‘पाक होगा बेनकाब’ : थरूर और ओवैसी मोदी मिशन में शामिल…जानें इसके पीछे की बड़ी वजह

नई दिल्‍ली:  Operation Sindoor: ऑपरेशन सिंदूर से पाकिस्‍तान में छिपे बैठे आतंकवादी संगठनों की कमर तोड़ने के बाद भारत ने अब पाक के नापाक इरादों को अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर भी बेनकाब करने की रणनीति बना ली है. मोदी सरकार की इस रणनीति का हिस्‍सा सिर्फ भारतीय जनता पार्टी के सांसद ही नहीं, बल्कि सभी दलों के सांसद शामिल हैं. ये सभी सांसद अलग-अलग देशों में जाकर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को बेनकाब करेंगे. इस बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल में कांग्रेस के शशि थरूर और एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी भी शामिल हैं. थरूर और ओवैसी, मोदी सरकार के कट्टर विरोधी रहे हैं, फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बेहद खास मिशन पर इन्‍हें क्‍यों भेज रहे हैं? आखिर मोदी सरकार का ‘पाक को बेनकाब’ करने का पूरा प्‍लान क्‍या है, समझिए. 

 PM मोदी ने थरूर को क्यों चुना?

पीएम मोदी की छवि एक ऐसे लीडर की है, जो अपने फैसलों से चौंकाने के लिए जाने जाते हैं. विपक्षी सोच भी नहीं पाते और पीएम मोदी वो कर जाते हैं. शशि थरूर को बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल करने का निर्णय भी कुछ ऐसा ही है. लेकिन शशि थरूर को करीब से जानने वाले जानते हैं कि उन्‍हें चुन पीएम मोदी ने कितना बड़ा दांव खेला है. संयुक्‍त राष्‍ट्र में काम करने का लंबा अनुभव रखने वाले शशि थरूर कूटनीति के के बड़े जानकार हैं. ऐसे में पाकिस्‍तान को अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर बेनकाब करने में वह अहम रोल निभा सकते है.  

  • संयुक्त राष्ट्र का अनुभव: शशि थरूर को संयुक्‍त राष्‍ट्र में काम करने का काफी लंबा अनुभव रहा है. 1978 में यूएनएचसीआर (संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त) में अपना करियर शुरू करने वाले थरूर 1981 से 1984 तक सिंगापुर में यूएनएचसीआर कार्यालय के प्रमुख रहे. 1989 में वह विशेष राजनीतिक मामलों के लिए अवर महासचिव के विशेष सहायक बने, जिसमें यूगोस्लाविया में शांति अभियानों की जिम्मेदारी भी शामिल थी. 2001 में उन्हें संचार और जन सूचना विभाग (डीपीआई) के अंतरिम प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया, और बाद में 2002 में उन्हें संचार और जन सूचना के लिए अवर महासचिव बनाया गया. 
  • UN के महासचिव की रेस में भी थे: थरूर 2006 में कोफी अन्नान के बाद महासचिव की रेस में थे. लेकिन वह महासचिव नहीं बन पाए थे. थरूर 2006 में महासचिव की रेस में दूसरे स्‍थान पर रहे थे.  
  • कूटनीति के जानकार: शशि थरूर कूटनीति के अच्‍छे जानकार हैं. वह जानते हैं किस देश की क्‍या फितरत है और उसे कैसे जवाब देना है. यही वजह है कि जब अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप के भारत और पाकिस्‍तान के के बीच सीजफायर की घोषणा करने से पहले ही वाहवाही लूटते हुए उन्‍होंने सोशल मीडिया पर पोस्‍ट किया, तो थरूर ने पीएम मोदी की चुप्‍पी का समर्थन किया था. थरूर ने पीएम मोदी की चुप्‍पी को कूटनीति का हिस्‍सा बताया था. इससे पहले वह रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर मोदी सरकार की कूटनीति की तारीफ कर चुके हैं. 
  • ऑपरेशन सिंदूर के समर्थक: शशि थरूर शुरुआत से ऑपरेशन सिंदूर के समर्थक रहे हैं. पीएम मोदी ने उन्‍हें अब बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्‍सा बनाया है, लेकिन थरूर अपना काम काफी पहले से ही शुरू कर चुके हैं. ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाक तनाव के बीच शशि थरूर ने  विभिन्न चैनलों पर मीडिया के जरिए भारत का पक्ष दुनिया के सामने रखा है. इसके कायल भारत के कई नेता रहे हैं.   

