
बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मतदाता सूची में हो रहे विशेष संशोधन को लेकर विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. के 11 दलों का एक प्रतिनिधिमंडल बुधवार को चुनाव आयोग से मिला. लेकिन तीन घंटे की लंबी बैठक के बाद नेता और भी ज्यादा नाखुश नजर आए. CPI(ML) लिबरेशन महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने इस प्रक्रिया को ‘वोटबंदी’ की संज्ञा देते हुए कहा कि “चुनाव आयोग ने हमारे किसी भी सवाल का संतोषजनक जवाब नहीं दिया.
इस प्रतिनिधिमंडल में कांग्रेस, राजद, माकपा, भाकपा, भाकपा (माले), एनसीपी (शरद पवार गुट) और समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता शामिल थे. नेताओं का आरोप है कि चुनाव आयोग का यह कदम लाखों लोगों को वोटिंग प्रक्रिया से बाहर कर सकता है.
सिर्फ दो नेता ही अंदर, बाकी बाहर
जब प्रतिनिधिमंडल निर्वाचन सदन पहुंचा, तो उन्हें बताया गया कि हर पार्टी से केवल दो लोगों को ही अंदर जाने दिया जाएगा। इस पर कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने नाराजगी जताते हुए कहा, पहली बार चुनाव आयोग में जाने के लिए नियम दिए गए. कहा गया कि केवल पार्टी प्रमुख ही आ सकते हैं. इससे संवाद बाधित होता है. सिंघवी ने आगे कहा कि जयराम रमेश, पवन खेड़ा और अखिलेश सिंह जैसे नेता बाहर खड़े रह गए.
‘आठ करोड़ वोटर, एक महीने में संशोधन?’
अभिषेक मनु सिंघवी ने संशोधन की टाइमिंग पर सवाल उठाते हुए कहा कि ‘2003 में जब यह प्रक्रिया हुई थी, तब चुनाव एक साल बाद हुए थे. अब दो-तीन महीने पहले यह क्यों? जब 8 करोड़ वोटर हैं, तो एक महीने में इतनी बड़ी कवायद कैसे पूरी होगी?” उन्होंने यह भी पूछा कि जब बाकी जगह आधार की मांग की जाती है, तो यहां क्यों नहीं?
RJD ने जताई चिंता: ‘यह संशोधन नहीं, बहिष्करण है’
राजद नेता मनोज झा ने दस्तावेज़ी प्रक्रियाओं पर चिंता जताई और कहा कि अगर यह प्रक्रिया समावेश की जगह बहिष्करण बन जाए तो इसका औचित्य क्या रह जाता है? 11 तरह के दस्तावेज़ मांगे जा रहे हैं, जो अधिकांश लोगों के पास नहीं हैं. अगर इरादा करोड़ों लोगों को बाहर करने का है, तो सड़कों पर आंदोलन तय है.
‘लोकतंत्र पर संकट’, ‘वोटबंदी’ का आरोप
CPI(ML) लिबरेशन महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने तीखा हमला बोलते हुए कहा कि चुनाव आयोग ने माना कि बिहार के 20% वोटर राज्य के बाहर रहते हैं. इसका मतलब है कि वे मतदान से वंचित हो सकते हैं. यह बिहार के लिए नोटबंदी जैसी वोटबंदी है. उन्होंने कहा कि एक महीने में पहचान पत्र जमा करना लाखों लोगों के लिए संभव नहीं है और इस प्रक्रिया से लोकतंत्र खतरे में है.
चुनाव आयोग का जवाब: ‘प्रक्रिया वैध, संवाद किया गया’
बैठक के बाद चुनाव आयोग ने बयान जारी कर कहा कि विशेष पुनरीक्षण (SIR) संविधान के अनुच्छेद 326, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और 24.06.2025 के निर्देशों के तहत हो रहा है. उन्होंने कहा कि सभी मुद्दों को सुना गया और दो प्रतिनिधियों को बुलाने का फैसला इसलिए था ताकि हर पार्टी की बात सुनी जा सके. जब मीडिया ने कोर्ट में चुनौती देने के सवाल पर पूछा तो सिंघवी ने कहा कानूनी विकल्पों पर बाद में विचार करेंगे. वहीं, मनोज झा ने कहा कि यह कहने की जगह नहीं है, निर्णय लेकर मीडिया को बताएंगे.