
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 5 देशों के दौरे चरण में घाना के बाद त्रिनिदाद और टोबैगो पहुंच गए हैं। पीएम मोदी की यह यात्रा ऐतिहासिक मानी जा रही है और यह 1999 के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की त्रिनिदाद और टोबैगो की पहली द्विपक्षीय यात्रा है। यह यात्रा पीएम मोदी के पांच देशों के दौरे का हिस्सा है और भारत-त्रिनिदाद संबंधों को नई ऊंचाइयों तक ले जाने की दिशा इसे एक महत्वपूर्ण कदम के तौर पर देखा जा रहा है। इस दौरे से दोनों देशों के बीच दोस्ती और साझेदारी तो बढ़ ही रही है, साथ ही गिरमिटिया प्रथा से जुड़ा पुराना भावनात्मक रिश्ता भी फिर से जिंदा हो रहा है। त्रिनिदाद में जो भारतीय कभी गिरमिटिया मज़दूर बनकर गए थे, उनकी जड़ें आज भी भारत से गहराई से जुड़ी हुई हैं।
इतिहास में जुड़ी दो सभ्यताएं
भारत और त्रिनिदाद और टोबैगो के रिश्ते सिर्फ कूटनीति तक सीमित नहीं हैं, इनकी जड़ें इतिहास में बहुत गहराई से जुड़ी हैं। 1845 से 1917 के बीच भारत से करीब 1,43,000 लोग अनुबंधित श्रमिक बनकर त्रिनिदाद पहुंचे थे ताकि वहां के गन्ने के खेतों में काम कर सकें इनमें से अधिकतर लोग उत्तर प्रदेश और बिहार से थे। इन लोगों के अनुबंध तो तीन से पांच साल के थे लेकिन ज़्यादातर ने वहीं रहना चुना और त्रिनिदाद को अपना घर बना लिया था।
आज यही लोग यानी उनके वंशज कानून, डॉक्टरों, शिक्षा और राजनीति जैसे तमाम क्षेत्रों में आगे बढ़ चुके है, आज त्रिनिदाद में भारतीय मूल के लोगों की आबादी करीब 42 फीसदी है जो देश की कुल आबाद की 42% है। इनमें राष्ट्रपति क्रिस्टीन कार्ला कंगालू और प्रधानमंत्री कमला प्रसाद बिसेसर भी शामिल हैं। एक समय के खेतिहर मज़दूर अब समाज के अहम हिस्से बन चुके हैं, ये बदलाव उनके साहस, संघर्ष और ढलने की ताकत को दिखाता है। उनकी बोली, उनके त्यौहार, खानपान और रीति-रिवाज़ आज त्रिनिदाद और टोबैगो की पहचान का हिस्सा हैं। प्रधानमंत्री मोदी की ये यात्रा उस साझा इतिहास को याद करने और यह मानने की कोशिश है कि भारतवंशी आज भी भारत और त्रिनिदाद के रिश्तों की सबसे मजबूत कड़ी हैं।
प्रवासी भारतीयों की उपलब्धियों का उत्सव
त्रिनिदाद और टोबैगो ने भारत के प्रवासी भारतीयों से जुड़ने में हमेशा अहम भूमिका निभाई है। हर साल 9 जनवरी को मनाया जाने वाला प्रवासी भारतीय दिवस (PBD) उन लोगों को सम्मानित करता है जो विदेश में रहकर भी भारत के विकास में योगदान दे रहे हैं। जनवरी 2023 में इंदौर में हुए 17वें प्रवासी भारतीय दिवस में त्रिनिदाद के हाईकोर्ट के जज फ्रैंक सीपरसाद को प्रवासी भारतीय सम्मान (PBSA) से नवाज़ा गया, ये भारत सरकार द्वारा प्रवासी भारतीयों को दिया जाने वाला सबसे बड़ा सम्मान है।
इससे पहले भी कई बड़ी हस्तियों को यह सम्मान मिल चुका है- मौजूदा प्रधानमंत्री कमला प्रसाद बिसेसर को 2012 में यह अवॉर्ड दिया गया था। साथ ही, पूर्व प्रधानमंत्री बासदेव पांडे (2005), पूर्व मंत्री विंस्टन डूकरन (2017) और डॉ. लेनी कृष्णनाथ सैथ (2010) को भी यह सम्मान मिल चुका है। इसके अलावा त्रिनिदाद की राष्ट्रीय भारतीय संस्कृति परिषद (2008) को भी यह अवॉर्ड मिला है। 2025 में जब भुवनेश्वर में 18वां प्रवासी भारतीय दिवस हुआ तब त्रिनिदाद की राष्ट्रपति क्रिस्टीन कार्ला कंगालू वर्चुअल मुख्य अतिथि बनीं। इससे दोनों देशों के बीच बढ़ते रणनीतिक और सांस्कृतिक रिश्ते और भी मज़बूत हुए।
