
औरैया। बिधूना विकास खंड बिधूना में महिला आरक्षित ग्राम पंचायतों में अधिकांश महिला प्रधानों व क्षेत्र पंचायत सदस्यों के पति पुत्र तो कहीं उनके जेठ ससुर उनके प्रतिनिधि बनकर उनके कामकाज की जिम्मेदारी संभाले नजर आ रहे हैं। विकासखंड की अधिकांश महिला जनप्रतिनिधि आज तक घूंघट में सिमटी चैका चूल्हा में व्यस्त है जिससे महिला आरक्षण के दुरुपयोग से आरक्षण व्यवस्था को पलीता लग रहा है। कुछ प्रधानों व क्षेत्र पंचायत सदस्यों के परिजनों द्वारा तो उनके संगठनों के अवैध रूप से पदाधिकारी बन कर भी शर्म आने की कौन कहे रौब गांठने से भी वह चूक नहीं रहे हैं।
भले ही शासन द्वारा महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने की मंशा से ग्राम पंचायतों में प्रधान पद वार्डों के क्षेत्र पंचायत सदस्य पद ग्राम पंचायत सदस्य पद ब्लॉक प्रमुख पद जिला पंचायत सदस्य पद जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए महिलाओं के लिए आरक्षण व्यवस्था निर्धारित है किंतु जमीनी धरातल पर देखने में आ रहा है कि विकासखंड बिधूना में महिला आरक्षित रही सीटों पर काबिज हुई अधिकांश महिला प्रधानों महिला क्षेत्र पंचायत सदस्यों महिला ग्राम पंचायत सदस्यों के कामकाज की जिम्मेदारी कहीं उनके पति पुत्र तो कहीं उनके जेठ ससुर संभालते नजर आ रहे हैं।
महिला जनप्रतिनिधि घूंघट में सिमटी महिला आरक्षण को लग रहा पलीता
आलम यह है कि महिला जनप्रतिनिधियों के यह तथाकथित प्रतिनिधि तो क्षेत्र पंचायत व ग्राम पंचायत की महत्वपूर्ण बैठकों में भी अपने घर की निर्वाचित प्रतिनिधियों को न भेजकर स्वयं बैठक में शामिल होकर प्रस्तावों पर चर्चा करने के साथ अवैध रूप से महिला प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर भी बनाने से नहीं चूकते हैं। जनचर्चा तो आम है भी है कि अधिकांश महिला प्रधानों के प्रतिनिधि तो महिला प्रधान की मोहर पेड़ भी अपने साथ रखते हैं और आवश्यक प्रमाण पत्रों आदि अभिलेखों पर स्वयं मोहर लगाकर महिला प्रतिनिधि के हस्ताक्षर भी बना देते हैं।
शासन द्वारा महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिए जाने के चाहे जितने प्रयास किए जाएं लेकिन बिधूना विकासखंड में अधिकांश महिला जनप्रतिनिधि आज तक घूंघट में घरों में सिमटी चैका चूल्हे के कामकाज में व्यस्त नजर आ रही हैं। अधिकांश महिला प्रधानों को यह नहीं पता है कि उनकी ग्राम पंचायत में किस मद में विकास के लिए कितनी धनराशि मिली है और अब तक ग्राम पंचायत में कहां-कहां क्या-क्या काम हुए हैं।
स्थिति यह है कि तमाम महिला प्रधान तो ऐसी है जो आज तक अपने बोर्ड के ग्राम पंचायत सदस्यों को भी नहीं जानती पहचानती है। निर्धारित नियमों के मुताबिक क्षेत्र पंचायत ग्राम पंचायत की बैठकों कार्यक्रमों में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के ही शामिल होना होता है और उनके प्रतिनिधियों के बैठकों में शामिल होने पर पूरी तरह पाबंदी है किंतु इसके बावजूद भी यह प्रतिनिधि नियम कानून को धता बताते हुए महिला जनप्रतिनिधियों के कामकाज को अपने ही हाथों में लिए हुए हैं और संबंधित अधिकारी असहाय साबित हो रहे है।
सबसे दिलचस्प और गौरतलब बात तो यह भी है कि बिधूना विकासखंड में कई महिला प्रधानों व क्षेत्र पंचायत सदस्यों के परिजन तो उनके संगठनों के पदाधिकारी बनकर समाज में अपना रौब गांठने के साथ अपनी गाडि़यों पर भी अपने को पदाधिकारी लिखकर फर्राटे भर रहे हैं। महिलाओं के प्रतिनिधियों की बेशर्मी की हद तो इतनी है कि अपनी जग हंसाई के बावजूद भी इन्हें अपने स्वयं पर शर्म नहीं आ रही है वहीं इस मनमानी से बिधूना ब्लॉक में महिला आरक्षण व्यवस्था सिर्फ मखौल बनी नजर आ रही है।