
मैनपुरी- जनपद का प्राचीन श्री भीमसेन मंदिर पौराणिक गाथाओं से भरा पड़ा है। वैसे तो इस मंदिर पर सोमवार को अपार भीड़ रहती थी। लेकिन श्रावण मास के सोमवारांे को मेले जैसा माहौल रहता है। इतिहास के पन्ने बताते हैं कि इस मंदिर में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने भगवान भीमसेन की पूजा की थी। महर्षि मार्कंडेय ने भी भगवान भीमसेन की साधना की थी। लेकिन इस बार नजारे कुछ और इस बार कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते मंदिर में पूजा पाठ बंद है। 20 जूलाई को श्रावण मास का तीसरा सोमवार था। लेकिन मंदिर के कपाट लाॅकडाउन शुरु होते ही बंद हो गए थे। मंदिर के कपाट 20 जुलाई तक बंद है। ऐसे में श्रावण मास के सोमवारों को उमड़ने वाली भीड़ के नजारे इस बार देखने को नहीं मिल रहे।
बताते चलें कि नगर का भगवान भीमसेन का वर्तमान मंदिर 12 वीं शताब्दी में अपने स्वरूप में आया लेकिन भगवान भीमसेन का विग्रह पौराणिक काल का बताया जाता है। नगर के ईशान कोण में जहां मां शीतला देवी का मंदिर है। वहीं आग्नेय कोण में भगवान भीमसेन विराजमान हैं। कहा जाता है कि उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के बीच इस पावन नगरी की रक्षा के लिए भगवान शिव को विराजमान किया गया है। बटेश्वर की भांति यहां भी भगवान शिव की प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में है। विग्रह में बड़े-बड़े जटा जूट से अलंकृत चंद्रकला को मस्तक पर धारण करने वाले एवं बड़ी-बड़ी मूंछों से सुशोभित शिव का रूपांकन किया गया है। मंदिर के बारे में इतिहास बताता है कि अज्ञातवास के दौरान इच्छु नदी (वर्तमान में ईशन) के किनारे बिठूर जाते समय पांडव यहां रुके थे और भगवान भीमसेन की पूजा अर्चना की थी।
भीमसेन मंदिर में मुस्लिम संत गुलाब खां की समाधि भी है
जनपद के इतिहास के अनुसार लगभग 200 वर्ष पूर्व भीमसेन मंदिर में शिवरात्रि पर्व पर भंडारा चल रहा था। तभी मुस्लिम संत गुलाब खां आए और अपने कमंडल में खीर परोसने को कहा। खीर परोसने वाले कमंडल में खीर डालते रहे लेकिन कमंडल नहीं भरा। जब यह बात पुजारी नरोत्तमदास तक पहुंची तो वह स्वयं अपने कमंडल से खीर परोसने लगे लेकिन लोग यह देख कर दंग रह गए कि न तो गुलाब खां का कमंडल ही भर रहा है और न ही नरोत्तमदास जी के कमंडल से खीर की धार टूट रही है। इसके बाद दोनों संत गले मिले और संत गुलाब खां भी भीमसेन मंदिर में ही रहने लगे। मंदिर परिसर में गुलाब खां की समाधि आज भी बनी हुई है।