
योगेश श्रीवास्तव
लखनऊ। दिल्ली विधानसभा के चुनाव भाजपा कांग्रेस के साथ ही कुछ क्षेत्रीय दलों और उनके नेताओं की सक्रियता देखते बन रही है । इस बार के विधानसभा चुनाव की खास बात यह है कि दिल्ली की आंटी कही जाने वाली तथा वहां पन्द्रह साल तक मुख्यमंत्री रही और कांग्रेस की वरिष्ठï नेता शीला दीक्षित के बिना यह चुनाव हो रहा है।
दिल्ली के लोग शीला दीक्षित को लोग सम्मान और स्नेह में आंटी कहकर ही संबोधित करते थे। लगातार पांच दशकों तक अपनी राजनीतिक सक्रियता के कारण लोगों के दिलों में अपनी खास जगह बनाने के अलावा दिल्ली को उत्तरोत्तर विकास करने के लिए लोग आज भी उन्हीं को याद करते है। कांग्रेस के वरिष्ठï नेता तथा केन्द्र में गृहमंत्री रहे उमाशंकर दीक्षित की पुत्रवधू शीला दीक्षित यूपी के कन्नौज से सांसद भी रह चुकी थी। शीला दीक्षित वर्ष 1998 से 2013 तक लगातार 15 सालों तक दिल्ली के मुख्यमंत्री की भूमिका निभाई। हालांकि इससे पहले वे केन्द्र में संसदीय कार्यराज्यमंत्री भी रही। दिल्ली में मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद उन्हें. 2014 में केरल का राज्यपाल बनाया गया था. लेकिन अगस्त, 2014 में उन्होंने इस पद से इस्तीफ ा दे दिया था। शीला दीक्षित को राजनीति विरासत में मिली थी।
उन्होंने अपने कार्यो से दिल्ली में भाजपा समेत बाकी दलों के तंबू उखाड़ दिए थे। दिल्ली की सता पर काबिज रही भाजपा को सत्ता से उखाडऩे का काम शीला दीक्षित ने किया और 1998 मेें भाजपा को सत्ता बाहर कर कांग्रेस को सत्ता दिलाने का काम किया था। इसके बाद लगातार दिल्ली की सत्ता पर वह लगातार ेकाबिज रही लेकिन 2012 में दिल्ली की केन्द्र सरकार के खिलाफ बने माहौल के खिालफ जब अन्ना आंदोलन हुआ तो एक नए नेता का जन्म हुआ जिसका नाम अरविन्द केजरीवाल था और जिसने आम आदमी की नब्ज भांपकर ‘आम आदमी पार्टीÓ बनाई। 2013 के विधानसभा चुनाव में अरविन्द केजरीवाल की हवा में कांग्रेस की हार हुई। दिल्ली की कुल 70 सीटों में से भाजपा 31 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।
वहीं आम आदमी पार्टी 28 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर रही और कांग्रेस को 8 सीटें मिली। इसके बाद कांग्रेस के समर्थन से अरविन्द केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव से ऐन पहले सीएम के पद से इस्तीफ ा देकर विधानसभा भंग कर दी। पर जनता को कांग्रेस का यह स्टैण्ड रास नहीं आया। और में जब 2015 में विधानसभा के चुनाव हुए तो कांग्रेस ने शीला दीक्षित को किनारे कर अरविंद सिंह लवली के नेतृत्व में चुनाव लड़ा। दिल्ली की कुल 70 सीटों में से आम आदमी पार्टी 67 सीटें जीतने में कामयाब रही। कांग्रेस को इस चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली। इसके बाद कांग्रेस हाईकमान ने कई प्रयोग किए पर हर प्रयोग असफल रहा। दिल्ली कांग्रेस अध्यक्षा अजय माकन के नेतृत्व में जब 2017 में एमसीडी के चुनाव हुए तो कांग्रेस तीसरे नम्बर आ गयी।