Mahavir Jayanti: “जियो और जीने दो” के प्रणेता भगवान महावीर की जयंती पर विशेष

आज महावीर जयंती (Mahavir Jayanti) है. महावीर जयंती (Mahavira Jayanti) हर साल पूरी दुनिया में बड़े ही हर्षोल्‍लास के साथ मनाई जाती है. जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर (Swami Mahavira) का जन्मदिवस चैत्र माह में शुक्ल त्रयोदशी को मनाया जाता है. हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव जिस युग में बढ़ गया, उसी युग में भगवान महावीर (Swami Mahavir) का जन्म हुआ. उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया. महावीर ने अहिंसा को सर्वोपरि बताया और जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत दिए. इनमें अहिंसा, सत्‍य, अपरिग्रह, अस्‍तेय और ब्रह्म्‍चर्य शामिल हैं.  उन्होंने अनेकांतवाद, स्यादवाद और अपरिग्रह जैसे अद्भुत सिद्धांत दिए. भगवान महावीर (Mahavir) का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था. दुनिया की सभी आत्मा एक-सी हैं इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं को पसंद हो. यही महावीर का ‘जियो और जीने दो’ का सिद्धांत है.

बता दें कि जैन धर्म के अनुयायियों के लिए महावीर जयंती (Mahavir Jayanti) का व‍िशेष महत्‍व है. यह उनके प्रमुख त्‍योहारों में से एक है. महावीर जयंती को महावीर स्‍वामी जन्‍म कल्‍याणक के नाम से भी जाना जाता है. महावीर जयंती के दिन जैन मंदिरों में महावीर की मूर्तियों का अभिषेक किया जाता है. इसके बाद मूर्ति को एक रथ पर बिठाकर जुलूस निकाला जाता है. इस यात्रा में जैन धर्म के अनुयायी बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं.

कौन हैं स्वामी महावीर?
भगवन महावीर (Swami Mahavir) का जन्म ईसा से 599 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के कुण्डलपुर में इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहां चैत्र शुक्ल तेरस को हुआ था. ग्रंथों के अनुसार उनके जन्म के बाद राज्य में उन्नति होने से उनका नाम वर्धमान (Vardhaman) रखा गया था. माना जाता है कि वे बचपन से ही साहसी, तेजस्वी और अत्यंत बलशाली थे और इस वजह से लोग उन्‍हें महावीर कहने लगे. उन्‍होंने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया था, इसलिए इन्हें ‘जीतेंद्र’ भी कहा जाता है. जैन ग्रंथ उत्तरपुराण में वर्धमान, वीर, अतिवीर, महावीर और सन्मति ऐसे पांच नामों का उल्लेख है.  इन सब नामों के साथ कोई कथा जुड़ी है. महावीर ने कल‍िंग के राजा की बेटी यशोदा से शादी भी की लेकिन 30 साल की उम्र में उन्‍होंने घर छोड़ दिया.

तपस्या
भगवान महावीर का साधना काल 12 वर्ष का था. दीक्षा लेने के उपरान्त भगवान महावीर ने दिगम्बर साधु की कठिन चर्या को अंगीकार किया और निर्वस्त्र रहे. श्वेतांबर सम्प्रदाय जिसमें साधु श्वेत वस्त्र धारण करते है के अनुसार भी महावीर दीक्षा उपरान्त कुछ समय छोड़कर निर्वस्त्र रहे और उन्होंने केवल ज्ञान की प्राप्ति भी दिगम्बर अवस्था में ही की. अपने पूरे साधना काल के दौरान महावीर ने कठिन तपस्या की और मौन रहे. इन वर्षों में उन पर कई ऊपसर्ग भी हुए जिनका उल्लेख कई प्राचीन जैन ग्रंथों में मिलता है.