
होली रंगों का त्योहार है मेल में लाओ और सभी से बैर मिटाकर दोस्ती बढ़ाने का त्यौहार है। होली प्रेम हर्षोल्लास का उत्सव है। देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग अलग तरीके से यह त्यौहार मनाया जाता है। लेकिन हम बात करेंगे मोक्ष की नगरी काशी की। जहां होली का त्योहार लोग अद्भुत अकल्पनीय और बेमिसाल तरीके से मनाते हैं। काशी के मणिकर्णिका घाट पर शिव भक्त शमशान की राख से तैयार भस्म की होली खेलते हैं। इसे मसान की होली भी कहा जाता है। मसान की होली बनारस में काफी प्रसिद्ध है। इस पर्व की शुरुआत मणिकर्णिका घाट पर बाबा भोलेनाथ के श्रृंगार और भोग के साथ होती है।
माना जाता है कि भगवान भोलेनाथ को यह पर्व अति प्रिय है। इसलिए यहां खेली जाने वाले होली बेहद ही खास होती है। ऐसा माना जाता है कि यहां के 365 दिन मसान की उड़ने वाली धूल लोगों का अभिषेक करती रहती है।
इसके अलावा हरिश्चंद्र घाट पर भी मसान की होली मनाई जाती है लेकिन इस होली का महत्व उतना नहीं होता जितना मणिकर्णिका घाट का होता है।

आइए जानते हैं मणिकर्णिका घाट की कुछ रहस्यमई बातें।
ऐसा माना जाता है कि मणिकर्णिका घाट में हजारों साल से चितई जलती रही है। मसान की होली में रंगों का इस्तेमाल होता है उसमें हवन, कुंडू या अघोरियों की चिताओं की राख का इस्तेमाल किया जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार काशी के मणिकर्णिका घाट पर शिव ने मोक्ष प्रदान करने की प्रतिज्ञा ली थी। काशी विश्व की एक ऐसी नगरी है जहां मनुष्य की मृत्यु को शुभ माना गया है।
ऐसा माना जाता है कि रंगभरी एकादशी के दिन पार्वती का गाना कराने के बाद देवता और भक्तों ने एक साथ होली खेलते हैं लेकिन भूत प्रेत पिशाच आदि जीव जंतु उनके साथ होली नहीं खेल पाते। इसलिए बाबा विश्वनाथ अगले दिन मणिकर्णिका घाट आते हैं और अपने गणों के साथ चिता की भस्म होली खेलते हैं।