छिंदवाड़ा कफ सिरप कांड: दवा के नाम पर ‘जहर’ लिखने वाला डॉक्टर प्रवीण सोनी गिरफ्तार

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में जहरीले कफ सिरप से हुई 11 मासूमों की मौत ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया है. इस दर्दनाक घटना के बाद पुलिस ने परासिया के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रवीण सोनी को गिरफ्तार कर लिया है. उन पर आरोप है कि उन्होंने वही कफ सिरप प्रिस्क्राइब किया था, जिसने बच्चों की जान ले ली. शनिवार देर रात कोतवाली थाना क्षेत्र में एसपी की विशेष टीम ने डॉक्टर को उनके क्लिनिक के पास से पकड़ा.

जांच में सामने आया कि डॉ. सोनी छुट्टी के दौरान अपने निजी क्लिनिक में बच्चों का इलाज कर रहे थे. उनके क्लिनिक के ठीक बगल में उनकी पत्नी का मेडिकल स्टोर “अपना मेडिकल” स्थित है, जहां से ये सिरप बेचा गया. बच्चों को दी गई ‘कोल्ड्रिफ’ और ‘नेस्ट्रो डीएस’ सिरप की सिफारिश मुख्य रूप से डॉ. सोनी ने ही की थी. इनमें से सात बच्चों की मौत उनके क्लिनिक में इलाज के दौरान हुई. 

दवा में ज़हर की मिलावट का खुलासा

राज्य सरकार की जांच रिपोर्ट में पाया गया कि संदिग्ध सिरप में 46.2 फीसदी डायएथिलीन ग्लाइकॉल पाया गया जो एक जहरीला तत्व है. रिपोर्ट में कहा गया कि यही जहरीली मात्रा बच्चों की किडनी फेल होने और मौत का प्रमुख कारण बनी. यह भी सामने आया कि नागपुर से रिपोर्ट आने के बाद भी डॉक्टर सिरप लिखते रहे, जिससे लापरवाही और बढ़ गई.

‘दवा असली या नकली, देखना सरकार का काम’

गिरफ्तारी से पहले एक टीवी चैनल से बातचीत में डॉ. सोनी ने कहा, “डॉक्टर का काम दवा लिखना है, असली या नकली देखना सरकार का काम.” यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और विवाद को और गहरा कर दिया. लोगों का कहना है कि अगर डॉक्टर इतनी लापरवाही दिखाएंगे तो आम नागरिक किस पर भरोसा करें?

14 बच्चे अब भी इलाजरत

पुलिस जांच में पता चला है कि 14 अन्य बच्चे भी अब तक इलाज के अधीन हैं, जिन्हें वही सिरप दिया गया था. दवा निर्माता कंपनी ‘श्रीसन फार्मास्युटिकल’ पर भी एफआईआर दर्ज की गई है. कंपनी पर आरोप है कि उसने प्रतिबंधित रासायनिक तत्वों का उपयोग किया, जबकि यह सिरप पहले से राजस्थान और तमिलनाडु में बैन था.

सीएम मोहन यादव की सख्ती

घटना के बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने तुरंत कार्रवाई करते हुए पूरे प्रदेश में ‘कोल्ड्रिफ सिरप’ की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया. उन्होंने कहा, “दोषियों को किसी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा.” साथ ही राज्यभर में औषधि निरीक्षकों को निर्देश दिया गया है कि जो भी दवा मिलावटी मिले, उसे तुरंत फ्रीज कर जब्त किया जाए.

पीड़ित परिवारों को आर्थिक सहायता

मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि जिन 11 बच्चों की मृत्यु हुई है, उनके परिवारों को 4-4 लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी जाएगी. साथ ही जिन बच्चों का इलाज जारी है, उनके उपचार का पूरा खर्च राज्य सरकार उठाएगी. यह कदम सरकार की संवेदनशीलता तो दिखाता है, लेकिन लोगों के मन में सवाल बाकी हैं कि आखिर इतनी बड़ी चूक कैसे हुई? 

स्वास्थ्य व्यवस्था पर बड़ा सवाल

छिंदवाड़ा की यह घटना सिर्फ एक दुर्घटना नहीं, बल्कि देश की स्वास्थ्य प्रणाली की गंभीर खामियों का आईना है. डॉक्टरों की गैरजिम्मेदारी, निगरानी की कमी और दवा निर्माण में भ्रष्टाचार ने बच्चों की जिंदगी छीन ली. अब उम्मीद की जा रही है कि यह केस एक मिसाल बनेगा, ताकि भविष्य में किसी मासूम की मौत लापरवाही की भेंट न चढ़े.

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