DRDO का घातक परीक्षण : हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक में बड़ी छलांग, पाकिस्तान-चीन की बढ़ी चिंता

भारत-पाकिस्तान के बीच लगातार बढ़ते तनाव के बीच भारत ने अपनी सैन्य शक्ति का ऐसा प्रदर्शन किया है, जिसने न केवल दुश्मनों के होश उड़ा दिए हैं, बल्कि वैश्विक मंच पर भी एक सशक्त संदेश दिया है। बृहस्पतिवार को भारतीय नौसेना के स्वदेशी युद्धपोत INS सूरत से मिसाइल का सफल परीक्षण कर भारत ने अपनी सामरिक तैयारियों की झलक दिखाई। लेकिन इससे भी बड़ा कदम अगले ही दिन शुक्रवार को उठाया गया, जब रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने हाइपरसोनिक हथियार तकनीक के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की। DRDO की हैदराबाद स्थित प्रयोगशाला, रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला (DRDL) ने 25 अप्रैल 2025 को अत्याधुनिक स्क्रैमजेट कनेक्ट टेस्ट फैसिलिटी (Advanced Cooled Scramjet Combustor Testing Facility – ACPT) में 1000 सेकंड से भी अधिक समय तक चलने वाला एक लंबी अवधि का एक्टिव कूल्ड स्क्रैमजेट सबस्केल कॉम्बस्टर का सफल ग्राउंड परीक्षण किया।

यह परीक्षण न केवल भारत की तकनीकी क्षमता का परिचायक है, बल्कि इसकी रणनीतिक दृष्टि भी स्पष्ट करता है। इससे पहले जनवरी 2025 में DRDO ने इसी सिस्टम का 120 सेकंड का सफल परीक्षण किया था, और अब इस नए रिकॉर्ड के साथ भारत हाइपरसोनिक मिसाइल प्रणाली के पूर्ण पैमाने पर उड़ान परीक्षण की दिशा में निर्णायक रूप से आगे बढ़ चुका है। 

स्क्रैमजेट इंजन की क्या है खासियत?

स्क्रैमजेट इंजन एक ऐसी एडवांस्ड प्रणाली है जो आने वाले समय में भारत की हाइपरसोनिक मिसाइल क्षमताओं की दिशा तय करेगी। हाइपरसोनिक मिसाइलें सामान्य मिसाइलों की तुलना में कहीं अधिक घातक होती हैं क्योंकि ये ध्वनि की गति से पांच गुना तेज, यानी लगभग 5400 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दुश्मन पर वार करती हैं। इस अकल्पनीय गति को हासिल करने के पीछे जो सबसे अहम तकनीक काम करती है, वह स्क्रैमजेट इंजन है। स्क्रैमजेट इंजन की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह हवा में मौजूद ऑक्सीजन का उपयोग करता है और उसे सुपरसोनिक स्पीड पर जलाकर जोरदार थ्रस्ट पैदा करता है। पारंपरिक रॉकेट इंजनों की तरह इसमें ऑक्सीजन ले जाने की जरूरत नहीं होती, जिससे यह न केवल हल्का होता है, बल्कि लंबी दूरी तक बेहद तेजी से हमला करने में भी सक्षम होता है। दिलचस्प बात यह है कि इस इंजन में कोई मूविंग पार्ट्स नहीं होते, जिससे इसकी विश्वसनीयता और टिकाऊपन कई गुना बढ़ जाती है।

इस बार के परीक्षण में स्क्रैमजेट कंबस्टर ने कई अहम मानकों पर सफलता हासिल की। 1000 सेकंड से ज्यादा समय तक चला यह ग्राउंड टेस्ट, सिर्फ एक तकनीकी प्रक्रिया नहीं बल्कि एक चुनौती थी क्योंकि इस इंजन में इग्निशन यानी प्रज्वलन को स्थिर बनाए रखना वैसा ही है जैसे तेज़ तूफान के बीच मोमबत्ती जलाकर रखना। इसके बावजूद सफल इग्निशन और कम्बशन ने यह साबित कर दिया कि भारत अब हाइपरसोनिक हथियार प्रणाली के बेहद करीब पहुंच चुका है।

भारत को क्यों जरूरी है हाइपरसोनिक हथियार?

भारत को हाइपरसोनिक हथियार क्यों चाहिए, इसका जवाब सिर्फ तकनीकी बढ़त नहीं, बल्कि रणनीतिक संतुलन से भी जुड़ा है। आज की वैश्विक और क्षेत्रीय सुरक्षा स्थितियों में जब रूस के पास पहले से कई अत्याधुनिक हाइपरसोनिक मिसाइलें मौजूद हैं और चीन भी इस तकनीक में तेजी से प्रगति कर चुका है, तब भारत के लिए इस क्षेत्र में पीछे रहना किसी भी सूरत में विकल्प नहीं हो सकता। खुफिया रिपोर्टों और सैन्य विश्लेषणों के मुताबिक चीन के पास पहले ही कुछ ऑपरेशनल हाइपरसोनिक हथियार हैं, जो भारत की सुरक्षा नीति के लिए चिंता का विषय हैं।

ऐसे हालात में यह जरूरी हो जाता है कि भारत भी अपने सामरिक संसाधनों को उसी गति और तीव्रता से विकसित करे। हाइपरसोनिक मिसाइलें न केवल दुश्मन की रक्षा प्रणाली को भेदने में सक्षम होती हैं, बल्कि उनकी रफ्तार और मारक क्षमता इतनी अधिक होती है कि उनके खिलाफ प्रतिक्रिया देने का समय भी बेहद सीमित होता है। इसी कारण इन हथियारों को ‘गेम चेंजर’ माना जाता है। DRDO की यह नई उपलब्धि सिर्फ एक सफल परीक्षण नहीं है, बल्कि भारत की उस दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत देश को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना और भविष्य की युद्ध चुनौतियों के लिए तैयार करना है। जैसे-जैसे हाइपरसोनिक तकनीक और परिपक्व होगी, भारत की मिसाइलें और अधिक उन्नत, सटीक और घातक होती जाएंगी। यही कारण है कि यह सफलता सिर्फ वैज्ञानिक नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से भी अत्यंत निर्णायक मानी जा रही है।

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