ओवैसी को क्यों?

‘मैं भारतीय सेनाओं की तरफ से पाकिस्तान में आतंकवादी ठिकानों पर किए गए हमलों का स्वागत करता हूं… पाकिस्तानी को ऐसी सख्त सीख दी जानी चाहिए कि फिर कभी दूसरा पहलगाम न हो… पाकिस्तान के आतंकी स्‍ट्रक्‍चर को पूरी तरह नष्ट कर देना चाहिए.’ ऑपरेशन सिंदूर के एआईएमआईएम ने असदुद्दीन ओवैसी की पूरी छवि बदल गई है. इस दौरान उनकी एक देशभक्‍त की जो छवि सामने आई, उसकी तारीफ भाजपा नेता भी जमकर कर रहे हैं. शायद ही ऑपरेशन सिंदूर से पहले किसी को उम्‍मीद थी कि ओवैसी, पाकिस्‍तान को इतनी खरी-खरी सुना सकते हैं. ऐसे में पीएम मोदी ने ओवैसी को बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्‍सा बनाकर कोई हैरान नहीं किया है. 

  • ऑपरेशन सिंदूर को लेकर मुखर रहे हैं: असदुद्दीन ओवैसी भारत सरकार के ऑपरेशन सिंदूर के शुरुआत से ही समर्थक रहे हैं. कई टीवी चैनलों पर उन्‍होंने मोदी सरकार के इस कदम का समर्थन किया और पाकिस्‍तान को खरी-खरी सुनाई. कई मौकों पर तो वह पाकिस्‍तानी प्रवक्‍ताओं से भिड़ते हुए भी नजर आए. ओवैसी ने कहा कि पाकिस्‍तान को उसके किये की सख्‍त से सख्‍त सजा दी जानी चाहिए. एक न्‍यूज चैनल को दिये इंटरव्‍यू के दौरान उन्‍होंने कहा कि देश उनके लिए सबसे पहले आता है. उनके दिल में जो होता है, वही कहते हैं. लोगों को कई बार अच्‍छी लगती है, तो कई बार बुरी. लेकिन मुझे करीब से जानने वाले मेरे हिंदू दोस्‍त जानते हैं कि मैं कैसा हूं. 
  • मुस्लिम चेहरा हैं, मुस्लिम देशों को साध सकते हैं: बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल में कौन-सा दल किस देश में जाएगा, यह जानकारी तो अभी सामने नहीं आई है, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि मुस्लिम चेहरा होने के नाते ओवैसी को मुस्लिम देशों को साधने में लगाया जा सकता है. दरअसल, अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर ओवैसी की छवि एक पक्‍के मुसलमान की है, ऐसे में जब वह मुस्लिम देशों के सामने भारत का पक्ष रखेंगे, तो उनकी बात में एक अलग वजन होगा. 
  • लंदन से लॉ, वकील रहे हैं, तार्किक हैं: ओवैसी एक राजनेता होने के साथ-साथ काबिल वकील भी हैं, जो अपनी बात को तर्क के साथ रखते हैं. आमतौर पर उनकी बात को काटना बेहद मुश्किल होता है. ये खूबी उन्‍हें दूसरों से जुदा करती है. ऐसे में वह भारत का पक्ष दूसरे देशों के सामने बेहद मजबूती से रख सकते हैं.  

 1994 की तरह पार्टियां एकजुट

यह पहला मौका नहीं है, जब सभी भारतीय राजनीतिक दल आपसी राजनीतिक मतभेदों को दरकिनार कर एकजुट होकर अंतरराष्‍ट्रीय मंच पर अपनी बात रखने जा रहे हैं. इससे पहले 1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठते हुए भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी को जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का नेतृत्व करने के लिए चुना था. अटल बिहारी वाजपेयी के वहां पहुंचने पर पाकिस्‍तान भी हैरान था.

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