कोरोना : मृत्यु दर कम हो रही, लेकिन मृतकों की संख्या बढ़ रही !

कोरोना वायरस के 46 लाख से ज्यादा मामलों के साथ भारत इस महामारी से बुरी तरह जूझ रहा है। 130 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले देश में अब तक इसके कारण 75,000 से ज्यादा मौतें हुई हैं। इस मामले में यह अमेरिका और ब्राजील के बाद तीसरे स्थान पर है। बाकी कई देशों की तुलना में भारत में मृत्यु दर बेहद कम है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह असली तस्वीर नहीं है, जो चिंता की बात है। कम मृत्यु दर को सफलता बताकर पेश कर रही सरकार

भारत में कोरोना वायरस मृत्यु दर 1.7 प्रतिशत है। इसका मतलब यह हुआ कि 1,000 संक्रमित मरीजों में से 17 की मौत हो रही है। अमेरिका (लगभग 3 प्रतिशत), इंग्लैंड (11.7 प्रतिशत) और इटली (12.6 प्रतिशत) की तुलना में यह काफी कम है। देश की सरकार का कहना है कि मृत्यु दर का कम होना इस महामारी से निपटने में उसकी सफलता को दर्शाता है। इसी आधार पर सरकार ने कुछ पाबंदियों से राहत भी दी है।मृत्यु दर के आंकड़े अधूरे, बदतर कर सकते हैं स्थिति- विशेषज्ञ

प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले महीने अपने एक बयान में कहा गया था कि देश की औसत मृत्यु दर लगातार कम हो रही है और यह जल्द ही 1 प्रतिशत से नीचे आ जाएगी। हालांकि, कुछ विशेषज्ञ इस बात से सहमत नहीं है। उन्होंने चेताया है कि मृत्युदर को लेकर पेश किए जा रहे आंकड़े अधूरे और भ्रमित करने वाले हैं और ये पहले से खराब चल रही स्थिति को बदतर बना सकते हैं। क्या मृत्यु दर से जुड़े आंकड़े सही हैं?

भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या भले ही तेजी से बढ़ रही हो, लेकिन इस महामारी के कारण जान गंवाने वाले लोगों की दर कम होती जा रही है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, अप्रैल में कोरोना वायरस के कारण मृत्यु दर 4 प्रतिशत थी, जो अगस्त में 2.15 प्रतिशत और अब 2 प्रतिशत से भी कम आ हो गई है, लेकिन विशेषज्ञ इसे सही नहीं मान रहे। उनका कहना है कि यहां मृतकों का सही रिकॉर्ड नहीं रखा जा रहा।”सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज हो पाती हैं केवल 86 प्रतिशत मौतें”

CNN ने कम्युनिटी मेडिसिन विशेषज्ञ डॉक्टर हेमंत शेवडे के हवाले से लिखा है कि भारत में जब महामारी नहीं थी, तब केवल 86 प्रतिशत मौतें ही सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज हो पाती थी। इनमें से भी केवल 22 प्रतिशत के कारण का पता चल पाता था। इसके पीछे बड़ा कारण यह होता है कि अधिकतर लोगों की मौत घरों या दूसरी जगहों पर होती है, जहां मौत का कारण पता लगाने के लिए डॉक्टर मौजूद नहीं होता।कई अस्पतालों में हुई मौत भी राष्ट्रीय डाटाबेस में दर्ज नहीं होती

अगर कोई मरीज अस्पताल मे दम तोड़ता भी है तो सभी अस्पताल स्वास्थ्य मंत्रालय के मेडिकल सर्टिफिकेशन ऑफ कॉज ऑफ डेथ (MCCD) वेब पोर्टल के तहत नहीं आते। इसका मतलब यह है कि सभी मौतें राष्ट्रीय डाटाबेस में दर्ज नहीं होतीं।अधिकतर मौतों का कारण पता नहीं चल पाता- शेवडे

शेवडे ने आगे बताया, “दिल्ली में केवल 63 प्रतिशत मौतों पर कारण का सर्टिफिकेट मिलता है। अगर आप बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड की बात करें यहां केवल 35 प्रतिशत मौतें ही रजिस्टर हो पाती हैं, सर्टिफिकेशन के बारे में तो भूल जाइए। संक्षेप में समझें तो होगा कि किसी की मौत सिस्टम में दर्ज नहीं होगी। अगर यह हो भी गई तो मौत का कारण पता नहीं चलेगा। इसलिए ये कोरोना के कारण हुई मौतों में शामिल नहीं होंगी।””भारत की मृत्यु दर की सटीकता पर संदेह” 

मौतों की पूरी गिनती न होने के पीछे कम टेस्टिंग और दूसरे कारण भी होते हैं। प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में सीनियर रिसर्च स्कॉलर रमणन लक्ष्मीनारायणन कहते हैं कि निश्चित तौर पर सारी मौतें नहीं गिनी जा रही क्योंकि कोरोना वायरस के कारण बहुत से लोग मर रहे हैं, लेकिन सबके टेस्ट नहीं हो रहे। इसलिए इन्हें कोरोना से हुई मौतों में नहीं गिना जा रहा। इसलिए साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि भारत में मृत्यु दर कम है।भारत में टेस्टिंग बढ़ी, लेकिन अभी भी अपर्याप्त

भारत ने कुछ समय से टेस्टिंग को तेज किया है और रोजाना 10 लाख से ज्यादा टेस्ट हो रहे हैं, लेकिन यह आबादी के लिहाज से बहुत कम हैं। शेवडे कहते हैं कि अगर कोई व्यक्ति कैंसर या मधुमेह जैसी बीमारियों से पीड़ित है, लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण उसकी जान जाती है तो उसे कोरोना से हुई मौत नहीं माना जाएगा, भले ही उस व्यक्ति में संक्रमण की पुष्टि हो चुकी हो।मृत्यु दर कम हो रही, लेकिन मृतकों की संख्या बढ़ रही

वहीं बढ़ती टेस्टिंग के कारण भी मृत्यु दर पर असर पड़ रहा है। यानी भले ही संक्रमितों की कुल संख्या बढ़ने के कारण मृत्यु दर कम हो रही है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मरने वालों की संख्या कम हो रही है। असल में वो बढ़ रही हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो अगस्त की शुरुआत में जहां रोजाना लगभग 750 मौतों हो रही थीं, वो आंकड़ा अब बढ़कर 1,000-1,200 के बीच पहुंच गया है।भारत में कोरोना से असल में कितनी मौतें हुई हैं?

इतने बड़े देश में हर मौत का आंकड़ा जुटाना एक लंबी प्रक्रिया है और इसमें कई स्तर पर अलग-अलग विभाग शामिल होते हैं। ऐसे में कोरोना के कारण होने वाली कुल मौतों की सही संख्या बता पाना बहुत मुश्किल है।

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