
अल्मोड़ा। द्वाराहाट-जालली-सुरेग्वेल के ऐतिहासिक मंदिरों की शोध योजना के तहत 21 मई को जालली से 4-5 किमी और जोयूं से दो किमी दूर तकुल्टी गांव स्थित ‘तकुल्टी के देबाव’ नामक स्थान पर प्राचीन कत्युरी शैली के मंदिर के मिलने से द्वाराहाट क्षेत्र के मंदिर स्थापत्य देवपूजा और मूर्तिकला का एक भूला बिसरा और सदियों से उपेक्षित कुमाऊं के एक नए मन्दिर का पुरातात्त्विक अध्याय उद्घाटित हुआ है।
कत्यूरी राजाओं द्वारा लगभग तेरहवीं चौदहवीं शताब्दी का यह उपेक्षित भव्य पंचायतन मंदिर गुमनामी के हालातों में आज भी अपना अस्तित्व बनाए हुए है। आज उत्तराखंड में पंचायतन मंदिरों का अस्तित्व लगभग समाप्त हो चुका है। द्वाराहाट का ध्वज मंदिर पंचायतन मंदिरों की श्रेणी में आता है, किंतु अब यह मंदिर भी ध्वस्त अवस्था में ही है।
केवल तकुल्टी का यह वर्तमान कत्यूरीकालीन ऐतिहासिक पंचायतन मंदिर गांव वालों की जागरूकता और देखभाल के कारण आज भी अपना अस्तित्व बचाए हुए है। इस क्षेत्र के पुरातत्त्व विभाग ने इस मंदिर की कभी खोज खबर नहीं की।तकुल्टी के इस ‘देबाव’ का मैं पिछले वर्षों में कई बार उत्सुकतावश सर्वेक्षण एवं निरीक्षण कर चुका हूं, किंतु मुख्य समस्या इस मंदिर के मुख्य देवता के पहचान की रही है।
सुनसान और घोर अंधेरे में इस मंदिर के मुख्य देवता की पहचान करना काफी कठिन रहा है। इस बार के सर्वेक्षण में ग्राम जोयूं और तकुल्टी के स्थानीय लोगों की मदद से पहले इस मंदिर की साफ सफाई की गई। भली प्रकार प्रकाश व्यवस्था का प्रबंध किया गया। गौरतलब है कि पौराणिक मान्यता के अनुसार लकुलीश को भगवान शिव के 28वें अवतार और शैव धर्म के पाशुपत सम्प्रदाय का प्रवर्तक माना जाता है।
वर्तमान में तकुल्टी का यह लकुलीश मंदिर उत्तराखंड का एकमात्र पंचायतन मंदिर है, जिसमें त्रिभंग मुद्रा में चतुर्भुजी देव के रूप में लकुलीश मुख्य आराध्य देव के रूप में दर्शाए गए हैं। इस मंदिर की स्थापत्य शैली द्वाराहाट के मंदिरों विशेषकर मृत्युंजय मंदिर से मिलती है। अर्ध मंडप युक्त मंदिर का शिखर और आमलक कत्युरी काल की नागर शैली का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से एलिफेंटा के अलावा उत्तराखंड के जागेश्वर और भुवनेश्वर के मंदिरों में भी लकुलीश देवता की अनेक मूर्तियां मिली हैं।