

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हालिया आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को कड़ा रणनीतिक संदेश देते हुए सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को स्थगित करने का ऐतिहासिक फैसला लिया है। यह निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की बैठक में लिया गया। इस उच्चस्तरीय बैठक में गृह मंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल सहित शीर्ष सुरक्षा अधिकारी मौजूद थे।
भारत के इस साहसिक निर्णय ने स्पष्ट कर दिया है कि अब “आतंक और समझौते एक साथ नहीं चल सकते”।
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई यह संधि, जल वितरण को लेकर एक ऐतिहासिक समझौता मानी जाती है। इसके अनुसार:
भारत को पूर्वी नदियों – रावी, ब्यास और सतलुज पर पूर्ण अधिकार मिला।
पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों – सिंधु, झेलम और चेनाब का प्रमुख उपयोगकर्ता बनाया गया।
भारत को पश्चिमी नदियों के जल का घरेलू, कृषि व सीमित बिजली उत्पादन के लिए उपयोग करने की अनुमति है, बशर्ते इससे पाकिस्तान की जल आपूर्ति प्रभावित न हो।
भारत को कम, पाकिस्तान को ज़्यादा पानी
इस समझौते के तहत, भारत को सिंधु बेसिन के कुल जल प्रवाह का लगभग 20% मिलता है, जबकि पाकिस्तान को 80%। वर्षों तक भारत ने अपने हिस्से का पानी पूरी तरह उपयोग नहीं किया, जिससे अतिरिक्त जल पाकिस्तान की ओर बहता रहा।
अब भारत ने अपनी नदियों पर शाहपुरकंडी, उझ और रावी-ब्यास लिंक** जैसे जल प्रबंधन परियोजनाओं के जरिए पानी को रोकने की रणनीति अपनाई है।
पाकिस्तान के लिए जल संकट की आहट
पाकिस्तान की 80% कृषि सिंधु, झेलम और चेनाब पर निर्भर है। यदि भारत अपने हिस्से के जल का अधिकतम उपयोग करता है, तो पाकिस्तान में सूखा, खाद्यान्न संकट और जल संसाधनों का भारी संकट उत्पन्न हो सकता है।
‘वॉटर स्ट्राइक’: भारत की नई नीति
भारत ने अतीत में — 2001 का संसद हमला, 2008 का 26/11, 2016 का उरी और 2019 का पुलवामा हमला — जैसे बड़े आतंकी हमलों के बावजूद संधि को नहीं छेड़ा। लेकिन पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत के इस निर्णय ने स्पष्ट कर दिया है कि अब पानी को भी कूटनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाएगा।
अंतरराष्ट्रीय असर और भविष्य की चुनौती
यह संधि अब तक विश्व की सबसे स्थायी द्विपक्षीय जल संधियों में गिनी जाती रही है। इसे विश्व बैंक का समर्थन प्राप्त है। संधि को स्थगित करना भारत की वैश्विक छवि और कूटनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित कर सकता है। वहीं चीन, जो तिब्बत से निकलने वाली नदियों पर नियंत्रण रखता है, इस क्षेत्रीय जल राजनीति में एक नई भूमिका निभा सकता है।
अब जल का फैसला होगा आतंकवाद और कूटनीति के आधार पर
भारत ने दशकों तक संयम और विश्वास बनाए रखा। लेकिन अब यह साफ है कि ‘जल-नीति’ को आतंक के खिलाफ एक ठोस जवाब के रूप में देखा जा रहा है। सिंधु जल संधि का भविष्य अब केवल नदियों की धाराओं में नहीं, बल्कि राजनीति, सुरक्षा और वैश्विक रणनीतियों की धारा में तय होगा।