भारत सरकार कई ऐसे कार्यक्रम भी चलाती है जो प्रवासियों को अपनी जड़ों से जोड़ने का काम करते हैं, जैसे प्रवासी नागरिकता योजना और भारत को जानो कार्यक्रम। इनके ज़रिए लोग अध्ययन यात्राओं और शिक्षा के माध्यम से भारत को और करीब से जान पाते हैं। वहीं न्यू इंडिया एश्योरेंस जैसी भारतीय कंपनियां वहां पर सक्रिय हैं, जिससे व्यापार को बल मिलता है और भारत की आर्थिक मौजूदगी भी मजबूत होती है।
पीएम मोदी का भव्य स्वागत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पोर्ट ऑफ स्पेन के पियार्को इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर पूरे राजकीय सम्मान के साथ गर्मजोशी से स्वागत किया गया। पीएम मोदी को एयरपोर्ट पर गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। प्रधानमंत्री कमला प्रसाद-बिसेसर और उनके मंत्री भी पारंपरिक भारतीय कपड़ों में पहुंचे, जो एक गहरे सांस्कृतिक जुड़ाव का इशारा था। पीएम मोदी ने जब भोजपुरी चौताल की प्रस्तुति देखी, तो उन्होंने दिल से उसकी तारीफ की और इसे ‘एक अनमोल सांस्कृतिक संबंध’ कहा था। उन्होंने कहा कि त्रिनिदाद में बसे भारतीय मूल के लोग और भारत के उत्तर प्रदेश और बिहार के बीच बहुत गहरा नाता है।
भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए मोदी ने बताया कि प्रधानमंत्री कमला बिसेसर के पूर्वज बिहार के बक्सर से थे और आज भी लोग उन्हें ‘बिहार की बेटी’ मानते हैं। उन्होंने बिहार की ऐतिहासिक विरासत और सभ्यता में उसके योगदान की तारीफ की और कहा कि 21वीं सदी में भी उसमें अपार संभावनाएं हैं। इस ऐतिहासिक यात्रा का सबसे खास पल तब आएगा जब प्रधानमंत्री मोदी को ‘ऑर्डर ऑफ त्रिनिदाद एंड टोबैगो’ से सम्मानित किया जाएगा। यह त्रिनिदाद का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है, जिसे 2008 में ट्रिनिटी क्रॉस की जगह शुरू किया गया था। यह सम्मान न सिर्फ दोनों देशों के बीच गहरे रिश्तों का प्रतीक है बल्कि भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव को भी दर्शाता है।
द्विपक्षीय वार्ता और भविष्य की साझेदारी
अपने दो दिन के दौरे में प्रधानमंत्री मोदी, त्रिनिदाद और टोबैगो की राष्ट्रपति क्रिस्टीन कार्ला कंगालू और प्रधानमंत्री कमला प्रसाद-बिसेसर से उच्च स्तरीय बातचीत करेंगे। इन बैठकों में व्यापार, रिन्यूएबल एनर्जी, आईटी और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसे मुद्दों पर सहयोग बढ़ाने की चर्चा होगी। इसके साथ ही, पीएम मोदी त्रिनिदाद की संसद के संयुक्त सत्र को भी संबोधित करेंगे।
इस यात्रा का मकसद सिर्फ द्विपक्षीय रिश्तों को आगे बढ़ाना नहीं है बल्कि कैरेबियाई क्षेत्र में भारत की रणनीतिक मौजूदगी को मज़बूत करना भी है, खासकर उस वक्त जब चीन लगातार वहां अपना दायरा बढ़ा रहा है। भारत अपनी सॉफ्ट पावर, सांस्कृतिक रिश्तों और आम लोगों के जुड़ाव के जरिए पुराने रिश्तों को नई ताकत देने की कोशिश कर रहा है ताकि आपसी विकास और भू-राजनीतिक संतुलन बना रहे।
फिर जीवंत होंगे पुराने रिश्ते
प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा सिर्फ औपचारिकताओं की बात नहीं है। ये एक गहरा प्रयास है उन सभ्यतागत रिश्तों को फिर से महसूस करने और उन्हें ऊर्जा देने का जो मुश्किलों, संघर्षों और सांस्कृतिक विरासत में रचे-बसे हैं। भारत और त्रिनिदाद का साझा अतीत अब भविष्य की मजबूत साझेदारी में बदल रहा है। भारतीय प्रवासी आज भी एक जीवंत पुल की तरह काम कर रहे हैं, जो दोनों देशों को जोड़ता है। यह रिश्ता दिखाता है कि संस्कृति और इतिहास केवल यादें नहीं होते, वे मजबूत डिप्लोमेसी की असली बुनियाद बन सकते हैं। भारत अब सिर्फ व्यापार और तकनीक से नहीं, बल्कि अपने लोगों, अपनी विरासत और साझा मूल्यों से ग्लोबल साउथ में अपनी आवाज़ फिर से बुलंद कर रहा है।