भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की काफी हालत नाजुक बनी हुई है AIIMS. के जारी मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है. भाजपा के कई बड़े मंत्री हॉस्पिटल पहुंच रहे है. वाजपेयी काफी लंबे समय से दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती हैं. एम्स के मुताबिक, पिछले 24 घंटे में उनकी हालत काफी बिगड़ी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू समेत कई बड़े नेताओं ने एम्स पहुंचकर वाजपेयी का हाल जाना.
अटल बिहारी वाजपेयी एक सफल नेता होने के साथ ही एक कवि भी रहे. वे हमेशा अपने भाषणों में अपनी कविताएं सुनाया करते थे. अटल भारत में दक्षिणपंथी राजनीति के उदारवादी चेहरा रहे और एक लोकप्रिय जननेता के तौर पर पहचाने गए. लेकिन उनकी एक छवि उनके साहित्यिक पक्ष से भी जुड़ी है.
उन्होंने कई कविताएं लिखीं और समय-दर-समय उन्हें संसद और दूसरे मंचों से पढ़ा भी. उनका कविता संग्रह ‘मेरी इक्वावन कविताएं’ उनके समर्थकों में खासा लोकप्रिय है. इस मौके पर पेश हैं, उनकी चुनिंदा कविताएं.
1: कदम मिलाकर चलना होगा
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
हास्य-रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा.
क़दम मिलाकर चलना होगा.
ठन गई! मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था, मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई.
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं.
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?
तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ, सामने वार कर फिर मुझे आजमा.
मौत से बेखबर, जिंदगी का सफ़र, शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर.
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं, दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं.
प्यार इतना परायों से मुझको मिला, न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला.
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए, आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए.
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है, नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है.
पार पाने का क़ायम मगर हौसला, देख तेवर तूफ़ां का, तेवरी तन गई.
मौत से ठन गई.