सांसद ने आईडब्ल्यूएआई अधिकारी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए, जांच की मांग

नई दिल्ली। लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) की पार्टी से लोकसभा सांसद राजेश वर्मा ने भारत की अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) के उपाध्यक्ष सुनील कुमार सिंह पर गंभीर आरोप लगाए हैं। सांसद वर्मा ने बिहार में गंगा ड्रेजिंग प्रोजेक्ट के कई टेंडरों में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। इस संबंध में उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) और केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को एक पत्र लिखकर गंगा नदी के ड्रेजिंग (गाद निकालने) प्रोजेक्ट में कथित पक्षपात और अनुबंध में अनियमितताओं की जांच की मांग की है।

क्या हैं आरोप?

सांसद राजेश वर्मा के अनुसार, मुंबई की एक कंपनी नॉलेज मरीन एंड इंजीनियरिंग वर्क्स लिमिटेड को गंगा ड्रेजिंग प्रोजेक्ट के कई टेंडरों में पसंदीदा बनाकर अनुचित लाभ पहुंचाया गया। उन्होंने कहा कि इस कंपनी को पटना के पास बाढ़-प्रवण दीघा क्षेत्र के लिए ठेका दिया गया, लेकिन कंपनी समय पर आवश्यक मशीनरी (ड्रेजर) नहीं ला सकी। इसके बावजूद, अन्य कंपनियों को जहां देरी पर दंड दिया गया, वहीं इस कंपनी को किसी प्रकार का शोकॉज नोटिस तक नहीं भेजा गया। सांसद वर्मा का कहना है कि यह सब आईडब्ल्यूएआई उपाध्यक्ष सुनील कुमार सिंह के हस्तक्षेप से हुआ।

राजेश वर्मा ने आगे आरोप लगाया कि नॉलेज मरीन को एक अन्य क्षेत्र में काम के लिए भुगतान किया गया, जबकि वहां पर उसने आवश्यक उपकरण लगाए ही नहीं थे। उन्होंने यह भी बताया कि इस कंपनी के पास केवल 33 प्रतिशत अनुबंध थे, लेकिन इसे आईडब्ल्यूएआई द्वारा 60 प्रतिशत से अधिक भुगतान किया गया, जो साफ तौर पर वित्तीय अनियमितता का संकेत है।
वर्मा ने निगरानी प्रणाली पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि सिंह ने ऐसे अधिकारियों की नियुक्ति की, जो कंपनी के लिए ‘सुविधाजनक’ थे। इससे पारदर्शिता और जवाबदेही दोनों प्रभावित हुईं। अपने पत्र में वर्मा ने लिखा कि उपाध्यक्ष सुनील कुमार सिंह की गतिविधियों में ‘दुर्भावना’ स्पष्ट दिखाई देती है। बार-बार नियमों का उल्लंघन हुआ, लेकिन दोषियों को सजा नहीं दी गई, जिससे सरकारी धन का नुकसान हुआ और नमामि गंगे योजना जैसी राष्ट्रीय परियोजनाओं की साख को भी ठेस पहुंची।

यह मामला सीवीसी और पीएमओ के सामने

अब तक न तो सुनील कुमार सिंह और न ही नॉलेज मरीन कंपनी ने इन आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया दी है। गंगा ड्रेजिंग प्रोजेक्ट केंद्र सरकार की उस प्रमुख योजना का हिस्सा है, जिसके तहत देश भर में अंतर्देशीय जल परिवहन को बढ़ावा देकर लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने की कोशिश की जा रही है। फिलहाल यह मामला सीवीसी और पीएमओ के सामने है, और यदि जांच शुरू होती है तो यह एक बड़ा प्रशासनिक और राजनीतिक मुद्दा बन सकता है।

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