पूर्णिया की खौफनाक रात : भीड़ के हिंसक तांडव में जल गई ज़िंदगी..पढ़ें 5 को जिंदा जलाने की खौफनाक कहानी

पूर्णिया का नरसंहार: डायन बताकर 5 को जिंदा जलाया, 300 की भीड़ बनी जल्लाद, कानून बना मूकदर्शकबिहार के पूर्णिया जिले के टेटगामा गांव में एक भयावह और अमानवीय घटना ने पूरे राज्य को झकझोर कर रख दिया है. अंधविश्वास, सामूहिक उन्माद और पंचायती ‘इंसाफ’ के नाम पर एक ही परिवार के पांच लोगों को जिंदा जलाकर मार डाला गया. इस हिंसा का नाटकीय मंचन रात 9 बजे से शुरू हुआ, जिसमें लगभग 300 गांववाले शामिल हुए और चार घंटे तक चलने वाली एक खौफनाक ‘लोक अदालत’ ने मौत की सजा सुनाई.

इस बर्बरता की जड़ें अंधविश्वास में थीं. गांव के रामदेव उरांव के बेटे की बीमारी और मृत्यु के लिए उन्होंने अपने ही गांव के बाबूलाल उरांव और उसके परिवार को जिम्मेदार ठहराया. आरोप लगा कि बाबूलाल की पत्नी और मां काला जादू और तंत्र-मंत्र करती थीं, जिससे रामदेव के बेटे की मौत हुई. इसी आधार पर पूरे परिवार को ‘डायन’ और ‘ओझा’ कहकर सामूहिक दंडित किया गया.

पहले पिटाई, फिर जिंदा जलाया गया

रात लगभग एक बजे पंचायती फैसला लेने के बाद, बाबूलाल और उसके परिवार के चार अन्य लोगों पत्नी, मां, बहू और बेटे को घर से बाहर लाया गया. इन सभी को पहले बेरहमी से पीटा गया, फिर रस्सियों से बांधकर जिंदा जला दिया गया. जलती लाशों की चीखें भीड़ के अंदर किसी को विचलित नहीं कर सकीं.

पुलिस के पहुंचने तक जलकर खाक हो चुके थे शव

घटना की सूचना मिलने पर जब तक पुलिस पहुंची, तब तक सिर्फ जलती हुई राख और मकई के डंठल बाकी थे. कुछ शवों को तालाब में फेंक दिया गया था. जलकुंभी के बीच से शव बरामद किए गए. डीआईजी प्रमोद कुमार, डीएम अंशुल कुमार और एसपी सहरावत ने मौके का निरीक्षण किया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

गांव में सन्नाटा, पुलिस को सहयोग नहीं

घटना के बाद गांव में मातमी सन्नाटा पसरा है. अधिकांश घरों में ताले लटक रहे हैं और लोग फरार हैं. पुलिस गांव के डीलर समेत कई लोगों से पूछताछ कर रही है, लेकिन कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं. डीलर का मोबाइल जब्त कर फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है, पर साजिश की परतें अब भी धुंध में हैं.

बाबूलाल का कैसा था जीवन?

जिस बाबूलाल पर ‘डायन’ और ‘ओझा’ का ठप्पा लगाया गया, वह गांव का गरीब मजदूर था. बताया जा रहा है कि वह कभी-कभी झाड़फूंक भी करता था, परंतु उसका परिवार पूरी तरह से मेहनतकश और कमजोर था. यही कारण है कि भीड़ के सामने वे कोई प्रतिरोध नहीं कर सके.

अंधविश्वास के नाम पर हुई सैकड़ों हत्याएं

बिहार में ऐसी घटनाएं कोई नई नहीं हैं. रोहतास, जमुई जैसे जिलों में हाल ही में भी अंधविश्वास के नाम पर हत्याएं हो चुकी हैं. वहीं झारखंड में 2015 से 2020 के बीच डायन बिसाही के 4,556 मामले दर्ज हुए हैं, जिनमें 272 लोगों की हत्या कर दी गई, जिनमें 215 महिलाएं थीं. यह आंकड़े बताते हैं कि समाज अब भी तंत्र-मंत्र और ‘डायन’ जैसे अंधविश्वासों की गिरफ्त में है.

सवालों के घेरे में प्रशासन

टेटगामा की घटना पुलिस और प्रशासन की सतर्कता पर भी सवाल खड़े करती है. 300 लोगों की भीड़ जमा हो जाती है, एक ‘जन अदालत’ लगती है और 5 लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाता है, पर पुलिस को भनक तक नहीं लगती. क्या यह लापरवाही है या सामाजिक तंत्र की विफलता? अब सवाल ये है कि क्या इस बार कानून उस ‘भीड़’ को पहचान कर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगा या फिर यह केस भी धुंध में खो जाएगा?

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