्दा उठता है तो आप (सुप्रीम कोर्ट) कहते हैं कि हमें कागज दिखाओ. लेकिन मुगलों के आने के बाद बनी मस्जिदों के लिए आप कह रहे हैं कि आप कागज कैसे दिखाएंगे? इस देश में धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार है.’ निशिकांत दुबे ने पूछा कि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधेयकों को मंजूरी देने की समयसीमा कैसे तय कर सकता है.