
बिहार की सियासत में एक बार फिर से बड़ा उबाल देखने को मिल रहा है. वो भी इसलिए क्योंकि चुनाव है. और इस बार मुकाबला सिर्फ बड़े दलों के बीच नही है, बल्कि छोटे – छोटे दलों के बीच भी है। जो अपने आप में बहुत ही दिलचस्प होने वाला है। दरअसल हम बात कर रहे हैं उन पार्टियों की जिन्हें आमतौर पर वोट कटवा कहा जाता है।
बात करेंगे इस दल की तो ये वो दल हैं जो भले खुद सत्ता में न आएं लेकिन दूसरों की सत्ता की राह जरुर मुश्किल बना देते हैं तो यहां बेहद अहम हो जाता है ये जानना कि कौन हैं ये वोट कटवा पार्टियां और क्या हैं इनके एजेंडे और इस बार ये किस पार्टी के खेल को कर सकती है खराब।
तो यहां हम बात करेंगे सबसे पहले असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM की…जो 2020 में सीमांचल की 20 सीटों पर उतरे और 5 जीत लीं। हालांकि अब सिर्फ एक विधायक बचा है – अमौर से अख्तरुल इमान।
इस बार पार्टी 50 सीटों पर ताल ठोक रही है। मुस्लिम वोटों पर सीधा असर – और परेशानी खास तौर पर RJD और कांग्रेस के लिए।
वहीं अब बात करेंगे चुनावी रणनीतिकार से बने राजनेता प्रशांत किशोर की जिनकी पार्टी है जन सुराज. पदयात्रा से जनता के बीच पहुंचे पीके, अब पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं। हालांकि जनाधार अभी सीमित है, लेकिन कई सीटों पर RJD के वोट बैंक में सेंधमारी का खतरा बना हुआ है। वहीं बात करेंगे पार्टी के फोकस की तो – पलायन, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और स्थानीय विकास। और चुनाव चिन्ह है – स्कूल बैग।
वहीं इस चुनावी रेस में अगला नाम आता है मुकेश सहनी का जिनकी अगुवाई वाली पार्टी वीआईपी भी मैदान हैं. जिनका मुख्य फोकस मल्लाह और निषाद जैसे ओबीसी वर्गो पर है। जिन्होंने 2020 में NDA के साथ मिलकर 3 सीटें जीतीं, लेकिन बाद में तीनों लेकिन बाद में तीनों विधायक बीजेपी में चले गए। अब यें महागठबंधन के करीब हैं, पर सीटों को लेकर तस्वीर साफ नहीं।
वहीं अब बात करेंगे अरविंद केजरीवाल की पार्टी AAP की, जिसे अब तक बिहार में कोई चुनावी
सफलता नहीं मिली , लेकिन इस बार 243 में से सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है।
फिलहाल ज़मीनी पकड़ नहीं, लेकिन शहरी युवा वोटर को लुभाने की पूरी तैयारी है।
इंडियन इंकलाब पार्टी
अब बात इंजीनियर आईपी गुप्ता की, जिन्होंने कांग्रेस छोड़कर इंडियन इंकलाब पार्टी बनाई है।
पटना में बड़ी रैली के साथ शुरुआत की, और अब महागठबंधन व AIMIM दोनों से संपर्क में हैं।
फोकस जातीय न्याय और वंचित समुदायों पर।
जय हिंद सेना
शिवदीप लांडे, जो कभी बिहार के चर्चित IPS अफसर थे, अब जय हिंद सेना के नाम से अपनी राजनीतिक पारी शुरू कर चुके हैं।
कहते हैं, 243 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे।
एजेंडा है – विकास की राजनीति, जातीय नहीं।
विकास वंचित इंसान पार्टी (VVIP)
और अब बात ‘हेलिकॉप्टर बाबा’ यानी प्रदीप निषाद की पार्टी VVIP की।
VIP से अलग होकर बनाई पार्टी, फोकस – दलित, महादलित, वंचित तबका।
संगठन अभी निर्माणाधीन है लेकिन भीम आर्मी जैसी सोच और युवा आधार बनाने की कोशिश जारी।
तो कुल मिलाकर बात साफ है कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मुकाबला सिर्फ महागठबंधन बनाम NDA का नहीं होगा…बल्कि इन ‘वोट कटवा’ पार्टियों का भी बड़ा रोल रहने वाला है।
ये खुद जीतें या न जीतें, लेकिन दूसरों को हराने का खेल जरूर बना सकती हैं।
अब देखना ये है कि ये पार्टियां किसके पाले में आग लगाती हैं और किसे चुनावी समुंदर में डुबो देती हैं।